चातुर्मास शुरू
राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़)13 जुलाई। हर चीज की एक सीमा होती है और उस सीमा को लांघना नहीं चाहिए। सीमा लांघने से ही अघटन होता है। हम जीवन में कितना अतिक्रमण कर चुके हैं। व्यक्तिगत जीवन में कोई सीमा ही नहीं रह गई है। हमें यह पता ही नहीं चलता कि हम अपने व्यक्तिगत जीवन में कितना अतिक्रमण कर चुके हैं। उक्त उद्गार आज व्याख्यान वाचस्पति शासन दीपक श्री हर्षित मुनि जी ने व्यक्त किए।
मुनि श्री ने फरमाया कि जो व्यक्ति स्वयं के जीवन की ओर ध्यान नहीं देता और अपने जीवन को नहीं सुधारता, वही व्यक्ति दूसरे के जीवन में दखल देता है और उसे सुधारने का प्रयास करता है। अगर प्रतिक्रमण करना चाहते हैं तो इन सब चीजों का अतिक्रमण दूर करें। यह जीवन हमारे हाथ से ऐसे बहता जा रहा है जैसे कि पानी। उन्होंने कहा कि ऐसा नियम बनाएं कि हम कभी भी बड़ों के सामने में ऊंची आवाज में बात ना करें। यदि हम ऐसा करेंगे तो हमारे बच्चे भी हमारा अनुसरण कर बड़ों के सामने में ऊंची आवाज में बात नहीं करेंगे। बच्चों को ज्यादा मत टोकिए , उनके जीवन में अतिक्रमण करने का प्रयास मत कीजिए। समय पर प्रतिक्रमण कीजिए।
हर्षित मुनि ने कहा कि हमारी आवश्यकता बढ़कर शौक हो जाती है और शौक बढ़कर आदत और फिर यही आदत व्यसन रूप में तब्दील हो जाती है। उन्होंने कहा कि आपने अतिक्रमण कर अपने पैरों में खुद ही कुल्हाड़ी मार दी है और अब दुखी होने से क्या फायदा। उन्होंने कहा कि जो प्राप्त है वही पर्याप्त है। इसी पर संतुष्ट होना सीखिए । हमें व्यापार का अतिक्रमण हो गया है, ऐसे कहकर प्रतिक्रमण करें तभी जीवन में सुधार हो सकता है। अपनी सीमा बांधिए। सारी चीजें जब सीमित होती है तो कोई अघटन नहीं होता।
मुनि श्री ने कहा कि प्रत्याखान लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि शहर में कई आवारा पशु घूमते हैं किंतु यदि म्युनिसिपल्टी वाले निकलते हैं तो जिनके गले में पट्टा नहीं होता, वे उन्हें ही पकड़ते हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्याखान यदि हम नहीं लेते तो हम पशुओं से भी नीचे चले जाते हैं। यदि हम प्रत्याखान लेते हैं तो हम वर्तमान में जो जीवन जी रहे हैं, उससे भी ऊंचा जीवन जीने लगेंगे।