सांसारिक जीवन से चिपके रहोगे तो टुकड़ो में सुख मिलेगा: साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

सांसारिक जीवन से चिपके रहोगे तो टुकड़ो में सुख मिलेगा: साध्वी स्नेहयशाश्रीजी

रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान गुरुवार को साध्वी श्री स्नेहयशाश्रीजी ने कहा कि आप सांसारिक जीवन से चिपके रहोगे तो आपको जो मिलेगा, टुकड़ों में मिलेगा और आभासी मिलेगा। आपको मोक्ष प्राप्त करना है तो आपको सुख साधनों का त्याग करना होगा।

साध्वीजी कहती हैं कि एक बार की बात है, गुरु अपने दो शिष्यों से उन्हें नारियल लाने को कहते हैं। दोनों को अलग-अलग नारियल लाने का आदेश दिया जाता है। उनमें से एक को सूखा नारियल और दूसरे को गीला नारियल लेकर आने को कहा जाता है। दोनों शिष्य अपने गुरु के आज्ञा का पालन करते हुए कुटिया से निकलते है। थोड़ी देर बाद दोनों गुरु के पास नारियल लेकर पहुंचते हैं। गीला नारियल लाने वाले शिष्य को गुरु कहते है कि तुम्हें अब इस नारियल को तोड़ना है, लेकिन कवच तोड़ कर अंदर के नारियल को साबूत बाहर निकालना है। अंदर एक दरार भी नहीं पड़नी चाहिए। वह शिष्य नारियल को धीरे-धीरे तोड़ने की कोशिश करता है लेकिन वह नारियल अपने बाहर के कवच से चिपका रहता है। बहुत कोशिश करने के बाद भी नारियल नहीं निकलता तो वह और ताकत लगाता है और अंत में नारियल तो टूटता है लेकिन वह कवच में चिपका हुआ रहता है और टुकड़ों टुकड़ों में टूटता है।

हम अपने जीवन में क्रोध, मान, माया, लोभ को त्याग कर मन-हृदय में प्रेम, नम्रता, मैत्री और संतोष को स्थापित करें। हमारा चरित्र सुंदर होगा तो हमें परमात्मा पसंद करेंगे। हमें अपने प्रजेंटेशन के साथ-साथ अपने इन्टेंशन अर्थात् मनोभावों को भी अच्छा रखना चाहिए। अपने मन से छल-कपट, बैर, विरोध, स्वार्थ, संकीर्णताओं और चिंता-तनाव के कचरे को बाहर निकाल फेंकें। अन्यथा इस भीतर के इस बोझ का प्रभाव हमारे हृदय पर भी हो जाएगा और एक दिन हमारा हृदय धड़कना बंद हो जाएगा। हमें अपनी भावनाओं और भावों को हमेशा बेहतर व सकारात्मक बनाए रखना चाहिए। यदि भाव बिगड़ तो भव-भव बिगड़ जाएंगे। आज तक जो भी भावों से गिरा है वह डूब गया और जो भावों से उठा है वह तिर गया है।

मन का केवल शांत होना ही नहीं, उसका शुद्ध होना भी जरूरी है। जितना जरूरी है हमारा मन शांत हो, उससे पहले जरूरी है हमारा मन शुद्ध भी हो। इसीलिए कहा गया है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा। आदमी का मन यदि पवित्र है तो उसे गंगा तक जाने की भी जरूरत नहीं। मन जितना शांत हो, उतना ही हमारा मन निर्मल भी हो। केवल शरीर की सफाई से ही आदमी निर्मल नहीं होता, जिंदगी में उसके विचार भी पवित्र होने चाहिए। मन की शांति के साथ-साथ मन की पवित्रता भी जरूरी है। क्योंकि जहर से सने हुए पात्र में अगर अमृत भी डाल दिया गया तो वह भी जहर बन जाता है। मन लोभी मन लालची मन चंचल चितचोर, अरे मन के मते ना चालिए, पलक-पलक मन होत। लोभी का वश चले तो वह पूरी दुनिया की दौलत तो क्या, पूरी दुनिया का राजा बनना वह पसंद करेगा। मन की अशांति का एक बड़ा कारण है क्योंकि वह कभी तृप्त नहीं होता। मुक्ति, आनंद और शांति का मार्ग उसी के लिए है जो अपने मन को शांत भावों से तृप्त कर ले।

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