रायपुर। न्यू राजेंद्र नगर स्थित महावीर स्वामी जिनालय मैं चल रहे आध्यात्मिक चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान मंगलवार को साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने कहा कि गांव में एक छेद हो जाए और पानी घुसने लगे तो आप उस छेद को बंद करने का प्रयास करोगे। एक छेद से पानी अंदर आ रहा हो तो आप दूसरा छेद उसे बाहर निकालने के लिए नहीं करोगे। यह ठीक वैसा ही है जैसे कि एक पाप को छुपाने आप दूसरा पाप करते हो जबकि आपको उस पहले पाप का प्रायश्चित कर लेना चाहिए।
साध्वी जी कहती है कि पर्यूषण पर्व शुरू होने वाला है। इस दौरान हमें दूसरे की नहीं खुद की सुरक्षा करनी है। एक श्रावक अपने घर के बाहर निकलता ही है कि उसे साधु मुनि आते दिखाई देते हैं। वह श्रावक उन्हें अपने घर पर आमंत्रित करता है। साधु तैयार हो जाते हैं और उसके पीछे चलने लगते हैं। जैसे ही वे कॉलोनी के अंदर जाते हैं वहां चारों ओर बहुत जिंदगी होती है। श्रावक का घर पांचवी मंजिल पर रहता है। पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे मंजिल से जब साधु गुजरते हैं तो वहां भी गंदगी रहती है। जब वे पांचवी मंजिल पर पहुंच जाते हैं तो वहां देखते हैं कि वहां बहुत ही स्वच्छ और साफ वातावरण बना हुआ है। जब वे श्रावक के घर के अंदर जाते हैं तो वह किसी महल से कम नहीं रहता। साफ-सफाई भी उतनी ही अच्छी रहती है। वे उनसे पूछते हैं कि बाहर इतनी गंदगी है और अंदर इतना आलीशान मकान यह कैसे हो सकता है। श्रावक कहता है कि मैंने कई बार कॉलोनीवासियों को इकट्ठा कर मीटिंग की है। साफ सफाई पर जोर दिया लेकिन कोई सुनता ही नहीं और किसी का कहा मानता ही नहीं तो मैंने उन्हें कहना छोड़ दिया और मैं अपने घर को साफ रखता हूं।
पहले खुद को सुधारें, फिर दूसरों को
साध्वी जी कहती हैं कि पहले आपको खुद को सुधारना है फिर बाद में दूसरे को। कोई बड़ा आपके सामने आए तो आप उससे अपने आसपास के लोगों की निंदा करने लगते हो। आप कहते हो कि मेरा पड़ोसी अपशब्द कहता है, हिंसा करता है और हर दिन पाप करता है। सबसे पहले उसे सुधारना चाहिए। साध्वी जी कहती है कि हमने तो ग्रंथों के बताए रास्ते के अनुसार आपके अट्ठारह पार्क छुड़वा दिए हैं। पर इसे आप लोगों ने थोड़ा या नहीं छोड़ा यह नहीं पता है। वैसे भी आपको जो करना है रूचिपूर्वक करना है। क्योंकि बिना रुचि के किया गया काम कभी सफल नहीं होता। आप अपने बालों को कितना भी संवार लो, अपने कपड़ों को कितना भी प्रेस कर लो, उसका स्वभाव बिगड़ना ही है। वह बिगड़ ही जाएगा। पर आपका मन उसी को ठीक करने के लिए लगा रहता है।
खोदा पहाड़, निकली चुहिया
साध्वीजी कहती है कि यह संसार खोदा पहाड़ निकली चुहिया वाला ही एक खेल है। पुण्य करने से लाभ होगा यह सोच कर आप बहुत सारे परोपकार के काम करते हैं। आप भूखों को खाना खिलाते है, प्यासे को पानी पिलाते है और जरूरतमंदों की अन्य सेवा भी करते हैं। यह सब आप ही के लिए करते हैं क्योंकि यह पुण्य का काम है और आपको लगता है कि इसे करने से आपका जीवन सफल हो जाएगा और आपको लाभ होगा। इस रिटर्न गिफ्ट की चाह में किया गया कोई भी काम सफल नहीं होता। जबकि उल्टा यह आपको नुकसान पहुंचाएंगे। इतना परोपकार करने के बाद भी आपको वह सुख नहीं मिलता जो आपको तृप्त कर सके। वैसे ही कोई धार्मिक व्यक्ति चाहता है कि वहां सब काम हो जाते हैं जहां प्रेम होते हैं। आप किसी को प्रेम से सूखी रोटी भी दोगे तो उसका पेट भर जाएगा। वैसे ही कितना भी आप बे-मन से घी लगाकर किसी को रोटी दो तो वह उसे भायेगी नहीं।