गोड़ादरा (अमर छत्तीसगढ)) 17 नवंबर। मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. आदि ठाणा 6 के पावन चरण जिस धरा पर पड़ते है वहां जिनवाणी की सुगन्ध महकने के साथ जिनशासन भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित हो उठती है। उनके श्रीचरणों का प्रताप कहे कि पिछले वर्ष भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार एवं इस वर्ष सूरत के गोड़ादरा-लिम्बायत स्थित महावीर भवन में उनका चातुर्मास उस भवन के लिए पहला चातुर्मास रहा।
पहले ही चातुर्मास में महासाध्वी मण्डल के मुखारबिंद से त्याग,तपस्या व साधना की ऐसी त्रिवेणी प्रवाहित हुई कि कोई अतिथि आता है तो उसे भक्ति का जो माहौल मिलता है उसे देख यह विश्वास करना कठिन होता है कि इस भवन में यह पहली चातुर्मासिक जिनवाणी गूंज रही है।
महासाध्वी मण्डल की प्रेरणा से त्याग-तपस्या व भक्ति का जो इतिहास पिछले वर्ष भीलवाड़ा के रूप रजत विहार में रचा गया वहीं इतिहास अब सूरत के गोड़ादरा के महावीर भवन की पावन धरा पर दोहराया गया है। धर्मनगरी सूरत के गोड़ादरा-लिम्बायत क्षेत्र में श्री महावीर भवन में पहली बार चातुर्मासिक जिनवाणी की अविरल धारा चार माह प्रवाहित हुई। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में श्रमण संघ के पहले ही चातुर्मास ने सफलता का नया इतिहास बना दिया।
मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. आदि ठाणा 6 का चातुर्मासिक आगाज होेने के अवसर पर सबके मन में उत्साह तो था लेकिन साथ ही ये भी लग रहा था कि क्षेत्र सीमित होने ओर पहली बार चातुर्मास होने से इतने बड़े चातुर्मास को किस तरह सफल बना पाएंगे।
महासाध्वी मण्डल ने क्षेत्र में धर्म प्रभावना व जिनशासन की भक्ति की ऐसी अलख जगाई की त्याग-तपस्या का नजारा देख पर्युषण बाद भी ऐसा लग रहा था मानो अभी पर्युषण की ही आराधना चल रही हो।
चातुर्मास के दौरान तपस्या की बात करे तो 3 मासखमण, एक सौलह उपवास, 2 तेरह उपवास, 9 ग्यारह उपवास, 9 नौ उपवास की तपस्या, 21 अठाई तप, 8 पांच की तपस्या, 213 तेला तप, 25 बेला तप एवं 1109 उपवास, 1131 आयम्बिल, 51 बियासणा, 41 नीवी एवं 1211 एकासन तप के रूप में तपस्याओं का ठाठ लगा रहा। करीब 13 हजार नवकारसी, पोरसी, डेढ पोरसी व दो पोरसी के पचक्खान लिए गए तो 1311 दया व्रत की आराधना भी हुई।
चातुर्मास में श्रावक-श्राविकाओं द्वारा 51 हजार से अधिक सामायिक हुई। सामायिक की पचरंगी में 100 एवं सामायिक धर्म चक्र में 200 बहन-भाईयों ने भाग लिया।
चातुर्मास में सामायिक का सिद्धि तप 10 भाई बहनों ने किया। एकासन की पचरंगी 25 बहनों ने की। चन्द्रकला द्रव्य मर्यादा तप में 65 बच्चों ने भाग लिया। लाखीणा आयम्बिल तप में 30 एवं आयम्बिल ओली तप में 21 भाई बहनों ने भाग लिया। करीब 200 सामायिक के बेले तेल हुए। तीन बहनों ने एकान्तर वर्षीतप किया एवं तीन बहनों के वर्षीतप आराधना चल रही है। पांच भाई-बहनों ने पौषध सहित अठाई तप किया।
पक्खी प्रतिक्रमण एवं पर्युषण पर्व प्रतिक्रमण में करीब तीन हजार श्रावक-श्राविका शामिल हुए। पर्युषण में तप त्याग व सामायिक साधना करने वालों को डायमंड,गोल्ड व सिल्वर कूपन प्रदान किए गए। पर्युषण में प्रतिदिन विभिन्न प्रतियोगिताएं हुई। चातुर्मास में डॉ.समीक्षाप्रभाजी म.सा. की प्रेरणा से 250 भाई-बहनों ने श्रावक व्रत स्वीकार किया। चातुर्मास में प्रत्येक मंगलवार को श्री घंटाकर्ण महावीर स्रोत का जाप हुआ।
पर्युषण पर्व के दौरान आठ दिवसीय अखण्ड नवकार महामंत्र जाप हुआ इसके साथ चातुर्मास में प्रतिदिन दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार मंत्र जाप हुआ जिनमें करीब 4100 श्रावक-श्राविकाएं शामिल हुए। दीपावली पर साध्वी दर्शनप्रभाजी म.सा. एवं समीक्षाप्रभाजी म.सा. के मौन तेला तप की आराधना रही। शरद पूर्णिमा पर धर्म जागरण तप हुआ।
चातुर्मास में विभिन्न अवसरों पर करीब 8 लाख रुपए की राशि जीवदया के लिए एकत्रित हुई। साध्वी मण्डल के सानिध्य में 29 सितम्बर को भव्य धार्मिक प्रदर्शनी देखने सूरत के विभिन्न क्षेत्रों से हजारों भाई-बहन पहुंचे। चातुर्मास में 2 अक्टूबर को प्रश्नमंच का आयोजन हुआ।
चातुर्मास में 15 बच्चों ने सामायिक सूत्र एवं तीन बच्चों ने प्रतिक्रमण कंठस्थ करके सुनाया। नवपद अनुपूर्वी की आराधना में 45 जनों ने भाग लिया एवं तीन लाख के लगभग जाप हुआ। चातुर्मास में मरूधर केसरी पूज्य मिश्रीमलजी म.सा. एवं लोकमान्य संत रूपचंदजी म.सा. की जयंति सामूहिक तेला तप के साथ मनाई गई।
महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. का 45वां दीक्षा दिवस आयम्बिल तप के साथ एवं साध्वी चेतनाश्रीजी म.सा. का 65वां जन्मदिवस एकासन तप के साथ मनाया गया। त्याग,तपस्या व धर्म साधना का जो माहौल बना उसका प्रभाव चातुर्मास समाप्ति के बाद भी बना रहेगा इसमें कोई संदेह नहीं है। पूज्य महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा.एवं सभी साध्वीवृन्द परमात्मा भगवान महावीर का संदेश जन-जन तक पहुंचाने का अनुपम अविस्मरणीय कार्य कर रहे है।
धर्म साधना व तप त्याग से चातुर्मास को एतिहासिक बनाने वाले गोड़ादरा-लिम्बायत क्षेत्र के श्रावक-श्राविकाओं की गुरू भक्ति व जिनशासन सेवा की भावना की जितनी अनुमोदना की जाए कम है। संघ का क्षेत्र भले छोटा लेकिन मन बहुत बड़ा होने से हर कार्य ने असीम सफलता प्राप्त की। प्रथम चातुर्मास में ही धर्म प्रभावना का कीर्तिमान कायम हो गया।
श्रीसंघ के सभी सदस्यों ने सामूहिक प्रयास कर गुरूणीवर्या के पावन सानिध्य में इस चातुर्मास को धर्म साधना की दृष्टि से एतिहासिक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। ये चातुर्मास धर्म साधना की दृष्टि से अविस्मरणीय बन गया इसके लिए हम पूज्य महासाध्वीवृन्द को हार्दिक साधुवाद अर्पित करते है।
स्वतंत्र पत्रकार एवं विश्लेषक
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा
मो.9829537627