अपना लक्ष्य स्पष्ट रखिए, फिर आपको वहां पहुंचने से कोई रोक नहीं पाएगा: साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी

अपना लक्ष्य स्पष्ट रखिए, फिर आपको वहां पहुंचने से कोई रोक नहीं पाएगा: साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। आपको सितंबर के महीने के कहीं जाना हो तो आप दो महीने पहले रेलवे स्टेशन जाकर टिकट लेते हो। आपको 7 तारीख को पहुंचना हो तक आप 5 तारीख को ही रवाना हो जाते हो। 3-4 महीने पहले से सब तय रहता है। आपको हमेशा अपना लक्ष्य पता होना चाहिए। जीवन में आपकाे क्या करना है, यह तय होना चाहिए। यह बातें मंगलवार को न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी ने कही।

साध्वी स्नेयहशाश्रीजी ने कहा कि अगर आपकाे कहां जाना है, यह पता नहीं होगा तो आप रेलवे स्टेशन जाकर क्याें जाओग, वहां जाकर क्या करोगे। आपका गोल क्लियर रहना चाहिए। एक बार एक आदमी ट्रेन में सफर कर रहा था। सफर के दौरान टिकट चेकर करने टीटी आया, उसने टिकट मांगी। उस आदमी ने अपने शर्ट के जेब में देखा, पैंट के जेब में देखा, बैग में देखा, बैग से पूरा सामान निकाला कर छान मारा और सीट के नीचे देखा पर टिकट मिला नहीं। इतना देखकर टीटी से सोचा वैसे तो यह आदमी इमानदार लग रहा है, उसने कहा कि रहने दो, मुझे पता है तुमने टिकट ली है। काेई बात नहीं अाप अपनी जगह पर बैठ जाओ। इस पर उस आदमी ने कहा कि यह तो आपकी बड़ी कृपा हो गई कि आप बात समझ गए, पर मुझे चिंता इस बात की है कि टिकट में उस स्टेशन का नाम लिखा है, जहां मुझे उतरना था। मुझे उस जगह का नाम नहीं मालूम है। वैसे ही प्रवचन सुनने आप लोग आते है, यहां बैठकर प्रवचन भी सुनते हो, जब तक सुनते हो आपको मोक्ष की प्राप्ति चाहिए होती है। जैसे ही यहां से उठकर आप बाहर जाते हो, आप सब भूल जाते हो।

मोक्ष का टिकट लेने चाहिए पूर्णता

साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने कहा कि अगर आपको मोक्ष का टिकट चाहिए तो सबसे जरूरी है कि आपके अंदर पूर्णता होनी चाहिए। क्योंकि जो जैसा है, वो वैसा ही देखता है। भगवान इंद्र देवताओं के राजा है, वे हमेशा आपार सुख में रहते है। उन्हें सभी हमेशा सुख में ही नजर आते है। हम अपनी आंखों से देखें तो हम लोगों को काला, गोरा और सांवला रंग में देखते है। वहीं, परमात्मा जब देखते है तो वे पूर्णता देखते है। उनके लिए हर व्यक्ति, जीव-जन्तु पूर्ण है। उन्हें डायरेक्ट दिखता है, उन्हें चश्मा लगाने की जरूरत नहीं है। वे अंदर की आंखों से देखते है। जब हम अपूर्ण है, तब भी वे हमें पूर्ण कैसे देख सकते है। ऐसा इसीलिए क्योंकि उनके अंदर हमारे लिए प्रेम है। जैसे कि मां के बिना हम नहीं हो सकते वैसे ही गुरु के बिना ज्ञान नहीं हो सकता। पुस्तकें पढ़कर आप विद्यवान तो बन जाओगे पर गुरु ही आपको ज्ञानी बना सकते है। गुरु ही अापको पुस्तक का रहस्य बताएंगे। ज्ञानी का मतलब होता है जीने वाला। आप ज्ञानी बन जाओगे तो आप जीना सीख जाअोगे।

जितना मिले उसे रखो नहीं मिले फिर खुश रहो

साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने कहा कि एक साधु को जितना मिले वह रख लेता है। यदि उसे किसी दिन कुछ नहीं मिलता तो भी वे अपना निर्वाह कर लेते है। क्योंकि केवल त्याग करके कोई साधु नहीं बन सकता है। वे वैरागी होने के बाद भी त्यागी है और त्याग नहीं करने पर भी वो वैरागी है। साधु उपवास किए बिना ही उपवासी होता है। त्याग सरल है, पर वैराग्य कठिन। क्योंकि वैराग्य मतलब इच्छाओं का त्याग है। आपके पास एक घर है पर साधु-संतों के लिए हर घर उनका होता है। ऐसा कई बार हो चुका है कि जब संत किसी के घर जाए तो वह संतों को घर देकर खुद किसी पेड़ के नीचे सो जाता है। यह वैराग्य की महत्ता है, इसलिए लोग साधु-संतों के पीछे त्याग करने को तैयार रहते है। साधु कभी भी मन बनाकर नहीं निकलते है। वो तो बस निकल जात है और जो मिला जैसा मिला उसमें वह संतोष करते है। वैरागी जीवन सरल नहीं होता। पर उन्हें खुद पर विश्वास होता है कि वे परमात्मा की राह पर चलेंगे तो सब कुछ अच्छा ही होगा। परिस्थिति आपके अधीन नहीं हो सकती, आपको मनोस्थिति बदलने की जरूरत है।

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