जैव-विविधता संरक्षण सर्व का नैतिक दायित्व – द्विवेदी

जैव-विविधता संरक्षण सर्व का नैतिक दायित्व – द्विवेदी


राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ) 1 जून । अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता संरक्षण दिवस के अतिशय महत्वा परिप्रेक्ष्य में शासकीय कमला देवी राठी महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय राजनांदगांव के संस्था प्राचार्य डॉ. आलोक मिश्रा के प्रमुख संरक्षण में भूगोल विभाग द्वारा विशेष जनजागरूकता व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित किया गया।

इस अवसर पर विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्ण कुमार द्विवेदी ने विशिष्ट चर्चा विमर्श में बताया कि जैव विविधता का सीधा – सरल अर्थ जीवों की विविधता और वनस्पत्तियों की अधिसंख्य संख्या से है। यह जितनी अधिक होती है वह क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से उतना अधिक समृद्ध होता है।

जैव विविधता का पर्यावरण और पारिस्थितिकीय संतुलन की दृष्टि से भी विशेष महत्व है और मानवीय सभ्यता के लिए इसका महत्व और अधिक होता है। क्योंकि हमारे चतुर्दिक पाए जाने वाले जीव-जंतु, वृक्ष-लताएं यहां तक कि सूक्ष्म जीव विषाणु-जीवाणु सभी समग्र पारिस्थितिकीय तंत्र को संतुलित करते है।

वैसे भी जैव विविधता की अधिकता से पारिस्थितिक तंत्र श्रेष्ठ-श्रेयष्कर रूप से समृद्ध होता है और पर्यावरण को भी शुद्ध रखता है। वास्तव में समृद्ध जैव विविधता से ही भोजन, दवाईयां एवं दैनिकचर्या की सभी आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता भी सुनिश्चित होती है।

सीधे-सरल स्पष्ट शब्दों में मानव का अस्तित्व ही जैव विविधता से प्रत्यक्ष संबंध रखता है। मानव समाज के समस्त आर्थिक, सामाजिक, व्यवसायिक और सांस्कृतिक पहलु भी जैव विविधता से ही परिपूर्ण होते है।

वैश्विक स्तर पर पृथ्वी पर लगभग 130 लाख 92 हजार प्रजातियाँ पाई जाती हैं और एक अनुमान के अनुसार संपूर्ण पृथ्वी पर इनकी संख्या इससे द्विगुणित हो सकती है। एक तरफ उष्णकटिबंध के स्थलीय एवं जलीय भाग, प्रवाल भित्तीय क्षेत्र, आद्र्र भूमि क्षेत्र, पश्चिमी भाग के मानसूनी क्षेत्र, घास के मैदान आदि सभी जैव विविधता के अति संपन्न समृद्ध क्षेत्र माने जाते है।

वर्तमान में बढ़ती आबादी और विकास की अंधी दौड़ के कारण हमारा पारिस्थितिक तंत्र पर अत्यधिक दबाव के कारण जैव विविधता का लगातार हृास बढ़ता जा रहा है।

जिससे अति महत्वपूर्ण जैव – वानस्पितक प्रजातियाँ विलुप्त होती जा रही है। वनों के विनाश, वन्य जीवों का बढ़ता शिकार, प्राकृतिक आवासों का नष्ट होना, अनियंत्रित पशु चराई, बढ़ता जल-वायु-मिट्टी आदि का प्रदूषण, रोगों-बीमारियों-महामारियों का निरंतर बढऩा जीनांतरित बीजों का विस्तार और जलवायु परिवर्तन ने असंख्य जैव प्रजातियों को विलोपित ही कर दिया है। जैव विविधता का संकट निरंतर देश-धरती में विकराल होता जा रहा है।

आगे डॉ. द्विवेदी ने आह्वान किया कि जैव विविधता का संरक्षण सर्व जन-जन का नैतिक दायित्व है। जिसे मानव मात्र ही संरक्षित कर सकता है। विशेषकर स्वस्थाने संरक्षण विधि एवं परस्थाने संरक्षण विधि को अपनाकर प्राकृतिक जैव आवासों, उद्यानों, अभ्यारणों के संरक्षण के साथ-साथ संकट ग्रस्त प्रजातियों, बीज बैंको, चिडिय़ाघरों और जंतु उद्यानों को संरक्षण और संवर्धित करते हुए सुरक्षित करना होगा तभी हम इस मानवीय सभ्यता को बचा सकेंगे। व्याख्यान समापन पर जैव विविधता संरक्षण के संदेश / नारों का वाचन एवं उद्घोष किया गया।

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