जैन धर्म के प्रमुख पर्व अष्टदिवसीय सिद्ध चक्र महामण्डल विधान एवं विश्व शांति यज्ञ का मंगल शुभारम्भ

जैन धर्म के प्रमुख पर्व अष्टदिवसीय सिद्ध चक्र महामण्डल विधान एवं विश्व शांति यज्ञ का मंगल शुभारम्भ

बिलासपुर (अमर छत्तीसगढ़) जैन धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक अष्टान्हिका पर्व बुधवार से प्रारम्भ हुआ। साल में तीन बार आषाढ़ (जून-जुलाई), कार्तिक (अक्टूबर-नवंबर) एवं फ़ाल्गुन माह (फरवरी-मार्च) के शुक्ल पक्ष में आठ दिन मनाया जाने वाला अष्टान्हिका पर्व जैन धर्म में विशेष स्थान रखता है, इसे शाश्वत पर्व भी कहा जाता है, यह एक तीर्थ यात्रा का पर्व है। भगवान महावीर को समर्पित यह पर्व जैन धर्म के सबसे पुराने त्योहारों में से एक है।

अष्टान्हिका पर्व की शुरुआत मैना सुंदरी द्वारा अपने पति श्रीपाल के कुष्ठ रोग निवारण के लिए किए गए प्रयासों से हुई थी। पति को निरोग करने के लिए उन्होंने आठ दिनों तक सिद्धचक्र मंडल विधान और तीर्थंकरों के अभिषेक जल के छीटें देने तक साधना की थी, इसका उल्लेख जैन ग्रंथों में भी मिलता है।

अष्टान्हिका पर्व के बारे में जैन मतावलंबियों की मान्यता है कि इस दौरान स्वर्ग से देवता आकर नंदीश्वर द्वीप में निरंतर आठ दिन तक धर्म कार्य करते हैं। इस पर्व पर जो भक्त नंदीश्वर द्वीप तक नहीं पहुंच सकते, वे अपने निकट के मंदिरों में पूजा आदि कर लेते हैं। अष्टान्हिका पर्व में सिद्ध चक्र महामण्डल विधान का एक महत्वपूर्ण स्थान बताया गया है। अतः दिगम्बर जैन समाज बिलासपुर द्वारा इस वर्ष भी अष्टान्हिका पर्व में सिद्ध चक्र महामण्डल विधान का आयोजन किया जा रहा है।

जैन समाज बिलासपुर के लिए बड़े ही हर्ष एवं सौभाग्य का विषय है कि विश्व शांति की मंगल कामना के साथ श्री 1008 भगवान आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, क्रांतिनगर बिलासपुर में प्रतिष्ठाचार्य पंडित विमल कुमार सोंरया (टीकमगढ़) के विशेष सान्निध्य एवं विधानाचार्य ब्रम्हचारी पंकज भैया (छतरपुर) के सानिध्य में अष्टदिवसीय सिद्ध चक्र महामण्डल विधान एवं विश्व शांति यज्ञ का मंगल शुभारम्भ बुधवार को हुआ।

आठ दिन चलने वाले इस धार्मिक अनुष्ठान का मंगल शुभारम्भ प्रातः 6:30 बजे मंत्रोचार के साथ देवाज्ञा गुरु आज्ञा के साथ हुआ। सर्वप्रथम मंत्रोचार के माध्यम से देवों और गुरुओं से इस पवित्र अनुष्ठान को प्रारम्भ की अनुमति ली जाती है। तदोपरांत 7:00 बजे प्रतिदिन की भांति मंगलाष्टक, जिनाभिषेक, शांतिधारा संपन्न हुई। तत्पश्चात इस धार्मिक अनुष्ठान में प्रयोग होने वाले कलशों को मंत्रोच्चार के माध्यम से शुद्ध किया गया, फिर इन्ही कलशों के साथ एक घट यात्रा निकली गयी। घट यात्रा में समाज के समस्त महिला पुरुष सम्मिलित हुए, इस यात्रा में महिलाओं ने अनुष्ठान में प्रयोग होने वाले कलशों को अपने सर पर विराजमान कर शोभा यात्रा निकाली जो जैन मंदिर से प्रारम्भ होकर क्रांतिनगर भ्रमण करते हुए वापस क्रान्तिनगर जैन मंदिर पहुँची। मंदिर जी पहुंचकर इन कलशों की स्थापना की गई।

कलश स्थापना के पश्चात् ध्वजारोहण कर सिद्धचक्र महामण्डल विधान की विधिवत शुरुआत की गई। ध्वजारोहण के उपरान्त मंत्रोचार के माध्यम से उस मण्डल की प्रतिष्ठा, शुद्धि एवं सकलीकरण किया गया, जिस पर आठ दिन तक यह अनुष्ठान संपन्न कराया जाएगा। इसके साथ ही इन्द्रों की प्रतिष्ठा और जाप की स्थापना की गई। समस्त कलशों, इन्द्रों और जाप की स्थापना होने पश्चात आगरा से पधारी भजन मण्डली की मौजूदगी में संगीतमय पूजन एवं विधान प्रारम्भ हुआ। विधान में सम्मिलित होने वाले समस्त श्रावकों के लिए प्रतिदिन शुद्ध भोजन की व्यवस्था समाज की तरफ से की गयी है।

सायंकालीन कार्यक्रम की श्रृंखला में सायं 7:00 बजे – संगीतमय आरती एवं भजन का आयोजन किया गया, जिसमें बच्चो से लेकर बूढ़ों तक सभी ने भक्ति में डूबकर झूम-झूम कर प्रभु भक्ति की। इसके पश्चात विधानाचार्य ब्रम्हचारी पंकज भैया ने शास्त्र का प्रवचन किया।

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