माया के जाल से निकल पाना असंभव – जैन संत हर्षित मुनि का प्रवचन

माया के जाल से निकल पाना असंभव – जैन संत हर्षित मुनि का प्रवचन

राजनांदगांव (अमर छत्तीसगढ़) 16 जुलाई। मनुष्य एक बार मायाजाल में फंसता है तो फंसता ही चला जाता है, फिर उससे निकलने के लिए उसे कोई रास्ता नहीं सूझता। उन्होंने कहा कि जिस तरह मकड़ी अपने ही बिछाए निज जाल में फंस जाती है, ठीक उसी तरह मनुष्य भी माया के जाल में एक बार जो फंसता है फिर उससे निकल नहीं पाता।
मुनि श्री ने कहा कि जो व्यक्ति कुछ कर सकता है किंतु वह उसे ना कर अपनी शक्ति को छुपाता है, जबकि वह सामने वाले की मदद भी कर सकता है। उन्होंने कहा कि आप अपनी शक्ति हो छुपाते हैं इसलिए छुपाते-छुपाते वह दब जाती है। हम अपने मनोबल को भी छुपाते हैं, यदि उसे ना छुपाए तो हम सफलता प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम सफल हो या ना हो, यह अलग बात है किंतु हम कोशिश करना तो ना छोड़ें। हम अपने कर्मों को बांधते जाते हैं।
उन्होंने कहा कि हम अपने मन के प्रति सच्चे रहें। हम क्या कर रहे हैं और वह सही है कि गलत इसका विवेक हमें होना चाहिए। पाप की कमाई तो जाती है किंतु वह अपने साथ मूलधन को भी ले जाती है। उन्होंने कहा कि हमारा मन पुरुषार्थ करने का बनना चाहिए तो हम अवश्य पुरुषार्थ कर पाएंगे। हम माया से जितना बचेंगे उतना हमारे लिए अच्छा होगा। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।

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