शास्त्री जी सभी राजनीतिक दलों में सम्मानित थे: रावले जी’

शास्त्री जी सभी राजनीतिक दलों में सम्मानित थे: रावले जी’

राजनांदगांव (अमर छत्तीसगढ़) 18 अप्रैल।

पं. शिवकुमार शास्त्री दलगत राजनीति से ऊपर सभी राजनीतिक दलों में सम्मानित व्यक्ति रहे हैं। उक्त उद्गार श्री भालचंद्र रावले ने आज शास्त्री जी जयंती पर आयोजित परिसंवाद में व्यक्त किये।

कान्यकुब्ज सभा द्वारा पंडित स्व.शिवकुमार शास्त्री जी की 106 वीं जयंती के अवसर पर अखिल भारतीय स्तर पर ऑनलाईन परिसंवाद का आयोजन किया गया । कार्यक्रम का शुभारंभ शास्त्री जी की कर्मभूमि जयस्तंभ चौक राजनांदगांव स्थित उनके निवास स्थान से किया गया। सर्वप्रथम दीप प्रज्जवलित कर उनके तैलचित्र पर श्री प्रभात तिवारी, डॉ. प्रकाश नारायण बाजपेयी, पातांजलि बाजपेयी, कान्यकुब्ज सभा के अध्यक्ष प्रदीप मिश्रा,सचिव अजय शुक्ला ,सुरेन्द्र बाजपेयी, सुनील बाजपेयी, संदीप बाजपेयी ने पुष्पांजलि अर्पित की ।

परिसंवाद को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता श्री भालचंद्र रावले संगठन मंत्री विद्या भारती (मध्य प्रांत) ने अपने उद्बोधन में बताया कि पं. शास्त्री जी एक समाज सुधारक तो थे ही साथ ही ऐसे उपायों के प्रवर्तक भी थे जिससे लोगों का मानसिक तथा बौद्धिक विकास हो, वे प्राच्य एवं पश्चात्य सभ्यता के विषद ज्ञानी थे।
पूर्व विधायक एवं छत्तीसगढ़ वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्री वीरेंद्र पांडेय ने बताया कि उनकी अध्यात्म एवं ज्योतिष में गहरी पकड़ थी।वे वेद पुराण एवं विभिन्न विषयों के जानकार थे ।उनके सरल व्यक्तित्व को शब्दों में उकेरना अत्यंत कठिन कार्य है।
श्री राकेश ठाकुर ने विभिन्न संस्मरणों से संगोष्ठी को अवगत कराया। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ी विश्वास नहीं कर सकेगी कि शास्त्री जी जैसा सरल व्यक्तित्व राजनीति में भी दखल रखता था। आने वाली पीढ़ियां उनके इस आचरण को अपने मे कितना उतार पाती हैं यही इस कार्यक्रम की सफलता का मापदंड होगा।
कार्यक्रम के अंत में कान्यकुब्ज सभा के अध्यक्ष प्रदीप मिश्रा ने आभार व्यक्त किया ।ऑनलाइन कार्यक्रम का प्रभावी एवं सफल संचालन अखिलेश तिवारी ने किया तथा तकनीति सहयोग एवं नियंत्रण श्रीमती ईशानी दीक्षित तिवारी ने किया। संगोष्ठी में देश तथा विदेश से काफी संख्या में अध्येेयताओं ने भाग लिया। सहभागियों की आनलाइन टिप्पणियां कार्यक्रम की गरिमा को बढ़ाती रही ।उपरोक्त जानकारी कान्यकुब्ज सभा के मीडिया प्रभारी श्री दुर्गेश त्रिवेदी ने दी।

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