रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 24 अगस्त। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि दुश्मन दो प्रकार के होते हैं, एक बाहरी और एक अंदरूनी। आप समर्थ हैं तो बाहर का दुश्मन आपका बाल भी बांका नहीं कर सकता। लेकिन अंतर्मन का, अंदर का दुश्मन खतरनाक है। उन्होंने कहा कि शत्रु का मारना तो आसान है, लेकिन अगर आपको समाप्त करना है तो शत्रुता को समाप्त करिये। भगवान महावीर शत्रुता को बदलने की बात करते हैं। धर्म वही है जो शत्रुता को मित्रता में बदले। संसार उसी को कहते हैं जो शत्रुता को मित्रता में बदले। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी है।
शैलेन्द्र नगर स्थित लालगंगा पटवा भवन में महावीर गाथा के 46वें दिन गुरुवार को को प्रवीण ऋषि ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए उक्त बातें कहीं। उन्होंने महावीर गाथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मुनि विश्वभूति आहार चर्या के लिए संभूति विजय संग नगर की ओर चला। पहले तो संकोच हुआ कि जिन गलियों में मैं एक राजकुमार बनकर घूमता था अब वहां एक मुनि बन भिक्षा कैसे मांगूंगा? लेकिन विजय संभूति ने उसे समझाया, और वह चल पड़ा। जब वह नगर पहुंचा तो जो लोग उसे राजकुमार समझकर आदर देते थे, वो झुककर प्रणाम करने लगे। पहले जो प्रणाम था वो शक्ति को था, आज जो प्रणाम था वो भक्ति को था। विश्वभूती को एक अलग अहसास हुआ। अगर वह गुरु की बात नहीं मानता तो इस अहसास से वंचित रह जाता।
प्रवीण ऋषि ने कहा कि एक प्रणाम किसी को बदल कर रख देता है। कोई प्रणाम करता है तो अंदर की धारा बदल जाती है। किसी का वंदन किसी को बदल कर रख देता है। उन्होंने कहा कि तुम्हारी आस्था किसी को भगवन बना देती है, वहीं अनास्था किसी को शैतान। लोगों की आस्था ने विश्वभूति को बदल दिया। उसे लगा कि वह आज सम्माननीय बन गया है। इतने समय तक वह अहंकार का विषय था, आज लोगों की नजऱों में भगवन बन गया। आहार चर्या के लिए एक घर में प्रवेश किया,तो मानो वह घर धन्य हो गया। विश्वभूति को भोजन मिला, मानो प्रसाद मिल गया। संभूति विजय विश्वभूति को आहार की विधि सिखाने लगे।
उन्होंने कहा कि जो जैसा मिले वैसे खाने वाला पशु होता है। जैसा मिला वैसे ही नहीं खाना चाहिए। इसकी कला जिसके पास है उसे साधु कहते हैं। संभूति विजय विश्वभूति को यह कला सीखा रहे हैं। विश्वभूति धन्य हो गया। वह मस्ती में है, विशाख नंदी याद भी नहीं आ रहा है। सोने का समय हुआ, संभूति विजय ने कहा कि विशाख नंदी के साथ मत सोना, प्रभु के साथ सो। विश्वभूती सोया, और अंदर का विशाख नंदी जाग गया। उसके वचन याद आने लगे। सुबह संभूति ने कहा, फिर तू विशाख नंदी के साथ सोया? विश्वभूति ने तय किया कि जब तक इस नगर की सीमा में रहेगा, विशाख याद आता रहेगा। उसके आज्ञा मांगी मासखमण की, और चल पड़ा। कई साल बीत गए, सालों की तपस्या से ऐसी शक्ति मिली की अंतर्मन बलवान हो गया। शरीर दुर्बल हुआ, लेकिन मन बलवान हो गया।