जैन संत ने क्रोध का त्याग करने के लिए प्रेरित किया
राजनांदगांव (अमर छत्तीसगढ़) 29 अगस्त। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि अमर वही व्यक्ति होता है जो जीते जी अपनी मृत्यु को मारता है। जब होकर भी हम नहीं होते, यश,मोह,मान, धन, संपदा, क्रोध आदि हम पर असर नहीं डालते, ऐसे प्रकृति वाले व्यक्ति ही महापुरुष होते हैं। उन्होंने कहा कि हमारा घर, घर ना होकर गोदाम बन गया है। घर गोदाम बनता है तो बने लेकिन मन को कभी गोदाम ना बनाएं।
उक्त उद् गार आज समता भवन में जैन संत श्री हर्षित मुनि ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि मन गोदाम तभी नहीं बनेगा जब हम छोटी-छोटी बातों पर क्रोध करना छोड़ दें। हम अपनी प्रतिक्रिया पर ध्यान दें। सामान्य व्यक्ति छोटी-छोटी बातों को गंभीरता से लेता है और क्रोधित हो जाता है। हम जब क्रोधित हो जाते हैं तो हमारे वचन पर हमारा कंट्रोल नहीं रहता। क्रोध के कारण हम कई बार दुखी हुए हैं। बड़े क्रोध को हम नहीं छोड़ सकते तो कम से कम छोटे-छोटे क्रोध का त्याग तो करें। अगर छोटे-छोटे प्रसंगों पर ध्यान देना छोड़ दें तो खुद पर हमारा कंट्रोल होगा। उन्होंने कहा कि कम से कम एक दुर्गुण को तो इस जीवन में जीत कर जाओ।
जैन संत श्री हर्षित मुनि ने फरमाया कि पहले से ही व्यक्ति दुखी है और हम अपने क्रोध को उस पर उतार देते हैं तो वह और दुखी हो जाता है , वह किसी और पर अपने क्रोध को उतार देता है जिससे वह तो दुखी होता ही है और जिस पर वह क्रोध उतारता है, वह भी दुखी हो जाता है और इसके पीछे का कारण हम होते हैं। उन्होंने कहा कि हम किसी के जीवन में सुख का कारण नहीं बन सकते तो कम से कम दुख का कारण तो ना बने। जब मन की गांठे खुलती है तो व्यक्ति में निखार आता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति का व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि लोग हमारा आदर करें। आदर मांगा नहीं जाता, वह अपने आप मिलता है। थोड़ा सा व्यवहार में परिवर्तन लाएं, सामने वाला व्यक्ति परिवर्तन के लिए पहले से ही बैठा हुआ है, बस आपका आचरण वैसा होना चाहिए। बड़े बने,बड़े बन जाएंगे तो छोटों को छोटा बनना ही पड़ेगा और वह तो बदलने के लिए पहले से ही तैयार बैठा है। आप छोटे-छोटे प्रसंगों पर ध्यान देना छोड़ें और क्रोध पर कंट्रोल करें तो आप एक दुर्गुण पर विजय अवश्य प्राप्त करेंगे। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।