जरूरत से ज्यादा बाेलने वालों का महत्व कम होता है, कम बोलने वालों को सभी सुनते है: साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी

जरूरत से ज्यादा बाेलने वालों का महत्व कम होता है, कम बोलने वालों को सभी सुनते है: साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। कोई व्यक्ति बहुत ज्यादा बाेले तो उसका महत्व उस सभा में नहीं रह जाता है। आप घड़ी के कांटों को देखा होगा, सेकंड का कांटा सबसे ज्यादा घूमता है और हम उस पर ध्यान नहीं देते। वैसे ही मिनट का कांटा उससे कम घूमता है फिर भी हम समय-समय उसे देखते रहते है। पर घंटे का कांटा सबसे कम घूमता है अौर हम हमेशा उस पर नजर बनाए रखते है। यह बातें शनिवार को न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी ने कही।

उन्होंने आगे कहा कि वैसी ही कुछ व्यक्ति एेसे भी होते है जो केवल सुनते रहते है और समय आने पर कुछ ही शब्द कहते है जो सभा के लिए महत्वपूर्ण होती है। उनके शब्दों को सभी सुनते है और महत्व भी रखते है। कम बोलने वाला व्यक्ति जब बोलता है तो लोग सोचते है कि कही हमसे कुछ गलती हुई होगी तभी यह बोल रहे है। तब उनकी बातों को वे तुरंत ध्यान देते है और उनका पालन भी करते है। ज्यादा शक्कर का प्रयोग करने से शुगर हो जाती है। वैसे ही आप दूध में ज्यादा शक्कर मिला दो उसका स्वाद ही बदल जाएगा। वह पीने लायक भी नहीं होता, बेस्वाद हो जाता है। लाेग सोचते है कि ज्यादा बोलेंगे तो कहीं न कहीं वे शब्द जरूर काम आएंगे पर उनकी बातों पर कोई ध्यान नहीं देता। वहीं, जब व्यक्ति नहीं बोलता तो नहीं बोलता और कई बार जब बोलना शुरु करता है तो जरूरत से ज्यादा भी वह बोल देता है। वैसे ही हमें ज्यादा नहीं बाेलना चाहिए। हमें कम से कम में इतना ही कहना है कि हमारा काम बन जाए। ज्यादा बाेलने से भी कई बार बनता काम भी बिगड़ जाता है।

संसद के निर्णय पर टिप्पणी न करें

साध्वीजी कहते हैं कि मग्नता के बिना पूर्णता मिलने वाली नहीं है। मग्नता को लाने के लिए कहा जाता है कि विकथा बंद करो और प्रभु की कथा शुरू करों। हमें विकथाओं का त्याग करना है। राजकथा, देशकथा, स्त्रीकथा और भक्तकथा, यह चार प्रकार की विकथा है। राजकथा यानी देश की राजनीति और अर्थव्यवस्था की बातें। इन बातों से हमें लेना-देना नहीं होता है फिर भी घर और चौक-चौराहों में राय-मशवरा करते रहते है। जबकि आपकी कोई राय संसद के अंदर नहीं चलेगी। आप देश की राजनीतिक पार्टी और उनके निर्णयों पर सवाल उठाते रहते हो, उनकी निंदा करते रहते हो। आपके अंदर उस सभा के अंदर जाकर बोलने की ताकत नहीं होती है फिर भी आप टाइमपास करते रहते हो। वहीं, देशकथा यानी कहां पर क्या हो रहा है, खबरों की बात। लोग कहते है कि इनको पहले से ही तैयारी करनी थी, तब यह हादसा टल सकता था। आपसे सलाह मांगी नहीं गई है। आपको सलाह देना है तो आप वहां पहले पहुंचे और बताएं कि अब यहां भूकंप आने वाला है, कहीं बाढ़ आने वाली है और कहीं ज्वालामुखी फटने वाला है। आप कर तो कुछ नहीं सकते, सिर्फ घर बैठ कर पंचायती करते रहते हो। इसे ही विकथा कहा गया है।

फालतू की बातों में समय बर्बाद न करें

साध्वीजी कहती है कि तीसरा है स्त्रीकथा, इसमें पुरूष स्त्री की और स्त्री पुरूष की बात करती है। अक्सर शादी-ब्याह के मौके पर यह देखा जाता है कि जब कोई बारात निकलती है, तो सभी लोग उसे देखने पहुंचते है। महिलाएं खासकर अपनी बालकनी में यह देखने खड़ी रहती है। उनका कोई संबंध नहीं होता फिर भी दूल्हे को देखकर उस पर टिप्पणियां करने लग जाते है। दूल्हा बहुत ही सुंदर है, बहुत ही जोरदार है, किसके यहां का है यह पता नहीं पर है बहुत खूबसूरत। यह फालतू की बात है। वैसे ही कई शादी में जाकर लोग जोड़ियाें पर बात करना शुरू कर देते है। वे तुलना करना शुरू कर देते है कि दूल्हा लंबा है, दूल्हन छोटी है, दूल्हा काला है, दूल्हन गोरी है। आपको इन सबसे क्या लेना देना है, जीवन का निर्वाह दूल्हा-दूल्हन को करना है। दोनों के घर वालों ने आपस में बात करके उनकी सहमति से शादी कराई है। यह स्त्रीकथा है। वहीं, चौथा है भक्तकथा। यह भोजन के विषय में है। हमंे, हमेशा भोजन की बातें नहीं करनी चाहिए। यह व्यंजन ऐसा है, वैसा है। यह हमारे जीवन के लिए आवश्यक है, जितनी जरूरत हो उतना और जितना मिले उसे खाना चाहिए।

तप के लाभार्थी

धर्मराज बेगानी धार्मिक एवं परमार्थिक ट्रस्ट के ट्रस्टी मेघराज बेगानी तथा आध्यात्मिक चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विवेक डागा ने बताया कि शनिवार को पंचपरमेष्ठी तप और 18 पाप स्थानक निवारण तप किया गया। तप के लाभार्थी परिवार अगमदेवी गजराज, प्रियेश कुमार जी पगारिया परिवार शैलेंद्र नगर, श्रीमान पदमचंद, कमलचंद बोथरा परिवार रायपुर प्रकाश, अनिमेष कोठारी परिवार मुंगेली रहे। वहीं, नेमीनाथ भगवान के जन्मकल्याणक महोत्सव के लाभार्थी फूलचंद, मुनियाबाई लुणावत परिवार रहे।

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