प्रकृति की सभी चीजों की मदद से आप आगे बढ़ते हो, सबकाे धन्यवाद दो- साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

प्रकृति की सभी चीजों की मदद से आप आगे बढ़ते हो, सबकाे धन्यवाद दो- साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। न्यू राजेंद्र नगर स्थित महावीर जिनालय में चल रहे भव्य आध्यात्मिक चातुर्मास के दौरान साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने मंगलवार को कहा कि बहुत सारे लोगों की मदद से आपका एक छोटा सा काम होता है। आप गाड़ी में कहीं घूमने जाएं तो उसमें इंजन, टायर और पेट्रोल की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आपको लगता है कि सिर्फ आप के कारण बहुत सारा काम हो जाता है तो ऐसा नहीं है। अगर कोई प्रवचनकर्ता यह सोचता हैं कि वह सबसे अच्छा प्रवचन वाचन करता है और उसे सुनने दूर-दूर से लोग आते हैं तो यह भी गलत है। अगर श्रावकों ने हड़ताल कर ली और एक साथ मन बना लिया कि उन्हें प्रवचन सुनने नहीं जाना है तो उसका वाचक किसे प्रवचन सुनाएगा।

साध्वीजी कहती है कि क्या आपने कभी सोचा है कि आप आज जिस जगह पर हो वहां पहुंचने में आपको कितने लोगों का सहयोग प्राप्त है। आपके माता-पिता, भाई-बहन, परिजन, आपके गुरु और आपके शिक्षक, इन सब का योगदान है कि आज आप इतने ऊंचे पायदान पर खड़े हो। आपकी दुकान चल रही है, उसके पीछे भी कई लोगों का हाथ। सबसे बड़ा हाथ ग्राहकों का है जो आपसे सामान खरीदते हैं। उसके पीछे उस सप्लायर का हाथ है जो आपको समय पर सामान की डिलीवरी करता है, जिससे कि आपका स्टॉक हमेशा भरा रहता है। अगर आप का स्टॉक खत्म हो जाएगा तो आपके ग्राहक टूटने लगे जाएंगे। कोई एडवर्टाइजमेंट वाला आपका नाम पेपर और टीवी में दिखाना बंद कर दें तो आप का प्रचार कैसे होगा। आप सोचिए अगर आप एक दुकान में ग्राहक ही ना आए तो आपकी दुकान कैसे चलेगी। आपको अपने ग्राहकों को, सप्लायर को और तो और मशीनों को भी धन्यवाद देना है जिनकी मदद से आप स्टॉक तैयार करते हो। आप सोचो कि प्रकृति की हर एक चीज आपको मदद करती है, आपको उन सब का धन्यवाद करना है।

अपेक्षा कभी खत्म नहीं होती

साध्वीजी कहती है कि राजा अकबर सम्राट अपने नगर में बीरबल के साथ भ्रमण करने निकलते हैं। घूमते-घूमते हुए वे एक दुकान के पास से गुजरते हैं और देखते हैं कि दुकान में सेठ बैठा हुआ है, जो कि बहुत उदास है। बीरबल बोलता है कि हमें उससे पूछना चाहिए कि वह क्यों उदास है। अकबर बोलते हैं कि दुकानदार तो हमेशा उदास ही रहते हैं। फिर भी बीरबल उनसे जाकर पूछता है कि आप इतने उदास होकर क्यों बैठे हैं। सेठ कहता है की मेरी दुकान चल नहीं रही है इसलिए मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। बीरबल ने पूछा क्या हुआ तो सेठ ने बताया कि मैंने बहुत सारा कंबल और स्वेटर का स्टॉक मंगा कर रख लिया है, लेकिन ठंड नहीं पड़ने की वजह से कोई इन्हें खरीदने नहीं आ रहा है। यह बात बीरबल ने अकबर को बताई और वह दोनों आगे निकल गए। अगले ही दिन राजा अकबर ने घोषणा की, कि कल राज्यसभा होगी उसमें सभी लोगों को आना अनिवार्य है और राज्यसभा में आने वाले लोगों को कंबल ओढ़ कर आना होगा। अब सेठ की दुकान में कंबल लेने भीड़ लग गई। चार-चार सौ रुपए के कंबल को सेठ फटाफट बेचने लग गए। लंबी लाइन देखकर सेठ 400 के कंबल को 500 और 1000 तक में बेचने लग गए। उन्होंने 1 हजार के कंबल को 5 हजार रुपए में बेचना शुरु कर दिया। उन्होंने देखा कि लाइन खत्म ही नहीं हो रही है। उन्होंने अपना स्टॉक महंगे दामों में बेचकर खूब मुनाफा कमाया लेकिन ग्राहकों की लाइन खत्म ही नहीं हो रही थी, जबकि सेठ का पूरा स्टॉक खत्म हो गया। राज्यसभा हुई और सब लोग कंबल ओढ़ कर उपस्थित रहे। इसके बाद अगले दिन बीरबल घूमते हुए सेठ की दुकान पर गए और हैरान होकर कहा- अरे, आपका सारा स्टॉक खत्म हो गया फिर भी आप उदास हो तो वह कहने लगे कि, हां मुझे पता नहीं था कि एक ही दिन में सारे कंबल बिक जाएंगे। अगर यह मुझे पहले पता होता तो इन्हें में महंगे में बेचकर और ज्यादा मुनाफा कमाता और यह स्टॉक हमेशा भरकर रखता। मैं सभी लोगों को कंबल नहीं बेच पाया इसके लिए आज उदासीनता है।

साध्वीजी कहती है कि हमको कितना भी मिले अपेक्षा रह ही जाती है। संपत्ति और रुपयों-पैसों के लिए बेटा भी पिता की हत्या करने में भी पीछे नहीं हटता है। इस स्वार्थी दुनिया में किसी के ऊपर भरोसा नहीं किया जा सकता है। कब कौन, किसे धोखा दे-दे यह भी कहा नहीं जा सकता। अगर हम ऐसे किस्से बताना शुरू करें तो पूरा एक दिन भी कम पड़ जाएगा। वहीं, साधु-संत ऐसी घटनाओं को सुनते है तो उनका वैराग्य मजबूत होता है। आप खुद भी सांसारिक जीवन से निकलना चाहते हो फिर भी आप यहां रुके ही हुए हो। आप हमेशा अपने कर्तव्यों की आड़ को लेकर इस सांसारिक दुनिया में उलझे रहते हो।

अपना भविष्य खुद देखो

साध्वीजी कहती है कि आपको अपना भविष्य देखने के लिए किसी ज्योतिष के पास जाने की जरूरत नहीं है। आप अपना भविष्य खुद ही देख सकते हो। एक ब्राह्मण दीक्षा लेना चाहता था, वह गौतम स्वामी के पास गया और बाेला हे प्रभु मुझे दीक्षा लेना है। गाैतम स्वामी खुद उसे लेने उसके घर गए। तब उस ब्राह्मण ने कहा कि मुझे दीक्षा तो लेनी है पर मैं अपनी पत्नी को नहीं छोड़ सकता, मैं उसके बिना एक पल भी नहीं रह सकता हूं। गौतम स्वामी ने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता है। अगर तुम्हें दीक्षा लेना है, मोक्ष की प्राप्ति करनी है तो अपनी का पत्नी का त्याग तो तुम्हें करना ही पड़ेगा। ऐसा कहकर वे उसके घर से निकलते है, तो ब्राह्मण उन्हें बाहर तक छोड़ने भी आता है। स्वामी कहते है कि इतनी दूर तो आ गए हो, बस अब तुम्हें घर की यह दहलीज पार करनी है। उसने कहा कि इतनी ही मेरी तैयारी नहीं है। स्वामी आगे बढ़े और ब्राह्मण पीछे की ओर मुड़ा, चार कदम चलने के बाद एक खंभे से टकराकर उसकी मौत हो गई। अब अगले जन्म वह अपनी पत्नी के साथ ही था। उसका जन्म एक जुंए के रूप में हुआ और वह हमेशा अपनी पत्नी के सिर में ही रहता था। साध्वीजी कहती हैं कि अगर अापको नदी पार करनी है तो नाव से लगाव मत रखो, किनारे तक पहुंचने का लक्ष्य बनाओ।

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