राजनंदगांव(अमर छत्तीसगढ) 30 दिसम्बर। श्री शिव महापुराण कथा के सुनने से व्यक्ति के जीवन में पुण्य उदय होते हैं जिससे ज्ञान , भक्ति एवं वैराग्य प्रकट होता है । बहू सास की सुने , पुत्र पिता की सुने , व्यक्ति गुरु की सुने , बुजुर्गो को सुने , वेद ग्रंथ सुने , जिससे हमारा आत्म कल्याण होगा ।
किसी की निंदा एवं ओछी बातें कभी ना सुने , ना कहे । अच्छी सोच धनात्मक एवं संरचनात्मक होती है । अच्छे के लिए बोलना , सोचना , सुनना मंगलकारी होगा । जो बोएंगे वही काटेंगे । कन्याओं के कान में छिद्र कराकर बाली इसलिए पहनाई जाती है कि वह जब बहू बनकर दूसरे घर में जाएगी तो उसे सुनना आएगा ।
उक्त उद्गार आज यहां श्री हनुमान श्याम मंदिर में आयोजित अठारह दिवसीय श्री सुंदरकांड महाकुंभ के तीसरे दिन श्री शिव महापुराण कथा की मीमांसा करते हुए अरजकुंड निवासी सुप्रसिद्ध भगवताचार्य पंडित दिग्विजय शर्मा ने व्यक्त किए ।
श्री श्याम के दीवाने एवं हनुमान भक्तों की ओर से गणेश मिश्रा द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार संतश्री ने आगे कहा कि मनुष्य में स्वयं भगवान जैसा तत्व है , इसे बर्बाद ना करें । हम स्वयं को जाने । कस्तूरी मृग के भीतर होती है, पर समस्या यह है कि हम उसे बाहर ढूंढते हैं ,भीतर नहीं देखते । भीतर देखते ही संकट के कोहरे छठ जाएंगे ।
श्रवण सबसे बड़ा संस्कार है , अर्जुन को गीता सुननी पड़ी तब उसका हृदय जागृत हुआ ,सुनने से भ्रम का नाश होता है । अज्ञानता का अंत होता है। भय से पलायन होता है और व्यक्ति पलायन कर डर से भागता है । कथाएं पलायन से मुक्ति दिलाती है । अर्जुन पलायन करना चाहता था , कृष्ण ने गीता सुनाई तब उसे जागृति प्राप्त हुई ।
अर्जुन ने गीता के 18 अध्याय सुनने के पश्चात कहा कि हे माधव , मेरी स्मृति जागृत हो गई है मैं स्वयं को पहचान गया हूं । अब आप जो कहेंगे मैं वही करूंगा । संत श्री ने कहा कि श्रद्धा , विवेक को जाग्रत करती है, निर्भयता कथाओं के श्रवण से आती है । वृक्षारोपण , जल संचय , सरोवर की स्वच्छता , प्रकृति का संरक्षण, दलित पीड़ित की सेवा से ही मानव जीवन की सफलता है । अन्यथा जीवन बेकार है ।
अश्रद्धा संशय पैदा करती है । स्वयं को जानना ही ईश्वर भक्ति है , मैं कौन हूं , इसका उत्तर सिर्फ भारत भूमि में ही मिलता है। परम पुरुष कौन है , भगवान को जान जाएंगे तो फिर स्वयं भगवान हो जाएंगे । ज्येष्ठ , शास्त्र , सनातन , माता-पिता का सम्मान ही भारतीय संस्कृति का परम ज्ञान है । संत श्री ने कहा कि श्रवण के प्रति श्रद्धा होनी चाहिए । श्रद्धा वह चाबी है जो मूल्यवान वस्तु को तिजोरी में सुरक्षित रखती है। श्रद्धा भगवत प्राप्ति की कुंजी है।
जिसमें कथा व प्रभु के प्रति श्रद्धा होगी उसे भगवत प्राप्ति से कोई नहीं रोक सकता । श्रद्धा से पुरुषार्थ आता है । समूची सृष्टि सदगुण , रजोगुण एवं तमोगुण से बनी है संकल्प से सिद्धि की प्राप्ति होती है । प्रत्येक व्यक्ति को अच्छे कार्य करने का संकल्प लेना चाहिए ,संकल्प बड़ा होना चाहिए । इंद्रियों पर अंकुश होना चाहिए । धर्म प्रकाशवान है , सूर्योदय है , विशाल है । ऊर्जा का सदुपयोग करें ।

ऊर्जा के बिना प्राणी मृतप्राय है । इत्र की डब्बी का ढक्कन खोले बिना भी इत्र की सुगंध प्राप्त हो जाती है ,सनातन की सुगंध सात समंदर के पार भी है । धर्म के माध्यम से मनुष्य को नियंत्रित किया जा सकता है । चार पुरुषार्थ धर्म ,अर्थ , काम का सदुपयोग से ही मोक्ष की प्राप्ति होगी । भगवान राम हमें चरित्र का निर्माण सिखाते हैं , संयम से रहना सीखे , सीमा का उल्लंघन न करें । माता सीता ने सीमा रेखा लांघी , तब उनका हरण हुआ ।
कथा मन की व्यथा को दूर करती है । सती प्रथा पर बोलते हुए संत श्री ने कहा कि वामपंथी विचारधारा के लोगों ने हमारी सनातन संस्कृति को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया है । कथा प्रतिदिन शाम 05:30 बजे से प्रारंभ हो रही है ।