हैदराबाद(अमर छत्तीसगढ) , 3 नवम्बर। इतिहास गवाह है भाई को संभालने की सर्वाधिक क्षमता बहन ही रखती है। भाई के आंसूओं को मुस्कान में बदलने की ताकत बहन के पास होती है। भूख भाई को जीमाने का हौंसला बहन के पास होता है। संभले हुए रिश्तों को जो संभाल के रखते है वह बहन सुदर्शना के जैसे होते है। रिश्तों की डोर हाथ से छूटने के बाद वापस हाथ में आना कठिन होता है। इसीलिए जिंदगी में बहन सुदर्शना जैसे बनों जो परमात्मा प्रभु महावीर के निर्वाण के बाद व्याकुल हो रहे बड़े भाई नंदीवर्धन को संभालने के लिए बिना बुलावे का इन्तजार किए कुण्डलपुर पहुंच जाती है।
ये विचार पूज्य राजर्षि भीष्म पितामह सुमतिप्रकाशजी म.सा. के सुशिष्य आगमज्ञाता प्रज्ञामहर्षि डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने ग्रेटर हैदराबाद संघ (काचीगुड़ा) के तत्वावधान में पूनमचंद गांधी जैन स्थानक में रविवार को भाईदूज के अवसर पर भगवान महावीर के बड़े भाई नंदीवंधर्न एवं बहिन सुदर्शना के सम्बन्धों पर चर्चा करते हुए धर्मसभा में व्यक्त किए।
उन्होंने बताया कि किस तरह प्रभु महावीर के निर्वाण की हकीकत बड़े भाई नंदीवर्धन से सहन नहीं हो पा रही ओर उन्होंने खानापीना सब छोड़ दिया है। बहन सुदर्शना अपने भाई को संभालने ओर उनके आंसूओं को मुस्कान में बदलने के लिए कुण्डलपुर पहुंच जाती है। सुदर्शना अपने हाथ से तैयार भोजन को थाली में लेकर भाई के कक्ष में पहुंचती है।
सुदर्शना अपने हाथ से भाई के मुंह में भोजन का कोर देते हुए कहती है जानती हूं आपका मन नहीं होगा लेकिन पूरा कुण्डलपुर भूखा है। पूरा कुण्डलपुर पुनः मुस्करा उठता है तो यह बहन सुदर्शना की ताकत होती है जिसने समय पर पहुंच भाई को संभाला। मुनिश्री ने कहा कि भाई को संभालना केवल बहन के वश में ही हो सकता है। आदिनाथ भगवान के 98 पुत्रों में से एक पुत्र बाहुबली साधना में लगे है एक साल से खड़े रहकर साधना कर रहे।
आदिनाथ उन्हें समझाने के लिए अपने किसी पुत्र को नहीं बल्कि बहन सुंदरी ओर ब्राह्मी को भेजते है। भाई को मनाने की खासयित बहनों को ईश्वरीय उपहार है। धर्मसभा में सुदर्शना द्वारा प्रभु महावीर के निर्वाण के बाद भाई नंदीवर्धन को समझाने के प्रसंग से पूर्व समकितमुनिजी ने वर्धमान के संयम जीवन स्वीकार करने से पूर्व के प्रसंग की भी चर्चा की।
उन्होंने कहा कि माता-पिता के स्वर्गवास के बाद वर्धमान भाई नंदीवर्धन के पास पहुंच कहते आपकी आज्ञा से संयम पथ पर आगे बढ़ना चाहता हूं। इस पर नंदीवर्धन कहते है अभी तो माता-पिता के जाने का शोक भी पूरा नहीं हुआ ओर अनुज तुम भी जाने की बात कर रहे हो। नंदीवर्धन सहित सभी परिवारजनों के समझाने पर भी वर्धमान के मन के भाव नहीं बदलते है।
नाशवान चीजों के पीछे वैर की डीड मत लिखो
प्रज्ञामहर्षि डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने कहा कि भाई-भाई संपति के पीछे इतना वैर अनुबंध कर लेते है कि एक-दूसरे की शक्ल देखना भी पसंद नहीं करते है। नाशवान चीजों के पीछे ऐसे खतरनाक वैर की डीड अपने हाथों से मत लिखो अन्यथा भव-भव,जन्म-जन्म बीत जाएंगे पर ये डीड खत्म नहीं होगी। ऐसी डीड जिंदगी में साइन मत करो जो आगे चलकर हमारे लिए ही खतरनाक हो जाए। हम वैर का त्याग नहीं कर पाते है तो कितना भी धर्म कर ले सम्यकत्व से दूर ही रहेंेगे। दुनिया में सबसे अधिक प्रेम भी भाईयों में होता है तो सबसे खतरनाक दुश्मनी भी भाईयों में ही होती है। इतिहास गवाह है भाईयों का झगड़ा सबको बर्बाद कर देता है।
धर्मसभा में गायनकुशल जयवन्तमुनिजी म.सा. ने भजन हम लेकर चरण धुली जीवन को बनाते है की प्रस्तुति दी। प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। धर्मसभा में नासिक,पूना, बैंगलूरू सहित विभिन्न क्षेत्रों से पधारे श्रावक-श्राविकाएं बड़ी संख्या में मौजूद थे। संचालन श्रीसंघ के महामंत्री सज्जनराज गांधी ने किया।
चातुर्मास के तहत सोमवार 4 नवम्बर से समकित के पंच लक्ष्यों सम,संवेग, निर्वेग, अनुकम्पा व आस्था के बारे में चर्चा के लिए पांच दिवसीय विशेष प्रवचनमाला शुरू होगी। ज्ञानपचंमी की आराधना 6 नवम्बर को होगी। वाचनाचार्य उपाध्याय प्रवर पूज्य विशालमुनिजी म.सा. का जन्मदिन 12 नवम्बर को एकासन दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इसके उपलक्ष्य में 10 नवम्बर को सामायिक का तेला भी होगा।
निलेश कांठेड़
मीडिया समन्वयक, समकित की यात्रा-2024
मो.9829537627