आनंदित रहना सीख जाओ, आपके सारे दुख-दर्द खत्म हो जाएंगे: साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

आनंदित रहना सीख जाओ, आपके सारे दुख-दर्द खत्म हो जाएंगे: साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। न्यू राजेंद्र नगर स्थित महावीर जिनालय में भव्य आध्यात्मिक चातुर्मास के दौरान साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने शनिवार को मग्नता और स्थिरता के विषय में श्रावकों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि एक बार आदमी अपने अंदर ही डुबकी लगाए तो उसे वहां आनंद मिल जाएगा। अानंद, मजा और खुशी तीनों का अनुभव अलग-अलग है। पहला मजा है, यह बाहरी होता है। दूसरा होता है सुख, यह भौतिक वस्तुओं से प्राप्त होता है। वहीं, तीसरा आनंद है, यह आत्मा से आता है। यह हमें बाहर नहीं मिल सकता है।

आनंदित होकर सब दुख-दर्द भूलें

साध्वीजी कहती है कि भक्ति भाव में लीन होकर जब कोई व्यक्ति थिरकने लगता हैं तो यह समझ लीजिए कि वह आनंदित है। वह आनंद के साथ नाचने लगे तो उसे रोकना भी मुश्किल हो जाता है। उसके हाथ पैर थक भी जाए तो भी उसे आनंदित रहते हुए किसी दर्द का एहसास नहीं होता। एक बात और है। अगर हमारी आत्मा में इंद्रियों का प्रेशर बढ़ जाता है और उसे कंट्रोल करने के लिए हमें उपवास रखना पड़ता है। जब टीवी मोबाइल देखने से भी आपका मन उबने लगे तो समझ जाना आपका तप सफल हो गया। हमारा जीवन गुलाब के फूल की तरह होता है। यह कोमल होता है लेकिन यह गुलाब चारों तरफ कांटों से या घिरा होता है। जो व्यक्ति गुलाब लेने जाता है उसे उन कांटों से भी जूझना पड़ता है, जो उसके आसपास होते हैं। इतने कांटो के बीच रहकर भी वह मुस्कुराते रहता हैं। यह भी एक कला है। वह अगर जरा भी झुके तो भी उसकी मुश्किलें बढ़ जाती है। परिस्थिति कितने भी मुश्किल हो लेकिन वह हमेशा मुस्कुराते रहता हैं। लोग जबरदस्ती टेंशन, तनाव और लोड लेते हैं। इसे उन्हें कोई देता नहीं है। टेंशन के दौरान भी आप अपने अंदर झांके तो आपको आनंद का एहसास होगा। आपको लोड लेने की कोई जरूरत नहीं है।

नाम आपका नहीं, शरीर का है

साध्वीजी कहती है कि कोई कुछ बोले तो यह सोचना कि वह आपके शरीर को बोल रहा है। कोई अगर आपको नाम से बोले तो भी आप ही सोचना कि वह आपके शरीर को बोल रहा है। क्योंकि आत्मा का कोई नाम नहीं होता, कोई पहचान नहीं होती। पहचान शरीर की होती है, नाम शरीर का होता है। जान रहते तक ही शरीर का नाम रहता है। जब भी सम्मान मिले या अपमान भी हो तो आप सब को अपने अंदर पचा लो। कोई अच्छा बोले तो अंदर से गुदगुदी लगती है। बुरा बोले तो अंदर से कांटे चुभते हैं। सोचो इस परिस्थिति में गुलाब कैसे मुस्कुराते रहता है, इससे हमें सीखना चाहिए। वह धूप, हवा, पानी और ठंडी सब सहन करता है, फिर भी वह मुस्कुराता रहता है। कोई कभी गुस्से में आकर भी आप से बात करें तो आपको सुलझा हुआ बने रहना है। आज जिस परिस्थिति में वह आपसे बात कर रहा है, कल वह परिस्थिति नहीं होगी। आज जिस तरह आप का अपमान हुआ है कल होगा कि नहीं होगा ऐसा कहा नहीं जा सकता पर रोज ऐसा नहीं हो सकता। कभी माता-पिता आपको डांट दें तो मुस्कुरा कर उनकी बातों को टाल दीजिए। जब वह देखेंगे तो उन्हें लगेगा कि आप में सुधार आ गया है। जब डांट पड़े आपको गुस्सा आएगा आप फिर उसी गलती को दोबारा करेंगे। आप तनाव में रहेंगे तो ऐसा होगा ही।

अक्षयनिधि, समवशरण और कषाय विजय 16 से

मेघराज बेगानी धार्मिक एवं परमार्थिक ट्रस्ट के ट्रस्टी धर्मराज बेगानी तथा आध्यात्मिक चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विवेक डागा ने बताया कि 16 अगस्त से अक्षयनिधि, समवशरण और कषाय विजय तप प्रारंभ होने जा रहा है। इस अभी तप का संपूर्ण लाभ श्रीमान पारसचंदजी बसंती देवी, प्रवीण जी, पायल जी, तनिष्का, दीक्षा, लक्ष्य मुणोत परिवार ने लिया है।

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