नशा दांत से लेकर आंत तक, दिल से लेकर दिमाग तक नुकसान ही नुकसान करता है
राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़,), 29 जून। राष्ट्र-संत श्री ललितप्रभ सागर जी महाराज ने कहा कि जो माता-पिता बच्चों को केवल जन्म देते हैं वे सामान्य हैं, जो बच्चों को जन्म के साथ सुविधाएं-संपत्ति देते हैं, वे माता-पिता मध्यम हैं, पर जो अपने बच्चों को जन्म और सम्पत्ति के साथ अच्छे संस्कार भी देते हैं वही उत्तम माता-पिता कहलाते हैं। उन्होंने अभिभावकों से कहा कि वे अपने बच्चों को इतना सुयोग्य बनाएं कि वे समाज की अग्रिम पंक्ति में बैठने लायक बन सके और बच्चे ऐसा जीवन जीए कि लोग उनके माता-पिता से पूछने लग जाए कि आपने ऐसी कौनसी पुण्यवानी की जो आपके यहां इतनी अच्छी संतान पैदा हुई। उन्होंने कहा कि बच्चों को पढ़ा-लिखाकर केवल शिक्षित ही न बनाएं वरन् संस्कारित भी बनाएं।
संतप्रवर श्री जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ द्वारा सदर बाजार स्थित जैन बगीचा में आयोजित चार दिवसीय जीने की कला प्रवचन माला के समापन पर हजारों श्रद्धालुओं को “जीवन में क्यों जरूरी है कार से पहले संस्कार” विषय पर प्रवचन दे रहे थे। उन्होंने कहा कि बच्चों को कार से पहले संस्कार देने की सीख देते हुए संतश्री ने कहा कि अगर आप अपने बुढ़ापे को सुखी बनाना चाहते हैं तो बच्चों को केवल कार न दें, साथ में संस्कार जरूर दें। उन्होंने कहा कि अच्छे संस्कार दुनिया के किसी मॉल में नहीं मिलते ये तो घर के अच्छे माहौल में मिलते हैं। हमें इतना उत्तम जीवन जीना चाहिए कि हमारा जीवन ही बच्चों के लिए आदर्थ बन जाए।
परिवार का माहौल अच्छा बनाएँ
बच्चों को संस्कारित करने का पहला सूत्र देते हुए संतश्री ने कहा कि परिवार का माहौल अच्छा बनाएँ। बच्चों पर धन के साथ समय का भी निवेश करें। घर में अच्छा साहित्य रखें। घर में सम्मान की भाषा बोलें। नाम के पहले श्री व बाद में जी लगाएं, बड़ों के पांव छुएं, मेहमानों को गेट तक पहुँचाने जाएं, घर में लड़ाई-झगड़े का वातावरण न बनाएं और व्यसनों का कदापि सेवन न करें।
नशे का त्याग करें – संत प्रवर ने कहा कि जहाँ एक अच्छी आदत जीवन को ऊँचाइयाँ दिया करती है वहीं एक बुरी आदत अच्छी जिंदगी को बर्बाद कर देती है। आपका एक गलत शौक पूरे परिवार को शोक में डाल सकता है। व्यक्ति भूलचूककर नशा करने की आदत जीवन में न डाले क्योंकि नशा नाश की निशानी है। नशा दांत से लेकर आंत तक, दिल से लेकर दिमाग तक नुकसान ही नुकसान करता है। अगर इन्हें जीते-जी छोड़ देंगे तो हम जीत जाएंगे नहीं तो ये एक दिन मौत बनकर हमें छोड़ देंगे।
भीतर के भगवान को न चढ़ाएँ नशा-संतप्रवर ने कहा कि जिनके खान-पान का कोई पता नहीं होता उनके खानदान का भी कोई पता नहीं होता। इंसान मंदिर के भगवान को नशा नहीं चढ़ाता तो फिर भीतर के जीते-जागते भगवान को नशा क्यों चढ़ा देता है। जब मैं ग्यारह साल की उम्र में संसार को छोड़ सकता हूँ तो क्या आप इक्यावन साल की उम्र में एक बुरी आदत को भी छोड़ नहीं सकते। पाँच साल का छोकरा समझ गया कि नशा करना बुरी बात है लेकिन पचपन साल का डोकरा अभी भी समझ नहीं पाया कि नशा करना बुरी बात है। उन्होंने कहा कि एक महिला शराबी पति की पत्नी बनने की बजाय विधवा बनना ज्यादा पसंद करेगी क्योंकि शराबी के साथ रहने की बजाय विधवा रहने में ज्यादा सुख है। उन्होंने बहिनों से कहा कि अगर घर में कोई नशा कर रहा है तो एक बार वे घर में युद्ध जैसा मोर्चा खोल लें। खाना बनाना और खिलाना छोड़ दें। जब तक घर व्यसनमुक्त न हो जाए तब तक चुपचाप न बैठें।
संस्कारों के प्रति जागरूक रहिए-अभिभावकों को प्रेरणा देते हुए संतश्री ने कहा कि बच्चों को कार से पहले संस्कार दें। बच्चों को आजादी दें, पर अंकुश भी रखें। उन्हें गलत संगत से बचाकर रखें। शराबी बाप भी अपने बेटे का शराबी बनाना नहीं चाहेगा, पर शराबी दोस्त अपने दोस्त को शराबी बनाकर ही छोड़ेगा। उन्होंने कहा कि अगर बच्चे व्यसनों से घिर गए हैं तो हिम्मत करके उन्हें कहें कि वे या तो व्यसन छोड़ें या घर। बिगड़ेल बच्चों के बाप कहलाने की बजाय बिना बच्चों के रहना ज्यादा अच्छा है। साथ ही उन्हें सम्पत्ति के हक से भी वंचित रखें। अगर आप बच्चों को गलत दिशा में जाने से रोक नहीं सकते तो कृपया करके बच्चों को पैदा ही न करें। अगर आप खुद व्यसन करते हैं तो सावधान! आने वाले कल में आपके बच्चे आपकी बुरी आदतों के चलते आपका नाम लेने में भी शर्म महसूस करेंगे। याद रखें, व्यक्ति की सच्ची दीक्षा उस दिन होती है जिस दिन वह बुरी आदतों का त्याग कर अपने संस्कारों को सुधार लेता है।
संकल्प जगाइए, नशा हटाइए-संतश्री ने कहा कि जिस इज्जत को बनाने में सौ साल लगते हैं, नशे की एक आदत उसे पूरा मटियामेट कर देती है। शुरू में गम को भूलाने वाला नशा बाद में सबसे बड़ा गम बन जाता है। उन्होंने कहा कि गुटखा में से ट हटाइए, बोलिए फिर भी जी करे तो प्रेम से खाइए। दुनिया की सारी चीजें खींचने से लम्बी होती है, पर सिगरेट को खीचों तो…केवल वही छोटी नहीं होती वरन् जिंदगी छोटी होती है। व्यक्ति केवल एक बार इसे बनता हुआ देख ले तो उसे अपने आप नशे से नफरत हो जाएगी। व्यक्ति बुरी सोहबत से बचे, व्यसनों के परिणामों पर चिंतन करे, संकल्प शक्ति जगाए और गुटखा, सिगरेट, शराब जैसे दुव्र्यसनों को हमेशा के लिए लाइफ से गेट आउट कर दे।
जब संतप्रवर ने झोली फैलाकर सत्संगप्रेमियों से नशे का त्याग करने की गुरुदक्षिणा मांगी तो अनेक युवाओं ने आजीवन नशे के त्याग करने के संकल्प लिए और सभी भाई-बहिनों ने हाथ खड़े कर नशे से सदा दूर रहने का मानस मनाया। इस अवसर पर संतप्रवर ने हम सबका एक ही संदेश: व्यसन मुक्त हो सारा देश का नारा दिया।
संत प्रवर की प्रेरणा से श्रद्धालुओं ने उदयांचल संस्था में सहयोग करते हुए वर्ष भर के लिए 60 क्विंटल चावल समर्पित किया।
इस दौरान डॉ मुनि शांतिप्रिय सागर जी महाराज ने कहा कि अगर हम संयमित सात्विक शुद्ध और ताजा भोजन लेंगे तो कभी बीमार नहीं पड़ेंगे। 50 प्रतिशत बीमारियां भोजन की गड़बड़ी के कारण ही होती है। आगम और आयुर्वेद के अनुसार भोजन में तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए – हितकारी भोजन, सीमित भोजन और ऋतु के अनुसार भोजन हो। हमें नाश्ते में मौसम के भरपेट फल खाने चाहिए, दोपहर में सब्जी रोटी दाल चावल सलाद और छाछ लेना चाहिए और शाम को जूस सूप दलिया या खिचड़ी आदि हल्का-फुल्का भोजन करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भोजन करने से पहले मुस्कुराएं, प्रभु का स्मरण करें, बड़े हुए नाखून काट लें और सब को भरपेट भोजन खाने को मिले ऐसी प्रार्थना करें। भोजन करते हुए भूख से थोड़ा कम खाएं, पौष्टिक भोजन लें, मिल बांट कर खाएं और उग्र प्रतिक्रिया न करें। भोजन की थाली में झूठा न छोड़ें। उतना ही लें थाली में कि व्यर्थ न जाए नाली में। भोजन के बाद थाली धोकर के रखें और एक घंटे तक पानी ना पिए। भोजन बनाने वाले को धन्यवाद दें और भोजन के परिणाम पर गौर करें। भोजन के कारण कब्ज एसिडिटी न हो और मोटापा न बढ़े इसका विशेष ध्यान रखें क्योंकि कब्ज और मोटापा सैकड़ों रोगों का कारण है।
उन्होंने कहा कि अगर हम अधिक भोजन, भारी भोजन, जंक फूड और फास्ट फूड का लगातार सेवन करेंगे तो हमारी आंतों की झिल्ली में छेद होने शुरू हो जाएंगे जिससे हमारा ब्लड जहरीला होगा और परिणाम स्वरूप हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाएगी। उन्होंने कहा कि स्वस्थ रहने का सार मंत्र है अन्न को लो आधा, सब्जी और फल को लो दुगुना, पानी पियो तिगुना और हंसी को करो चौगुना।
उन्होंने कहा कि स्वस्थ जीवन का मालिक बनने के लिए बैठकर भोजन पानी लें, खाना चबा चबा कर खाएं, बार-बार खाने की आदत बंद करें, बाजार की चीजों से परहेज रखें, फल और सब्जियां धोकर के काम लें, नशा और मांसाहार का त्याग करें, खाने पीने की चीजों को पॉलीथिन में न रखें, खाली पेट चाय न पिएं, ज्यादा ठंडा और ज्यादा गर्म पेय न लें, डेरी प्रोडक्ट मर्यादा में खाएं, रोज पांच तुलसी या नीम के पत्ते चबाएं, सोने से 4 घंटे पहले भोजन का त्याग करें।
उन्होंने कहा कि तीन सफेद जहर है मैंदा, नमक और शक्कर। इसकी बजाय मोटा आटा, सेंधा या काला नमक और गुड या देसी शक्कर का उपयोग करें। तीन लाल जहर है – चाय, कॉफी, कोल्ड ड्रिंक और तीन लिक्विड जहर है – रिफाइंड तेल, वनस्पति घी और शराब इनका त्याग कर शुद्ध देशी चीजों का सेवन करें।
उन्होंने कहा कि हमारे शरीर में 70 प्रतिशत भाग पानी होता है। अगर शरीर में पानी कम हो जाए तो खून गंदा हो जाता है जिससे किडनी में पथरी, जोड़ों में दर्द, हार्ट में ब्लॉकेज, बालों का गिरना और चेहरे पर दाग जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं। इस तरह के रोगों का समाधान करने के लिए दवाई लेने की बजाय हमें पर्याप्त पानी पीना चाहिए। उन्होंने कहा कि सुबह उठने के बाद खाली पेट दो-तीन गिलास गुनगुना पानी जरूर पिएं इससे पेट की सफाई अच्छे से होती है। खड़े-खड़े और जल्दी जल्दी पानी पीने की बजाय बैठकर और धीरे-धीरे पानी पिएं इससे हमारा पाचन तंत्र और रक्त स्वस्थ रहता है। उन्होंने कहा कि मल मूत्र और पसीने से शरीर से लगभग 2 लीटर पानी निकल जाता है अतः हमें दिन में 2 से 3 लीटर पानी जरूर पीना चाहिए। एक बार में एक या दो गिलास से ज्यादा पानी नहीं पीना चाहिए, पानी पीने के बाद दोबारा पानी पीने में 45 मिनट का अंतर रखना चाहिए, भोजन से आधा घंटा पहले और डेढ़ घंटा बाद ही पानी पीना चाहिए अन्यथा भोजन का पाचन बिगड़ जाता है। रात को ज्यादा पानी पीने से नुकसान होता है।
उन्होंने कहा कि सर्दी में तांबे के घड़े का और गर्मी में मिट्टी के घड़े का पानी पीना चाहिए। फ्रिज का पानी, बर्फ मिला हुआ ठंडा पानी जहर की तरह है जिससे पेट, हृदय और मस्तिष्क की क्षमता प्रभावित हो जाती है। कभी भी गर्म पेय प्लास्टिक या थर्माकोल में न पिएं। उन्होंने कहा कि गर्म पानी से नहाने की बजाए नॉर्मल या ठंडे पानी से नहाना चाहिए इससे चेहरे की चमक सदा बनी रहती है और हमें पानी बचाने के लिए सदा जागरूक रहना चाहिए। कभी भी व्यर्थ पानी न बहाएं क्योंकि जल है तो कल है।
प्रवचन के बीच जब संत प्रवर ने जिएं ऐसा जिएं जो जीवन को महकाए…भजन गुनगुनाया तो श्रद्धालु हाथ उठाकर भक्ति में झूमने लगे।
कार्यक्रम में सांसद संतोष पांडे, संघ अध्यक्ष नरेश डाकलिया, रिद्धकरण जैन, राजेंद्र कोटडिया, गौतम कोठारी, रोशन गोलछा, डॉक्टर पुखराज बाफना, डॉक्टर नरेंद्र गांधी, पुरुषोत्तम ठक्कर, विमल हाजरा , तोरण सिंह चौहान, लख्मीचंद आहूजा, राधा वल्लभ राठी, नरेंद्र लोहिया, भंवर लाल लालवानी, धूल चंद्र दुगढ़ , सुभाष लालवानी, संजय चोपड़ा, उम्मेद चंद कोठारी, इंदर चंद कोठारी, ज्ञानचंद बाफना, मूलचंद भंसाली, संतोष लालवानी, ज्ञान चंद कोठारी विशेष रूप से उपस्थित थे।
सनसिटी में गुरुवार को आओ जीवन को स्वर्ग बनाएं विषय पर होगा प्रवचन समारोह-नरेश डाकलिया ने बताया कि राष्ट्रसंतों ने जैन बगीचा में मंगल पाठ देकर सनसिटी के लिए विहार किया। गुरुवार को सुबह 9:00 से 10:30 तक सनसिटी में आओ जीवन को स्वर्ग बनाए विषय पर विराट प्रवचन कार्यक्रम का आयोजन होगा।