रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। हम सबको सभी चीजें पूर्ण चाहिए। कोई चीज अधूरी नहीं चाहिए, वैसे ही हम कोई काम अधूरा नहीं करना चाहते है। आप पूरा पाना चाहते हो, पर इस दुनिया में कोई चीज पूरी नहीं मिल सकती है। क्योंकि संसार का मतलब ही अधूरा हाेता है। यह संसार का नियम ही है कि हमें जो मिलता है, अधूरा ही मिलता है। यह बातें बुधवार को न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी ने कही।
संसार का शाब्दिक अर्थ ही संसरणशील होता है। संसरणशील का मतलब होता है चलते जाना। आप अभी जहां है, कल आप भी वहां नहीं रहोगे। आज आप नीचे हो कल ऊपर जाओगे और आज अगर आप ऊपर हो तो कल नीचे भी आओगे। इस संसार में अगर हम भाग-दौड़ करते रहेंगे और संसार से ही सांसरिक चीजें मांगते रहेंगे तो हमको ज्यादा कुछ मिलने वाला नहीं है। परमात्मा की वाणी है कि पराई वस्तु के निमित्त से प्राप्त हमारी पूर्णता ठीक वैसी ही है कि जैसे किसी से उधारी मांग कर कोई आभूषण पहनने से सुख मिलता है। इससे जो अनुभव मिलता है वह क्षणिक सुख है। इस दुनिया में केवल आत्मा हमारी खुद की है, जबकि शरीर भी खुद का नहीं है। एक भी चीज खुद की कभी नहीं हो सकती है। सब पराया है। शरीर भी एक दिन साथ हमारा साथ छोड़ देगा। दो लड़के आपस में बात कर रहे होते है।
दुनिया को पास और परमात्मा को दूर कर दिया
एक लड़का दूसरे को बताता है कि उस लड़की ने शादी कर ली है। दूसरा आश्चर्य होकर पूछता है कि उसने कब और किससे शादी की है। पहले ने बताया कि उसने पोस्टमैन से शादी कर ली है। दूसरे ने पूछा पोस्टमैन से क्यों की। इस पर पहले ने बोला कि लड़की ने उसे खुद ही बताया है। उस पर मैंने उस लड़की से पूछा कि तुझे तो कोई अच्छा लड़का आसानी से मिल जाता, फिर तुने पोस्टमैन से शादी क्यों कर ली। लड़की ने बताया कि मेरी सगाई हो गई है, जिससे हुई वह लड़का विदेश में रहता था। वह जब भी मेरे लिए कोई गिफ्ट भेजता था तो मुझे यहां तक पोस्टमैन पहुंचाता है। तो जो मेरे नजदीक है मैंने उसे स्वीकार कर लिया। वैसे ही परमात्मा आपको दूर लगते है और संसार आपको अपने नजदीक लगता है। जैसे ही कुछ मिठाई मुंह में डालो तो तुरंत मीठा स्वाद आता है। किसी चीज को छूने से तुरंत समझ में आ जाता है कि वह चीज कैसी है। जैसे ही कान में कोई शब्द जाता है, तुरंत समझ में आ जाता है कि अच्छा है या बुरा। मतलब संसार का सुख हमको नजदीक से प्रतीत हो रहा है। वहीं, भगवान से मिलने वाला सुख दूर लगता है। सगाई भगवान से की और शादी संसार के पोस्टमैन से कर ली।
आग को पहचान लिया पर दुनिया को नहीं
साध्वी स्नेयहशाश्रीजी ने कहा कि पूजा-पाठ से बड़ी-बड़ी बला टल जाती है। संसार एक बला है और प्रवचन कला है। साधु-संतों के पास कोई कला हाेती है, जिसे सीखने लोग उनका पास जाते है, उनका प्रवचन सुनते है। आपको कुछ सीखना होता है तो अाप घर से निकलकर बाहर जाते हो। घर में बैठे-बैठे आॅनलाइन डिलीवरी के अलावा कुछ नहीं मिल सकता है। भगवान महावीर की स्तुति में भी यह संदेश है कि यह दुनिया एक दावानल है। आग तो फिर भी आसानी से बुझ जाती है लेकिन दावानल नहीं बुझ सकती है। जब आप आग समझ जाए तो उसे छूने की गलती आप नहीं कर सकते हो। ऐसा नहीं हो सकता कि आप बहुत दिनों तक आग नहीं देखे तो उसे भूल जाओ। आग दिखे और हम हाथ डाल दे ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि आग को हमने आग समझ लिया है। विडंबना की बात है कि हमने दुनिया को हमने अब तक आग नहीं समझा है।