पाप और धर्म, दाेनों मन से शुरु होती है लेकिन पाप आसान और धर्म उतना ही कठिन होता है- साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

पाप और धर्म, दाेनों मन से शुरु होती है लेकिन पाप आसान और धर्म उतना ही कठिन होता है- साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। न्यू राजेंद्र नगर स्थित महावीर जिनालय में भव्य आध्यात्मिक चातुर्मास के दौरान साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने सोमवार को कही। मग्नता के विषय पर उन्होंने कहा कि स्थिरता के बिना मग्नता नहीं आती और मग्नता के बिना आप पूर्ण नहीं बन सकते। आप मंदिर जाते हो और भगवान की परिक्रमा लगाते समय कोई आपके सामने आ जाए तो आप भगवान की बजाए उस व्यक्ति पर ध्यान देने लग जाते हो जो आपके रास्ते में आया हो। आप उस पर क्रोधित हो जाते हो जबकि आपका मन भगवान की ओर ही रहना चाहिए।

भगवान की पूजा और तप दोनों अलग-अलग चीज होती है। तप काया से होती है और भगवान की पूजा मंदिर में होती है। पाप को व्यक्ति मन, वचन और काया से करता है वहीं, पूजा भी मन वचन और काया से करता है। पाप और धर्म दोनों की शुरुआत मन से ही होती है। जब तक आपका मन नहीं होगा आप वचन और काया की तरफ नहीं बढ़ोगे। जैसे तलवार की धार पर चलना कठिन होता है, वैसे ही भगवान की पूजा करना उससे कहीं ज्यादा कठिन होता है।

मग्न रहो और खुद पर विश्वास रखो

साध्वीजी कहती है कि एक बार सिद्ध बाबा के पास नगर की रानी आती है और कहती है कि बाबा आप जिसे अपना आशीर्वाद दे दें, वह धन्य हो जाता है, उसे कभी कोई समस्या नहीं होती है। आप मुझे भी ऐसा कोई आशीर्वाद दे दीजिए जिससे कि मैं भी धन्य हो जाऊं। अभी मैं एक समस्या में हूं, महाराज मुझसे रूठ गए हैं और मुझसे बात नहीं कर रहे हैं। आप मुझे ऐसा कोई आशीर्वाद दे दीजिए कि मेरा काम बन जाए महाराज के बिना मेरा मन नहीं लगता। बाबा ने रानी को एक ताबीज की और कहा की तुम्हारा काम हो जाएगा और इसके 3 दिन बाद राजा मान जाते हैं। इस पर रानी पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवा देती है कि बाबा के आशीर्वाद से आपके सभी बिगड़े काम बन जायेंगे। आपको कभी कोई समस्या नहीं होगी। इन बातों को सुनकर नगर के लोग बाबा के पास जाने लगे और उनमें से एक ने बाबा से पूछा कि आपने ऐसी कौन सी ताबीज दी कि सिर्फ 3 दिन में ही राजा मान गए। बाबा ने किसी को कुछ नहीं बताया। लोगों के बहुत पूछने के बाद उन्होंने बताया कि मैंने कोई ताबीज नहीं दी। यह बात रानी के कानों तक पहुंची और उन्होंने ताबीज को खोल कर देखा तो उसमें सिर्फ कागज का एक टुकड़ा था जिसमें कुछ लिखा भी नहीं था। इस पर रानी, बाबा के पास गई और उनसे पूछा कि बाबा इसमें तो ऐसा कोई मंत्र या कोई भी शब्द नहीं लिखा हुआ है तो मेरा काम कैसे हो गया। बाबा ने बताया यह आप दोनों का आपसी मामला है और बात करने से ही सुलझ सकता था। आपने ताबीज के शक्ति की प्रति मग्न होकर जैसा सोचा वैसा ही हुआ।

कल पर कोई काम न टाले, सब आज करें

साध्वीजी कहती है कि आप दुकानों में अक्सर यह लिखा हुआ देखते हैं कि आज नगद और कल उधार। जिसे माल लेना होता है वह नगद देकर ही लेता है, वह कभी कल का इंतजार नहीं करता कि कल उसे उधार मिल जाएगा। कोई व्यक्ति आज को छोड़कर कल दुकानदार के पास जाता है तो भी उस दुकान के सामने वही वाक्य लिखा होता है कि आज नगद और कल उधार। लेकिन आप आज ही उससे नगद खरीद सकते हो। जब भी आप अगले दिन उसके पास जाओगे तो आपको वही देखने को मिलेगा। अगर आप उधार लेने भी गए तो दुकानदार आपको वह वाक्य दिखा देगा और कहेगा कि उधार कल मिलेगा, आप कल आइएगा। वह आपको कभी उधार नहीं देगा। इसका मतलब यह है कि आपको जो करना है आज ही करना है, कल का इंतजार करना नहीं है। वैसे ही भगवान की पूजा करना मतलब भगवान की आज्ञा का पालन करना होता है। मंदिर में कोई परिक्रमा लगाते समय आपके सामने आ जाए तो आप गुस्से में आ जाते हो और उस व्यक्ति के प्रति द्वेष आपके मन में सवार हो जाता है। जबकि आप ऐसा करके मंदिर की मर्यादा को भंग करते हो। ठीक वैसे ही मां-बाप की पूजा करना मतलब उनकी बातों को मानना, उन्हें कोई ठेस नहीं पहुंचाना होता है। आप अपने घर में उनके लिए सिर्फ एक कमरा बना कर उनके लिए एक नौकर रख कर ही उनका पूजन नहीं कर सकते। आपको उनसे बात करना होगा, उनके साथ रहना होगा। आज के इस व्यस्ततम जिंदगी में आप लोगों ने मां-बाप को छोड़ दिया है। सारी सुविधा तो दे दी पर वह घर में रहते हुए भी आप से अलग हो जाते हैं। जबकि आपको उनका सम्मान करना चाहिए उनकी आज्ञा का पालन करना चाहिए।

अक्षयनिधि, समवशरण और कषाय विजय तप 16 से

मेघराज बेगानी धार्मिक एवं परमार्थिक ट्रस्ट के ट्रस्टी धर्मराज बेगानी तथा आध्यात्मिक चातुर्मास समिति के अध्यक्ष विवेक डागा ने बताया कि 16 अगस्त से अक्षयनिधि, समवशरण और कषाय विजय तप प्रारंभ होने जा रहा है। इस अभी तप का संपूर्ण लाभ श्रीमान पारसचंदजी बसंती देवी, प्रवीण जी, पायल जी, तनिष्का, दीक्षा, लक्ष्य मुणोत परिवार ने लिया है।

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