भीलवाड़ा(अमर छत्तीसगढ) , 3 नवम्बर। भगवान महावीर निर्वाण कल्याणक महोत्सव पर शुक्रवार को श्रमण संघ के प्रथम युवाचार्य पूज्य श्री मिश्रीमलजी म.सा.‘मधुकर’ के प्रधान सुशिष्य उप प्रवर्तक पूज्य विनयमुनिजी म.सा.‘भीम’ की आज्ञानुवर्तिनी शासन प्रभाविका पूज्य महासाध्वी कंचनकुंवरजी म.सा. आदि ठाणा के सानिध्य में बापूनगर श्रीसंघ के तत्वावधान में रविवार को भगवान महावीर के समोवशरण की रचना की गई।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता जैन कॉन्फ्रेंस महिला शाखा की राष्ट्रीय अध्यक्षा पुष्पा गोखरू ने की एवं विशिष्ट अतिथि निर्मला बुलिया थी। समारोह में जिनशासन के आराध्य परमात्मा भगवान महावीर के दिव्य अंतिम समोवशरण का साक्षात नजारा आंखों के सामने लग रहा था। भक्ति का रंग छाया हुआ था।
वहां संत, श्रावक, देवता सभी मौजूद थे। देवराज इन्द्र के आदेश पर देवताओं द्वारा तैयार किए गए समोवशरण में तीनों लोकों की समृद्धि एकसाथ नजर आ रही थी। आसमान से उपहारों से भरी पेटियां उतारी जा रही थी। ये पेटियां शालिभद्र द्वारा मां भद्रा के सानिध्य में वितरित की जा रही थी।
कई श्राविकाओं ने शालिभद्र की रानियों का रूप धरा तो इन्द्र-इन्द्रानी भी आकर्षण का केन्द्र रहे। महावीर भवन में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं इस दिव्य आयोजन में सहभागी बनने के लिए पहुंचे। इस आयोजन के तहत शालिभद्र एवं परिवारजनों के हाथों उपहार वितरित किए गए। इस भव्य एवं गरिमापूर्ण आयोजन के लाभार्थी पन्नालालजी, हीरालालजी, मनोजकुमारजी, नौरतमलजी बाफना परिवार रहा।
पूज्य कंचनकंवरजी म.सा. ने कहा कि 24 तीर्थंकर के कुल 64 समोवशरण लगे थे इनमें से पहले तीर्थंकर आदिनाथ भगवान के 12 एवं अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के आठ समोवशरण लगे थे। शेष 22 तीर्थंकर के 2-2 समोवशरण लगे थे। इन समोवशरण की रचना हर समय नहीं विशेष अवसरो पर ही की जाती थी।
समोवशरण का अभिप्राय वह स्थान जहां किसी तरह का वैर-विरोध या दुश्मनी नहीं होती और सिंह व गाय भी एक साथ बैठ सकते है। समोवसरण की रचना इन्द्र की आज्ञा से देवता करते है लेकिन इनमें पुण्य तीर्थंकर का कार्य करता है।
उन्होंने कहा कि शालिभद्र जब तक संसार में रहे राजसी जीवन मनोयोग से जीया लेकिन जब साधना मार्ग पर आगे बढ़े तो अपना जीवन इस तरह बदल लिया कि भिक्षा लेने माता भद्रा के आंगन में पहुंचे तो वह भी उनको नहीं पहचान पाई। जो कभी अपना परिचय नहीं देता और किसी तरह का दिखावा नहीं करता वह शालिभद्र है। लाभार्थी बाफना परिवार एवं अध्यक्षता कर रही पुष्पाजी गोखरू एवं विशिष्ट अतिथि बुलिया का श्रीसंघ द्वारा स्वागत किया गया।
धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी डॉ. सुलोचनाश्री म.सा. एवं डॉ. सुलक्षणाजी म.सा. ने भाईदूज प्रसंग की चर्चा करते हुए कहा कि भाई-बहन का प्रेम निश्चल पावन एवं अतुलनीय होता है। इस रिश्ते की तुलना किसी अन्य रिश्ते से नहीं की जा सकती है। भाईदूज का प्रसंग भाई को अपने बहन की रक्षा के लिए अपने कर्तव्य पालन की प्रेरणा प्रदान करता है।
ये पर्व संदेश देता है कि भाई-बहन को हमेशा एक दूसरे के सुख दुःख में सहभागी बनने के लिए तत्पर रहना चाहिए। श्रीसंघ के मंत्री अनिल विश्लोत ने बताया कि आगामी ज्ञानपंचमी को सामूहिक रूप से सरस्वती माता का जाप अनुष्ठान होगा। सभी का आभार श्रीसंघ के उपाध्यक्ष प्रकाश नाहर एवं महामंत्री दलपत सेठ ने व्यक्त किया।
प्रस्तुति : अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन, भीलवाड़ा