सीमित सोच की वजह से हमडबरे में ही रह गए- जैन संत हर्षित मुनि

सीमित सोच की वजह से हमडबरे में ही रह गए- जैन संत हर्षित मुनि

व्यक्ति स्वयं से अनजान रहते हैं और दूसरों के बारे में मास्टरी करते हैं

राजनांदगांव(अमर छत्तीसगढ)पांच नवंबर। जैन संत श्री हर्षित मुनि ने कहा कि जैसे शरीर की खुराक है ,वैसे मन की भी खुराक होती है। हमारा मन बहुत दौड़ता है। अगर आप विचार करेंगे तो पता चलेगा कि हमारी सीमित सोच के कारण हम एक डबरे में ही हैं। मानव जीवन में व्यक्ति केवल एक – दो विषय को ही छू पाता है किंतु उसमें भी वह पारंगत नहीं हो पाता।
        समता भवन में आज जैन संत श्री हर्षित मुनि ने अपने नियमित प्रवचन में कहा कि समझदारी लाओ और डबरे से बाहर निकलो। दूर की चिंता करो। समझदारी तभी आएगी जब हम हमारा विचार सत हो। सत दिखाना हो तो पुरुषार्थ करना पड़ेगा। हमने बाकी क्षेत्रों व्यापार , परिवार में बहुत सत दिखाया किंतु धर्म के क्षेत्र में सत नहीं दिखा पाए। हर व्यक्ति के भीतर स्वयं को स्वयं से प्रेरित करने के लिए मन बैठा है लेकिन हम जागते नहीं हैं। व्यक्ति स्वयं से अनजान रहता है और दूसरों के बारे में मास्टरी करता है। सोंचे और थोड़ा दूर की सोंचे । हम कर्मों पर विचार नहीं करते ,पर अब मेरा क्या होगा?, इस पर भी विचार करें। जो सदकार्य कर रहा है उसकी पूरी पूरी अनुमोदना करें।
      जैन संत ने फरमाया कि हमारा उत्साह नहीं जागता क्योंकि हम दूसरों के सदकार्य की अनुमोदना नहीं करते। जहां-जहां और जिस-जिस जगह अच्छा कार्य दिखे, उसकी अनुमोदना अवश्य करें। निंदा में पड़ना नहीं चाहिए। वर्तमान में सत की अनुमोदना करना शुरू कर दें तो सत दिखने लगेगा। हमारी तरफ से कहीं भी अशांति उत्पन्न ना हो यह मन बना लें। अपने सत को दिखाएं और अच्छे कार्यों की अनुमोदना करें। जीवन सफल हो जाएगा। यह जानकारी एक विज्ञप्ति में विमल हाजरा ने दी।

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