मन में अपूर्व शक्ति होती है और मन काम करता है श्रद्धा के बल पर – जैन संत हर्षित मुनि

मन में अपूर्व शक्ति होती है और मन काम करता है श्रद्धा के बल पर – जैन संत हर्षित मुनि

शत्रु शक्तिशाली नहीं होता किंतु आपको अपने ऊपर विश्वास होना चाहिए

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ़) 7 सितंबर।रत्नत्रय के माहान आराधक, परमागम रहस्यज्ञाता, परम पूज्य श्रीमद जैनाचार्य श्री रामलाल जी म.सा.के आज्ञानुवर्ती व्याख्यान वाचस्पति शासन दीपक श्री हर्षित मुनि ने कहा कि हमारे मन में अपूर्व शक्ति हैं और मन काम करता है श्रद्धा के बल पर। उन्होंने कहा कि भगवान के प्रति हमारी श्रद्धा होनी चाहिए। श्रद्धा जब बढ़ती है तो व्यक्ति को स्वयं पर श्रद्धा होती है। श्रद्धा की अंतिम सीढ़ी स्वयं पर श्रद्धा ही है।
समता भवन में आज अपने नियमित प्रवचन में जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि भगवान के प्रति हमारी श्रद्धा अडिग होनी चाहिए। विपरीत परिस्थितियों में भी हमारी श्रद्धा अटल हो तो हम ऐसी परिस्थितियों को आसानी से पार कर जाएंगे। उन्होंने कहा कि शत्रु शक्तिशाली नहीं होता किंतु आपको अपने ऊपर विश्वास होना चाहिए । सिद्धांत हमारा गलत नहीं होता बल्कि गलत हमारी सोच होती है। जैन धर्म में सम्यक दृष्टि भाव का उल्लेख है । सम्यक दृष्टि भाव अर्थात पॉजिटिव थिंकिंग। व्यक्ति के मन में हमेशा पॉजिटिव थिंकिंग होनी चाहिए। यह थिंकिंग होती है तब व्यक्ति को अपने प्रति श्रद्धा होती है। श्रद्धा की यह अंतिम सीढ़ी भी है। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति कोयले की खदान से काला होकर निकलता है किंतु वह विचलित नहीं होता क्योंकि वह जानता है कि वह गोरा है और नहा लेने के बाद उसका रंग वापस मिल जाएगा। उसे स्वयं के प्रति श्रद्धा होती है इसलिए वह विचलित नहीं होता।
संत श्री हर्षित मुनि ने आगे फरमाया कि स्वयं पर श्रद्धा होनी चाहिए कि मैं शुद्ध हूं और मोह, माया, लोभ जैसे काले दाग मुझ पर टिक नहीं सकते। ऐसी श्रद्धा जिसे स्वयं पर होगी, वो कभी विचलित नहीं होगा और सफलता की सीढ़ी चढ़ता जाएगा। उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति को जिस चीज की चाह होती है ,उसकी नजर उसे ही ढूंढती रहती है। आपकी भी श्रद्धा पर नजर होनी चाहिए तो क्रोध आपसे दूर रहेगा और आप सफलता की सीढ़ी चढ़ते जाएंगे।यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।

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