महाकुंभ पर्व देश-धरती में अतीव गौरवशाली विरासत – द्विवेदी

महाकुंभ पर्व देश-धरती में अतीव गौरवशाली विरासत – द्विवेदी

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ) 7 जनवरी ।. अखिल विश्व की अद्वितीय सनातन संस्कृति के परम आध्यात्मिक वैभव का श्रेष्ठतम उत्कर्ष महाकुंभ के पावन प्रसंग परिप्रेक्ष्य में नगर के विचारप्रज्ञ चिंतक डॉ. कृष्ण कुमार द्विवेदी ने समसामयिक विचार विमर्श में बताया कि कुंभ-महाकुंभ पर्व समग्र देश-धरती में अतीव गौरवशाली विरासत है जो एक साथ सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक अवधारणाओं को सर्वश्रेष्ठ मूर्तरूप देता है।

सनातन दर्शन में कुंभ को सृष्टि का पुण्य प्रादर्श माना गया हैै। प्रकृति के पंचतत्व-आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी मिलकर कुंभ अर्थात कलश का निर्माण करते है। कुंभ पर्व की गाथा भी सागर मंथन में प्राप्त चौदह रत्न और अंत में अमृत कलश निकलने और उसे पाने के लिए देव-दानव द्वंद के दौरान हुई भागमभाग में अमृत कलश से छलककर कुछ बूंदे पुण्य भूमि भारत के चार स्थानों हरिद्वार-प्रयाग-उज्जयिनी-नासिक में गिरी थी।

कालांतर में यही चारों स्थल निर्धारित मुहूर्त में कुंभ-महाकुंभ पर्व के आयोजन तीर्थ स्थल बन गये। बारह वर्षो के अंतराल पर आयोजित कुंभ-महाकुंभ मेले के मध्य में अर्धकुंभ भी पड़ता है और वैसे भी प्रयाग को तो तीर्थराज कहा गया है। यहां का त्रिवेणी संगम – पतित पावनी गंगा, स्वच्छ श्यामली यमुना और अंत सलीला सरस्वती का पवित्र पावन मिलन स्थल इसे अभिप्रमाणित भी करता है।

डॉ. द्विवेदी के अनुसार कुंभ पर दान-पुण्य-स्नान के साथ-साथ विशुद्ध आध्यात्मिकता का अति उल्लास लोकतत्व एवं लोकतत्वों की जीवंतता का मंत्रमुग्ध करने वाला सुदर्शन भी कराता है। एक से एक बढक़र अखाड़ों की स्नान यात्रा तथा जोशिले करतब एवं महासंतों, नागा साधुओं एवं विराट सिद्ध महतों के ध्यान-पूजा-साधना के  अदभुत प्रदर्शन अपार जन-जन का मन मोह लेते हैं।

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