दसलक्षण पर्व के पांचवे दिन उत्तम सत्य धर्म दिवस
बिलासपुर(अमर छत्तीसगढ़)। दसलक्षण पर्व के पावन अवसर पर आयोजित सांस्कृतिक एवं धार्मिक कार्यक्रमों की श्रृंखला में सरकंडा जैन मंदिर पाठशाला के बच्चों ने कुण्डलपुर के बड़े बाबा की महिमा पर एक ऐतिहासिक नाटक की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम की शुरुआत सृष्टि और अनन्या ने “कौन ने कौन को दई पहचान” बोल पर मंगलाचरण से की । सरकंडा जैन मंदिर पाठशाला के होनहार बच्चों ने कुण्डलपुर तीर्थ के प्रादुर्भाव से लेकर वर्तमान नए मंदिर में बड़े बाबा के विराजमान होने तक की कहानी का बड़ा ही मनोरम चित्रण किया । इस नाटिका के माध्यम से ये भी बताया कि किस प्रकार एक टीले से निकल कर बड़े बाबा पटेरा गाँव में विराजमान हुए |
इस लघु नाटिका में सूत्रधर बनी दद्दा के रूप में देशना व दादी (बऊ) के रूप में मिलिका जैन, व्यापारी का किरदार अनंत ने निभाया व उनकी सेठानी चारु ने भगवान को टीले से निकाला तो बैल बनी पीहू और मौली, ग्वाला बने सम्यक और वंश, अरहम और अन्वेष ने मुनि महाराज का रोल अदा किया । व्यक्ति और भक्त बने सोहरी, निवी एवं प्रत्युष ने बड़े बाबा के दर्शनोपरान्त मुनि महाराज के पारणा कराने की रस्म अदा की। क्षेत्रपाल बने हर्ष ने मंदिर निर्माण की घोषणा की, तो औरंगज़ेब बने संयम व सेनापति शैंकी ने मंदिर तोड़ने की नाकामयाब कोशिश भी की और अंत में आचार्य श्री गुरुवार विद्यासागर जी महाराज ने बड़े बाबा को मंदिर जी में विराजमान कराया । पुलिस बनी सौम्या ने अड़ंगा लगाया लेकिन जीत हुई भक्तों की और बड़े बाबा अपने मंदिर में विराजमान हुए । माँ बनी आन्या और अविशी बनी बेटी ने पंचकल्याणक में जन्म महोत्सव बनाया ।
दसलक्षण पर्व के पांचवे दिन अष्टमी-नवमीं तिथि को भगवान पुष्पदंत स्वामी का मोक्ष कल्याणक भी रहता है। अतः इस अवसर पर बिलासपुर स्थित तीनों जैन मंदिर जी में विशेष पूजा अर्चना की गयी। दशलक्षण पर्व का पांचवां दिन उत्तम सत्य धर्म का रहता है। सांगानेर से पधारे पंडित रवि जैन ने अपने प्रवचन में इस धर्म की व्याख्या करते हुए बताया कि सत्य एक भावना है जिसका अर्थ है हमारे वास्तविक स्वरूप को प्राप्त करना या हमारी आत्मा के शुद्धतम रूप के करीब पहुंचना। मनुष्य अनेक कारणों से असत्य बोला करता है। क्रोध, लोभ, भय और हँसी-मजाक आदि के कारण ही झूठ बोला जाता है। उनमें से एक तो झूठ बोलने का प्रधान कारण लोभ है। लोभ में आकर मनुष्य अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिये असत्य बोला करता है। असत्य भाषण करने का दूसरा कारण भय है।
मनुष्य को सत्य बोलने से जब अपने ऊपर कोई आपत्ति आती हुई दिखाई देती है, अथवा अपनी कोई हानि होती दिखती है तो उस समय वह डरकर झूठ बोल देता है, झूठ बोलकर वह उस विपत्ति या हानि से बचने का प्रयत्न करता है। उन्होंने सभी से कहा कि सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो। जहाँ न झूठ बोला जाता है, न ही झूठा व्यवहार किया जाता है वही लोकहित का साधक सत्यधर्म होता है। साथ ही उन्होंने इस बात पर जोर कि हमें कठोर, कर्कश, मर्मभेदी वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, जब भी बोलें हित मित प्रिय वचनों का प्रयोग अपने व्यवहार में लाना चाहिए, इसलिए कहा भी गया है- ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय, औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय।