रायपुर(अमर छत्तीसगढ) 2। छत्तीसगढ़ में बारिश की शुरुआत होने के बाद भी राज्यभर के धान उपार्जन केंद्रों से अब तक 92 हजार 303 मीट्रिक टन धान का उठाव नहीं हो पाया है। जैसे-जैसे बारिश की रफ्तार बढ़ेगी, यह धान भीगकर खराब होना तय है। उपार्जन केंद्रों में जमा ये धान करीब 211 करोड़ रूपयों का है।
खास बात ये है कि धान की इस बरबादी का जिम्मा उन सोसाइटियों के सिर आएगा, जिन्होंने ये धान खरीदा था। अभी भी दर्जनों सोसाइटियों में पहले ही धान के स्टॉक में गरमी की वजह से शॉर्टेज हुआ है, उसकी जिम्मेदारी सोसाइटी प्रबंधकों पर आ चुकी है।
राज्य में पिछले साल 14 नवंबर से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी शुरू हुई थी। यह काम 31 जनवरी तक किया गया था। राज्यभर में 149 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की गई थी। इसमें से अधिकांश धान मिलरों या मार्कफेड के संग्रहण केंद्रों में भेजा गया।
इसके बाद भी राज्य के कई जिलों के धान उपार्जन केंद्रों में मंगलवार 27 मई की स्थिति में 92 हजार 303.38 मीट्रिक टन धान रिकार्ड में शेष बता रहा है। इसका मतलब ये है कि ये धान उपार्जन केंद्रों में शेष है।
यह भी संभव है कि इसमें से कुछ मात्रा सूखत या पिछले दिनों की बारिश में खराब हुआ हो। लेकिन इससे भी बड़ी बात ये है कि अगर अब बारिश के मौसम में बचा धान नहीं उठाया गया तो उसका बरबाद होना तय है।
राज्य की धान उपार्जन नीति के मुताबिक किसी भी सोसायटी में धान की बफर स्टॉक लिमिट खत्म होने के बाद 72 घंटों में धान का उठाव या परिवहन कराया जाना है। खरीदी के दौरान ही सैकड़ो सोसाइटियों में बफर स्टॉक लिमिट दो-चार गुना से अधिक होने के बाद से लेकर अब तक पूरे धान का उठाव नहीं हो सका है। हालांकि इससे पहले अप्रैल-मई की भीषण गर्मी की वजह से धान सूखा और उसके वजन में कमी आई है।
सोसाइटियों में जितना भी धान कम हुआ है, उसकी जिम्मेदारी सोसाइटी प्रबंधकों पर आई है। अब प्रबंधकों पर इस बात का दबाव है कि वे प्रति क्विंटल 2300 रुपए के हिसाब से धान जमा कराएं, या उसी अनुपात में राशि जमा करें। ऐसा नहीं करने पर प्रबंधकों के खिलाफ एफआईआर करने की चेतावनी दी गई है। इस मामले को लेकर कई सोसाइटियों के संचालक हाईकोर्ट की शरण में गए हैं।
राज्य के 33 जिलों में से केवल पांच जिले ही ऐसे हैं जहां खरीदे गए पूरे धान का उठाव या परिवहन हो चुका है। बाकी सभी जिलों में धान की अलग-अलग मात्रा मौजूद है। जिन जिलों से धान का उठाव पूरा हो चुका है उनमें जांजगीर चांपा, धमतरी, कोरिया, सरगुजा, और सूरजपुर शामिल है।
जिन सोसाइटियों में अब तक सूखत की वजह से धान में कमी आई है वहां प्रबंधकों से 2300 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से राशि लिए जाने की नोटिस दी गई है।
इस हिसाब से अभी बचा हुआ धान लगभग 211 करोड़ रुपयों का होता है। 2300 के हिसाब से इसकी कीमत 211 करोड़ रुपए होती है। अगर बारिश से ये पूरा धान खराब होता है तो इसकी जिम्मेदारी भी सोसाइटियों के प्रबंधकों पर होगी।