जैन संत का चतुर्मासिक प्रवचन
राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ)24 अक्टूबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि उत्साह में आकर हम कोई निर्णय ले लेते हैं और उत्साह ठंडा होने के बाद हम उस निर्णय पर पछताते हैं। उन्होंने कहा कि उत्साह में आकर निर्णय लिया तो उचित और अनुचित का विचार जरूर करें, इसके बाद ही उस निर्णय पर अमल करें।
समता भवन में आज अपने नियमित प्रवचन में जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि ड्राइवर हाईवे पर गाड़ी चलाता है तो अनेक रास्ते आते हैं, किंतु वह उसी रास्ते निकलता है, जिस रास्ते उसे जाना हो।उन्होंने कहा कि हमारा मन भी हाईवे बन चुका है। हमें भी उसी रास्ते में जाना चाहिए जिस रास्ते में हमें चलना हो। मन हमारा है और यह पथ भी हमारा है। हमें पता होना चाहिए कि कहां मोड़ है और कहां सीधे चलना है। उन्होंने कहा कि हम उत्साह में कोई भी निर्णय ले लेते हैं और बाद में पछताते हैं। हमारे हर निर्णय को हम यदि भगवान की आज्ञा से जोड़ देते हैं तो हम गलत रास्ते में नहीं बढ़ेंगे। भगवान की कृपा पाना चाहते हैं तो भक्ति के अलावा प्रधान रास्ता है भगवान की आज्ञा का पालन करना। भगवान के अंदर अनेक गुण हैं यदि किसी गुण को पाना है तो उनकी आज्ञा की आराधना करें। हम अपने मन को समझाएं कि हमें क्रोध नहीं करना है, हमारे प्रभु की यही आज्ञा है। आप जो भी चिंतन करते हैं उसे प्रभु की आज्ञा से जोड़े तो आप भटक नहीं सकते।
जैन संत ने फरमाया कि आप किताब तो खोल लेते हैं किंतु हमारा मन कहीं और होता है। हमारा मन जब तक नहीं लगेगा तब तक किताब में क्या लिखा है, इसका पता नहीं चल पाएगा। हम वही देखते हैं जो हम देखना चाहते हैं। हम वास्तविकता नहीं देखते। वास्तविकता देखे तो जीवन सुधर जाएगा। उन्होंने कहा कि हर कार्य में देव, गुरु , धर्म को याद जरूर करना चाहिए जिससे हम भटकेंगे नहीं। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।