शरीर स्वयं का इलाज स्वयं ही कर लेती है
राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 30 जुलाई।रत्नत्रय के महान आराधक, परमागम रहस्यज्ञाता, परम पूज्य
श्रीमद जैनाचार्य श्री रामलाल जी म.सा.के आज्ञानुवर्ती व्याख्यान वाचस्पति शासन दीपक श्री हर्षित मुनि ने कहा कि योग का असर शरीर पर पड़ता है और साधना का असर आत्मा पर। साधना पर प्रयोग होता है तो इसका असर खुद पर पड़ता है, अंतरात्मा पर इसका असर पड़ता है । साधना अंतरात्मा के बाद रोगों का इलाज करती है।
समता भवन में चल रहे अपने नियमित प्रवचन में संत श्री ने कहा कि सगे संबंधी इस नश्वर देह के होते हैं, आत्मा का कोई सगा संबंधी नहीं होता। वह अजर अमर है। न वह आग से जलती है ,नहीं मौत से मरती है। उसे कोई डरा भी नहीं सकता। साधना से ही उस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। मुनि श्री ने कहा कि जब कहीं दर्द होता है और हम उस पर ध्यान दे रहे हैं तो इस दर्द का अहसास बढ़ जाता है किंतु यदि हम उस पर ध्यान ना देकर कहीं और ध्यान देते हैं तो यह दर्द कहां गायब हो जाता पता ही नहीं चलता। शरीर स्वयं का इलाज स्वयं ही कर लेती है।
श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हमने अपने शरीर की ताकतों को स्वयं ही सुला दिया है। साधना से इसे सक्रिय किया जा सकता है। हम छोटी-छोटी चीजों पर ध्यान देते हैं इससे ही दर्द बढ़ता है। मन को साधिए ,शरीर को साधिए तो अंतरात्मा भी सध जाएगी। उन्होंने कहा कि हम जितनी छोटी छोटी बातों पर ध्यान देते हैं ,उतना ही हम दुख पाते हैं और यह हमें परेशान करती रहती है। उन्होंने कहा कि छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देना छोड़िए।
उन्होंने कहा कि भावनाओं की कदर करना सीखिए। संबंधों को पैसे से रिश्तों को मत तौलिए। रिश्तों की वास्तविक मिठास भावनाओं से ही आती है। आपका रिश्तेदार कुछ ऐसा दे जाएगा कि पैसे से आप उसे प्राप्त नहीं कर पायेगे। उन्होंने कहा कि आप साधना के लिए समय निकालिए और कम से कम आधा घंटा तो साधना कीजिए। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।