रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 24 मई।
शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय के सभागार में आज “वर्तमान स्वास्थ्य परिदृश्य में मिलेट्स का महत्व” विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया। अवसर था अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्मेलन का 116वां स्थापना दिवस का। कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ जी.आर.चतुर्वेदी ने किया। महासम्मेलन के प्रदेश अध्यक्ष डॉ हरीन्द्र मोहन शुक्ला ने बताया कि आज ही के दिन 24 मई 1907 को नासिक में वैद्य शंकर दा जी पदे शास्त्री ने तत्कालीन आयुर्वेद के मूर्धन्य वैद्यों को साथ लेकर आयुर्वेद के चहुंमुखी विकास एवं आयुर्वेद के संरक्षण, विस्तार, एवं उन्नयन के उद्देश्य से अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्मेलन का गठन किया।
आयुर्वेद के शिक्षकों, छात्र-छात्राओं, चिकित्सकों तथा अन्य आयुर्वेद प्रेमियों का यह संगठन विगत सौ वर्ष से भी अधिक समय से भारत के वैद्य समाज के एकमात्र प्रतिनिधि संगठन के रूप में कार्यरत है। भारत के लगभग सभी प्रदेशों में इसकी शाखा है। आयुर्वेद विज्ञान के संरक्षण, संवर्धन, और सर्वांगीण विकास तथा आयुर्वेद पद्धति से समाज की स्वास्थ्य रक्षा एवं चिकित्सा सेवा का आज 107 वर्ष पूर्ण हुए। इस स्थापना दिवस पर जीवनशैलीजन्य रोगों मधुमेह, उच्चरक्तचाप, मोटापा,दमा, अम्लपित्त, अस्थिक्षय आदि से बचाव एवं निदान में भारत की परंपरागत मोटे अनाजों के महत्व को रेखांकित किया गया।
इसके स्वास्थ्य के लिए हितकारी महत्व के कारण ही आज पूरा विश्व मिलेट्स की ओर आकर्षित हो रहा है। संयुक्त राष्ट्र सामान्य सभा ने 2023 को विश्व मिलेट्स वर्ष घोषित किया है। ज्वार, बाजरा, कोदो, कुटकी, कुट्टू, जौ, रागी, सांवा आदि मोटे अनाज ही मिलेट्स कहलाते हैं। यही हमारी परंपरागत आहार थे। कालान्तर में गेहूँ, चांवल ने इसका स्थान ले लिया। ये अनाज कम पानी में, कम मेहनत से पैदा हो जाते हैं, फर्टीलाइजर, पेस्टिसाइड की भी ज़रूरत नहीं रहती। इसमें सभी पोषक तत्व, मिनेरल्स मौजूद रहते हैं, जो शरीर के सम्यक पोषण के लिए आवश्यक होता है। अपने सारगर्भित व्याख्यान में कायचिकित्सा विभागाध्यक्ष प्रो.डॉ अरुणा ओझा ने बताया कि मिलेट्स एक प्रमुख एवं पारंपरिक आहार तो है, साथ ही यह जीवनशैलीजन्य व्याधियों एवं ऑटो इम्मयून रोगों के लिए पथ्य भी है। आयुर्वेद चिकित्सा में पथ्य का महत्व औषधि के बराबर ही होता है। अखिल भारतीय आयुर्वेद महासम्मेलन के स्थापना दिवस के गौरवमयी कार्यक्रम का संचालन महासचिव डॉ सुशील द्विवेदी ने किया।कार्यक्रम में डॉ एल.सी. हर्जपाल, डॉ रुपेन्द्र चंद्राकर, डॉ निखिल नायक, डॉ कमलेश्वर करभाल, डॉ लवकेश चंद्रवंशी,डॉ रश्मि दीवान, डॉ मनोज दास, डॉ श्वेता, डॉ अंजू, डॉ दिलीप, डॉ जगदीश, डॉ राजेश सिंह,डॉ अशोक भगत डॉ त्रिभुवन आयुर्वेद अधिकारी संघ के डॉ चंपालाल जैन “सोना” सहित अन्य प्रबुद्ध शिक्षक एवं विद्यार्थी शामिल हुए।