नुकसान के संकेत मिलने के बाद भी आपको पुरुषार्थ करना नहीं छोड़ना चाहिए: साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

नुकसान के संकेत मिलने के बाद भी आपको पुरुषार्थ करना नहीं छोड़ना चाहिए: साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़)। परमात्मा के शासन में हम सभी को जो स्थान प्राप्त हुआ है उसमें हमें आत्मा को मूल स्वभाव में स्थिर करना है। पूजा पाठ करना, माला फेरना, तपस्या करना यह धर्म नहीं है। आत्मा का मूल स्वभाव ही धर्म है। पूजा-पाठ करना यह सब क्रिया है। इनसे हम मूल स्वभाव में स्थिर हो सकते हैं। यह बातें सोमवार को न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान शनिवार को साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी ने कही।

साध्वीजी कहती हैं कि हमें अपने मूल स्वभाव को पाने के लिए चार चीज को पाना आवश्यक है। पहला- मनुष्य भाव को प्राप्त करना दुर्लभ है। दूसरा सधर्म का श्रवण करना है। हमें देखना है कि हमारी रुचि बैठ रही है कि नहीं। सधर्म वही है, जहां हमारी रुचि बैठ जाए। मैं आत्मा हूं और एक दिन परमात्मा बनने की ताकत रखता हूं। इसके लिए व्यक्ति सधर्म को सुनते हैं सुनते समझते हुए वह उसे स्वीकार कर लेता हैं।

एक गलती छिपाने दूसरी मत करो

साध्वीजी कहती हैं कि तीसरी चीज धर्म सुनकर श्रद्धा का भाव आना है। हमारी श्रद्धा कितनी मजबूत है। धर्म सुनने से हमारा उत्साह बढ़ा कि नहीं, हमें यह देखना है। कोई गुरु अगर बता दें कि हमें नर्क में जाना है तो पुरुषार्थ और मेहनत करने की क्या जरूरत है। ऐसा सोच लोगे तो आपका स्वर्ग जाने का रास्ता तो बंद हो ही जाएगा। यह सब श्रद्धा के अभाव से होता है। आपने अफसोस तो कर लिया पर पश्चाताप नहीं किया। सुबह आप घर से निकले और पुलिस ने हेलमेट नहीं पहनने का आपसे चालान वसूल लिया तो इसका मतलब यह नहीं है कि उस चालान को लेकर आप दिनभर बिना हेलमेट पहने घूमते रहें। अखिलेश चौराहे पर जो पुलिस आपको बिना हेलमेट के देखेगा वह आपको माफ तो कर देगा। यहां आपको सोचना होगा कि आप सही हो या गलत। गलती करने पर मां भी अपने बच्चे को एक बार माफ कर देती है, दो बार और तीन बार पर चौथे बार वह बिल्कुल माफ नहीं करती है, एक चांटा मार ही देती है। पर परमात्मा ऐसे नहीं है उनके आपको हर बार माफ करते हैं। एक बार, दो बार, दस बार और 15 बार भी माफ कर दिया जाएगा लेकिन उसके बाद आपकी अंतरात्मा खुद ही आपको वह गलती करने नहीं देगी।

सफलता मिलने पर भी मेहनत करते रहे

साध्वीजी कहती है कि चौथी चीज संयम के प्रति हमारा वीर हमारा पराक्रम है। हमें मनुष्य भव भी मिल गया, परमात्मा की वाणी सुनने को मिल गई, उस पर श्रद्धा हो जाए और वैराग्य न आए तो इन दोनों बात का कोई मेल नहीं है। जहां आत्मा को परमात्मा बनाना है उस जगह पर आप हाथ में हाथ धरे भाग्य के भरोसे नहीं बैठ सकते हो। एक बच्चे का स्कूल में हर क्लास में 99% ही मिलता था। उसने कॉलेज में एडमिशन लेने एंट्रेंस एग्जाम दिया उसने भी उसे 99% प्राप्त हुए। उसने एडमिशन ले लिया। उसके गुरु, उसके माता-पिता को भी यह पता था कि यह इंजीनियरिंग में भी 99% लाएगा। उस बच्चे को पता है कि मेहनत करने के बाद आपको 99% मिलते हैं और यदि यह यह सोच कर वह मेहनत करना बंद कर दे कि मुझे तो हमेशा 99% ही मिलते हैं तो वह फेल हो जाएगा। साध्वीजी कहती है कि आपने सुबह दुकान खोली और एक घंटे तक भी कोई ग्राहक ना आए तो आप भाग्य को कोसने लगते हो। अगर एक महीने भी आपकी दुकान में ग्राहक नहीं आएंगे तो आप अपने बचत पैसों से उस महीने का खर्चा चला सकते हो। कोरोना काल में भी ऐसा ही हुआ धंधा ठप होने के बावजूद भी आपने अपने स्टाफ को तो पैसा दिया ही। पैसा जब आना है आएगा और जब जाना है जाएगा। इसके लिए आप अपने भाग्य को नहीं कोस सकते हो।

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