हममें दूसरों को दोष देने की प्रवृत्ति नहीं होनी चाहिए
राजनांदगांव (अमर छत्तीसगढ़)18 अगस्त। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हमारे जीवन में जो भी होता है वह हमारे पुरुषार्थ से होता है, इसके लिए हमें दूसरों को दोष नहीं देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जानना और देखना आत्मा का मुख्य और शुद्ध कार्य है। राग और द्वेष हमारा स्वभाव नहीं है।
समता भवन में आज अपने नियमित प्रवचन के दौरान जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हमारी आत्मा बाहरी चीजों पर ही लगी रहती है। वास्तव में हमारी आत्मा मैनेजर के लायक है जबकि हम उसे चपरासी और क्लर्क बना कर रख देते हैं। अगर व्यक्ति को क्रोध आए तो क्रोध नहीं करना चाहिए। आत्मा का मूल कार्य क्षमा है, क्रोध करना नहीं। उन्होंने कहा कि आत्मा को यदि यह पता चल जाए कि मेरे कार्य कौन-कौन से हैं, तब हम राग द्वेष और क्रोध एवं लोभ से दूर रहेंगे। जब तक आत्मा को यह आभास नहीं होगा तब तक हम आत्म उत्थान के मार्ग पर नहीं बढ़ सकते।
जैन संत ने फरमाया कि हर एक आत्मा में भूत भविष्य और वर्तमान को देखने की शक्ति है किंतु वह अपने कार्य को भूलकर, राग द्वेष और लोभ की पूर्ति में लगा हुआ है। एक आत्मा वह है जो अपनी शक्ति जानती है और एक आत्मा वह है जो राग द्वेष और लोभ की पूर्ति में लगी रहती है। हमें आत्म स्वाभिमान जागृत करना चाहिए। मैं आत्मा हूं और राग द्वेष और लोभ मेरा काम नहीं है, यह सोचे। इसके अलावा यह भी सोचे कि जो हो रहा है वह सब मेरे पुरुषार्थ की वजह से हो रहा है। लोभ, क्रोध आदि छोड़कर मुझे पुरुषार्थ कर मोक्ष के मार्ग में बढ़ना है। हमें यह भी सोचना है कि पारिवारिक स्थितियों में उलझ कर रहने के लिए हमारा समय नहीं है। यह सब आत्मा का कार्य नहीं है , उसे तो मैनेजर बनकर आत्म मोक्ष के मार्ग में बढ़ना है। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।