जैन संत ने आत्म मंथन पर बल दिया
राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 16 अगस्त। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने आज यहां कहा कि हम “स्व” को छोड़कर “पर” की गिनती करने में मशगूल रहते हैं। हम “पर” की ही चिंता करते रहते हैं। उन्होंने कहा कि “स्व” की चिंता करो आत्म कल्याण हो जाएगा।
समता भवन में आज अपने नियमित प्रवचन में संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि वस्तुतः मैं आत्मा हूं। ऐसा कार्य करें कि आत्मा का उत्थान हो। उन्होंने कहा कि हम “पर” की चिंता करते हैं और जब अपनी चिंता करते हैं तो हम आत्मा की चिंता करना छोड़ अपने शरीर की चिंता करते हैं। हम आत्मचिंतन नहीं करते। अनादि काल से जो हमारे साथ हैं, उस आत्मा की चिंता हमें जरा भी नहीं रहती। दरअसल उससे हमारा परिचय ही नहीं हुआ है। हम अनादि काल से दूषित मार्ग पर चले हैं। मैं आत्मा हूं, इस पद पर हमने निर्णय ले लिया तो हमारा जीवन धन्य हो जाएगा। अंदर का “स्व” ही सब कार्य करने के लिए कहता है।
संत श्री ने फरमाया कि हम इसलिए दुखी है कि हमने उससे संबंध जोड़ रखा है जो हमारा नहीं है और जिसका वास्तविक स्वरूप ही नहीं है। वास्तविक स्वरूप को प्राप्त करने के लिए हमें साधना करनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि जो पल हम साधना में व्यतीत करते हैं, वह पल हमारा व्यर्थ नहीं जाता। उन्होंने कहा कि हमने इतने संबंध जोड़ लिए हैं कि जब उसे छोड़ने का समय आता है तो हम दुखी हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि मैं आत्मा हूं इस पर चिंतन करें और आत्म उत्थान के लिए कार्य करें। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।