श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा
दुर्ग (अमर छत्तीसगढ) 18 सितंबर।
आत्माराधना का पवित्र पावन पर्व महापर्व पर्युषण में आध्यात्म की गंगा बहाने… युग प्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी की महती कृपा से उपासिका डा. वीरबाला छाजेड़ एवं श्रीमती साधना कोठारी का सानिध्य दुर्ग वासियों को प्राप्त हुआ है। जैन भवन, महावीर कॉलोनी, दुर्ग में आयोजित सम्यक आराधना श्रृंखला का सातवां दिवस ध्यान दिवस मनाया गया ।
स्वावलंबन और पुरुषार्थ से परिपूर्ण भगवान महावीर ने अपने कर्मों का क्षय किया था। उन प्रसंगों का उल्लेख करते हुए धर्मसभा को सम्यक भावों के प्रति जागरूक रहने की प्रेरणा देते हुए वरिष्ठ उपासिका डा. वीरबाला छाजेड़ ने "सम्यक दृष्टि कैसे बने" की श्रृंखला बद्ध प्रवचन माला से लाभान्वित किया। आपने भावपूर्ण गीतिका "अरे धार्मिकों इस प्रवाह में अब भी बहते जाते हो... सत संगत में जो पाते हो क्या वो वहीं छोड़ आते हो..." के गायन से सबके मानस को सोचनें के लिए विवश किया।
उपासिका साधना कोठारी ने आज ध्यान दिवस पर अपनी अभिव्यक्ति देते हुए कहा ... अतिंद्रीय चेतना के विकास का माध्यम है... ध्यान, बाहर से भीतर की ओर लौटना है...ध्यान, आपने जन जन से निर्विचार अंतर्यात्रा, प्रत्येक क्षण जागरूक रह कर जीवन को पवित्र बनाने का आव्हान किया।
प्रवचन के प्रारंभ में प्रेक्षा ध्यान का प्रयोग हुआ। "आओ आओ भिक्षु स्वामी अब तो म्हारें आगण्यों..." श्रद्धा पूर्ण गीतिका का सामूहिक गायन हुआ। श्रीमती विनीता बरडिया एवं श्रीमती सुरभि बरमेचा ने ध्यान दिवस की गीतिका..."आत्म साक्षात्कार प्रेक्षा ध्यान के द्वारा... स्वप्न हो साकार इस अभियान के द्वारा..."के मधुर संगान किया। सभा में उपस्थित बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाओं ने कु. प्रज्ञा बरमेचा के 7 उपवास सहित अनेकों के तप - त्याग की अनुमोदना की।