संवत्सरी पर्व शुरू होने से पहले जैन संत ने क्षमा मांगने एवं देने के फायदे बताए
राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 23 अगस्त। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने आज यहां संवत्सरी पर्व शुरू होने के पहले क्षमा मांगने एवं क्षमा देने के फायदे बताए। उन्होंने कहा कि क्षमा से चित्त प्रसन्न रहता है, चाहे हम क्षमा मांगे या किसी को क्षमा कर दें। उन्होंने कहा कि हमारा क्रोध एवं अहंकार हम पर हावी होता है, इसके बाद भी हम मर्यादा में रहते हैं तो समझ ले कि हमारे भीतर क्षमा का भाव है। क्षमा का भाव हमारे चित्त को प्रसन्न कर देता है।
जैन संत श्री हर्षित मुनि ने आज समता भवन में अपने नियमित प्रवचन के दौरान कहा कि व्यक्ति के संस्कार में यदि क्रोध है तो वह छोटी-छोटी बातों पर झगड़ता रहता है। खामेनी शब्द की एक माला फेरिए और क्षमा मांग लीजिए या क्षमा कर दीजिए, आपका मन प्रसन्न हो जाएगा। उन्होंने कहा कि मोह की दो तलवार है एक राग और दूसरा द्वेष। किसी के प्रति यदि आपका राग हो तो आप उसके बारे में ही सोचते रहते हैं। इसी तरह किसी के प्रति द्वेष है तो आप उसके बारे में कुछ ज्यादा ही सोचने लगते हैं। हिंसा और क्रोध, द्वेष के दो रूप हैं। राग और द्वेष हमें एकाग्र नहीं होने देते। राग यदि नहीं भी टूटे तो द्वेष को टूटना ही चाहिए। आप क्षमा मांगना नहीं बल्कि क्षमा करना सीखिए। व्यक्ति यदि क्षमा करना सीख जाता है तो तेजोनिशा (अद्भुत शक्ति) उसमें आ जाती है। आप कम से कम आधा घंटा क्रोध नहीं करने का संकल्प लें। इस दौरान आपसे कोई कुछ भी कहे, आप क्रोध नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना छोड़ क्षमा करना सीखें। क्षमा नहीं करने की वजह से आपका स्वभाव धीरे-धीरे चिड़चिड़ा होता जा रहा है। क्रोध की वजह से हम मन में घटनाएं भी बनाते हैं और क्रोध भी करते हैं। क्रोध करने के बाद सामने वाला कितना दुखी होता है, उससे कहीं ज्यादा दुख हमारे मन में क्रोध उतरने पर होता है। यदि मन में क्षमा करने की, खामेनी की भावना अंदर चली गई तो आपको अपूर्व आनंद प्राप्त होगा। जीवन भर जिसने धर्म को साधा है , उसके भीतर क्षमा की भावना भरी होती है। संत श्री ने कहा कि व्यक्ति यदि उच्च पद पाना चाहता है तो वह छोटी-छोटी बातों पर ध्यान ना देकर क्षमा करना सीखें , उसका जीवन सफल हो जाएगा। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।