रायपुर(अमर छत्तीसगढ) 13 सितंबर। उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने बुधवार को कहा कि आपके वचन आपका भाग्य तय करते हैं। आपकी भाषा से पता चलता है कि आप किस कुल के हैं, आपका चरित्र क्या है। आपकी भाषा आपको वंदनीय भी बना सकता है, और निंदनीय भी। उन्होंने कहा कि जुबान तो हमें जन्म से मिलती है, लेकिन भाषा हमें सीखनी पड़ती है। आपके शब्द किसी को जीवनदान दे सकते हैं, तो किसी की जान भी ले सकते हैं। शब्द से रिश्ते बनते भी हैं और बिगड़ते भी हैं। हमें बोलना तो आता है, पर कब, कहां और कैसे बोलना है, ये परमात्मा हमें सिखाते हैं।
ललित पटवा ने बताया कि आज पर्युषण महापर्व का दूसरा दिन है। टैगोर नगर स्थित लालगंगा पटवा भवन में प्रतिदिन की भांति आज भी प्रातः 6 बजे से प्रार्थना (भक्तामर स्त्रोत आराधना), 8.15 बजे सिद्ध स्तुति, 8.30 बजे अंतगड़ सूत्र का मूलपाठ, फिर 10 बजे मंगलपाठ के बाद उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि का प्रवचन हुआ। दोपहर 2.30 से 3.30 बजे तीर्थेश मुनि ने कल्पसूत्र की आराधना कराई। फिर शाम 6 बजे कल्याणमन्दिर स्त्रोत आराधना और सूर्यास्त के समय प्रतिक्रमण हुआ।
धर्मसभा को संबोधित करते हुए प्रवीण ऋषि ने कहा कि पर्युषण की आराधना में वचन को कैसे बनाये जाए। कैसे हम अपनी वाणी पर नियंत्रण रख सकते हैं। उन्होंने कहा कि शब्दों से रिश्ते बनते-बिगड़ते हैं। आपके शब्द किसी की जान भी ले सकते हैं, और किसी को जीवन भी दे सकते हैं। शब्द हैं तो धर्म है, और झगड़ा भी है। अगर शब्द नहीं तो हम जानवर के समान हैं। अच्छा और बुरा दोनों बोलने वाले मिलते हैं, लेकिन जो सही है उसका अनुसरण करो। कभी अपने कानों में कचरा मत डालो। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि प्रभु महावीर ने इंद्रभूति गौतम को सिखाया था कि कैसे बोलना है। जिसे बोलने की कला आ गई, वह व्यक्ति जीवन में कभी हिंसा नहीं करता। जिसे बोलने की कला नहीं आई, वह मनुष्य तो क्या, भूतों को भी परेशान कर देता है। एक शब्द सामने वाला को भगवन बना देता है। बोलने के मुख्य सूत्र के बारे में बताते हुए उपाध्याय प्रवर ने कह कि सबसे पहला सूत्र है कि कभी भी किसी पर आरोप नहीं लगाना। अगर आरोप वाली भाषा समाप्त हो जाए तो परिवार सुखी हो जाएगा। उन्होंने कहा कि आरोप कभी मत लगाना, लेकिन बिना सुधारे कभी छोड़ना भी मत। दूसरा सूत्र उन्होंने बताया कि कभी भी अपनी भाषा में आदेशात्मक भाव मत लाना। आदेश दिया तो गुलामी का भाव आएगा। हमेशा आग्रह पूर्वक बोलो। वचन आपके भाग्य को लिखते हैं। जिसने अपनी भाषा को संभाल लिया, उसने अपना भाग्य संभाल लिया।