मनुष्य का जीवन काम, नाम एवंरसना में ही टिका है- हर्षित मुनि

मनुष्य का जीवन काम, नाम एवंरसना में ही टिका है- हर्षित मुनि

नवनिर्मित समता भवन संतों के प्रवचन से धर्ममय हुआ

मनुष्य का जीवन काम, नाम एवं
रसना में ही टिका है- हर्षित मुनि

नवनिर्मित समता भवन संतों के प्रवचन से धर्ममय हुआ

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 20 जुलाई। शहर के गौरव पथ स्थित नवनिर्मित समता भवन में इन दिनों जैन संतों की वाणी से पूरा परिसर धर्ममय हो गया है । यहां रत्नत्रय के महान आराधक, परमागम रहस्यज्ञाता, परम पूज्य श्रीमद जैनाचार्य श्री रामलाल जी म.सा. की महती कृपा से उनके आज्ञानुवर्ती व्याख्यान वाचस्पति शासन दीपक श्री हर्षित मुनि जी म.सा. एवं सेवाभावी श्री धीरज मुनि जी म.सा. का चातुर्मासिक प्रवचन चल रहा है। श्री हर्षित मुनि ने कहा कि मनुष्य का जीवन काम, नाम एवं रसना में टिका है।
मुनि श्री ने कहा कि हम कोई भी काम करते हैं और बाद में कोई गलत काम हो जाने पर पश्चाताप करते हैं। हमारी पश्चाताप की बुद्धि पाप करने के बाद ही आती है । यदि यह बुद्धि पश्चाताप करने के पहले आ जाती तो पाप होता ही क्यों? उन्होंने कहा कि ऐसा कार्य करना चाहिए जिससे कि हमें पश्चाताप न करना पड़े। हमें हर कार्य सोच समझकर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम इस दुनिया में रहते हैं तो हमें अपने नाम की चिंता रहती है। नाम के लिए हम कुछ भी कर सकते हैं। हमें अपना नाम इतना पसंद आता है कि हमारे नाम के आगे हम किसीका नाम भी पसंद नहीं करते। यही हाल हमारे रसना का भी है। अधिकांश लोगों का जीवन रसना का स्वाद चखने में ही चला जाता है। एक ही तरह का खाना हमें अच्छा नहीं लगता। हम खाना बार-बार बदलकर खाना चाहते हैं। हमें खाना पसंद है इसलिए हमने सभी चीजों को खाने से जोड़ दिया है, चाहे वह त्यौहार हो या फिर कोई अन्य समय हो। बदल बदलकर खाने की वजह से ही कई घरों में कलह उत्पन्न हो जाता है। खाना ही कई घरों में कलह का कारण होता है। हम अच्छा खाना चाहते हैं और हर खाने में कमी निकालते रहते हैं, इसीलिए कलह होती है। हमारे मन में यह होना चाहिए कि हमें जो प्राप्त है वही पर्याप्त है। साधना भी यही कहती है कि आप कितने जागृत हुए हैं। व्यक्ति को जिस चीज में जितनी आसक्ति होती है, परम सत्ता उसे उसी चीज में पहुंचा देती है। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।

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