प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्र है- पंडित दिग्विजय शर्मा

प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्र है- पंडित दिग्विजय शर्मा

राजनंदगांव(अमर छत्तीसगढ) 1 जनवरी। भगवान नारायण ने मनुष्य को अन्य जीवों से अलग बनाते हुए दो चीज प्रदान की है । पहला कर्म की स्वतंत्रता एवं दूसरा चिंतन की स्वायत्तता । व्यक्ति अपने जीवन में अपने कर्म की स्वतंत्रता के कारण मनमानी करता है ,भोग विलास में डूब जाता है ।

व्यसनों के गंदे जाल में फंस जाता है तथा चिंतन की स्वायत्तता के कारण क्या सूनना है क्या काम करना है , मन , कर्म एवं वचन से क्या करना चाहता है , का निर्णय नहीं कर पाता एवं मकड़ी के द्वारा अपने थूक से बुने गए जाले की तरह स्वयं फंस कर मृत्यु को प्राप्त होता है ।

मनुष्य अपने अलग संसार की रचना करके पदार्थों के मकड़ जाल में फंसकर छटपटाता है और बाहर निकलने का प्रयास करता है किंतु बाहर निकल नहीं पाता और उसका पतन हो जाता है ।

उक्त उद्गार आज यहां श्री हनुमान श्याम मंदिर में आयोजित पंच दिवसीय श्री शिव महापुराण कथा के चतुर्थ दिवस की कथा कहते हुए अरजकुंड निवासी सुप्रसिद्ध भगवताचार्य पंडित दिग्विजय शर्मा ने व्यक्त किए ।
श्री श्याम के दीवाने एवं हनुमान भक्तों की ओर से अशोक लोहिया , सोहन देवांगन एवं किशन देवांगन द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार पूज्य संत श्री ने कहा कि व्यक्ति अपने जीवन में धर्म , ध्यान साधना , प्रवचन श्रवण एवं महादेव के प्रति सच्ची श्रद्धा भक्ति रखते हुए अपने जीवन को सफल कर सकता है ।

दान की महत्व बताते हुए संत श्री ने कहा कि दिया गया दान सत्कर्म कभी निष्फल नहीं जाता। वह किसी न किसी रूप में हमें प्राप्त होता ही है । सत्यभामा नारद प्रसंग के माध्यम से दान की महिमा बताते हुए संत श्री ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को दीन दुखियों की सेवा, मंदिर के जीर्णोद्धार, प्यायघर, प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षारोपण, गौ संरक्षण के लिए अपनी कमाई में से कुछ ना कुछ हिस्सा दान करना चाहिए । तभी उसकी कमाई सार्थक होगी ।

हरि व्यापक है , जो भक्ति , प्रेम और समर्पण से प्राप्त होते है । व्यक्ति की राशि के अनुसार वृक्षारोपण की महत्ता बताते हुए संतश्री ने कहा कि मेष राशि के व्यक्ति को नींबू का पेड़ ,वृषभ राशि के व्यक्ति को आंवला , कन्या राशि के व्यक्ति को केला , कुंभ राशि के व्यक्ति को बरगद , मिथुन राशि के जातक को पीपल का वृक्ष लगाना चाहिए । केले का वृक्ष गुरु बृहस्पति को प्रसन्न करता है, बृहस्पति देवताओं के गुरु है ।

नारायण एक तुलसी दल से तथा महादेव एक बिल्वपत्र से प्रसन्न हो जाते हैं । हमें प्रकृति संरक्षण करने के लिए बेलपत्र एवं तुलसी को संयमित होकर तोड़ना चाहिए इसके प्रकृति को ठेस न पहुंचे । अन्न में लक्ष्मी का वास होता है उसे व्यर्थ न जाने दें । नारी हमेशा पूजनीय है , चाहे वह बहन हो , बेटी हो या मां हो । इसकी हमेशा पूजा होनी चाहिए । उन्होंने मां दुर्गा के नौ रूपों की व्याख्या करते हुए नारी की महत्ता पर प्रकाश डाला ।

संत श्री ने कहा कि मन मक्खी की तरह होता है इसे यह आभास नहीं होता कि वह गंदगी में बैठ रहा है अथवा पूजन स्थल पर । मन को सुमन बनाना है तो उसे नियंत्रित करके प्रभु भक्ति में लगावे । जीवन की सच्चाई जन्म , मृत्यु , जरा एवं व्याधि से है । तीन संक्रमण आधि , व्याधि और उपाधि हमारे पतन का कारण है । महादेव के हाथ में त्रिशूल है, वह तीनों संक्रमणों से छुटकारा दिलाता है । दुख को नष्ट करने की औषधि भजन सत्संग एवं कीर्तन में है ।


संत श्री ने गुरु की महिमा बताते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में किसी न किसी को गुरु बनाना चाहिए । निगुरे व्यक्ति के हाथ का पानी पीना भी अधर्म है , नारायण – नारद की कथा प्रसंग से उक्त विषय पर प्रकाश डालते हुए संत श्री ने कहा कि गाय के गोबर एवं गोमूत्र में विलक्षण ऊर्जा होती है । गले में घंटी बंधी हुई गाय का दर्शन स्वयं श्यामसुंदर के दर्शन का पुण्य प्रदान करता है ।

गुरु व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं। गुरु का स्थान सबसे ऊंचा है ,आदर्श शिष्य बनकर व्यक्ति गुरु के सामान बन जाते हैं । गुरु द्वारा शिष्य के कान में मंत्र दीक्षा दिया जाता है जिससे उसके मस्तिष्क में बैठे हुए दुष्ट विचार , विकृतियों , दुर्व्यसन बुरे विचार दूर हो जाते हैं । भारतीय संस्कृति में चार वर्ण बताए गए हैं ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य एवं शुद्र । प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्म के द्वारा ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य एवं शुद्र होता है ।

जब वह स्नान नहीं करता तो मंदिर नहीं जा सकता अर्थात वह तब तक शूद्र है । स्नान कर पूजा पाठ करता है तब वह ब्राह्मण है । जब वह व्यापार – व्यवसाय करने के लिए , कमाई करने के लिए दान धर्म करता है , गरीब दलित की सेवा के लिए राशि देता है , हिसाब किताब रखता है तब वह वैश्य है तथा किसी अनीति को देखकर उसे रोकने की चेष्टा करता है तब वह क्षत्रिय हो जाता है ।

वामपंथियों ने वर्ण व्यवस्था का दुष्प्रचार कर अलग परिभाषाएं प्रचारित कर इसे बांटने का कार्य किया है, जो निंदनीय है । भगवान को मानना अर्थात स्वयं को जानना है । गुरु , माता-पिता का अपमान करना नरक का गामी होता है। आज हमारी स्थिति ऐसी है कि हमारे पास मिठाई बहुत है परंतु हम शुगर की वजह से उसका सेवन नहीं कर सकते ।

युवाओं को संदेश देते हुए संत श्री ने कहा कि दिन भर फेसबुक में रहना , सेल्फी लेना एवं अंग प्रदर्शन करना भी व्यसन है । इससे बचें और धर्म के प्रति जागृत हो । मछली फिश है और मनुष्य सेल्फिश । यौवन वह ऊर्जा है जिससे वह जो चाहे कर सकता है हम उसे जैसा ढालेंगे वह वैसा ही हो जाता है ।

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