परमात्मा हमें समर्थ बनाते हैं, सुखी हम अपने सामर्थ्य से बनते हैं : प्रवीण ऋषि

परमात्मा हमें समर्थ बनाते हैं, सुखी हम अपने सामर्थ्य से बनते हैं : प्रवीण ऋषि


महावीर निर्वाण कल्याणक महोत्सव के लिए समिति बनाने उपाध्याय प्रवर ने ली समाज की बैठक

रायपुर(अमर छत्तीसगढ) 18 सितंबर। लालगंगा पटवा भवन में पर्युषण महापर्व के दौरान अंतगड़ श्रुतदेव आराधना में उपाध्याय प्रवर ने धर्मसभा में एक प्रश्न किया। उन्होंने पूछा कि मनुष्य का जीवन बदलना हो तो उसका व्यवहार बदलना चाहिए, या उसकी भाषा अथवा उसकी आस्था? इनमे से क्या बदलने से मनुष्य का जीवन बदलता है? इसका उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि अगर किसी का जीवन बदलना है तो उसकी आस्था को बदलो। जीवन कैसे बदलेगा, यह उस व्यक्ति की श्रद्धा पर निर्भर करता है। जिसपर आपकी श्रद्धा होती है, जीवन वैसा ही को जाता है। श्रद्धा में बदलाव जीवन में बदलाव है। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

परमात्मा की वाणी है नवकार मन्त्र : प्रवीण ऋषि
रविवार को धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि जैन धर्म में जीवन पर जोर दिया गया है, श्रद्धेय से जुड़ने पर जोर नहीं दिया गया है। अंतगड़ का आज का सत्र श्रद्धा से जुड़ा हुआ था। उन्होंने कहा कि जिनकी अटल श्रद्धा तीर्थंकर पर रहती है उन्हें किसी और की जरुरत नहीं है। जिनके विषय में आप सुनते हैं, जिन्हे देवी-देवता भी पूजते हैं, उनकी आराधना करते हैं, आपको किसकी पूजा करनी चाहिए? नवकार कलश का कार्यक्रम क्यों आयोजित किया जा रहा है? क्योंकि नवकार मन्त्र में जो शक्ति है, वो और किसी में नहीं है। नवकार मंत्र परमात्मा की वाणी है, और उनकी वाणी सभी घरों में रहनी चाहिए। जीवन में समस्याएं हैं, उनके समाधान के लिए नवकार मंत्र की साधना दी जा रही है। उन्होंने कहा कि एक श्रद्धेय तुम्हारे जीवन के वैभव को बनाये रखता है। उन्होंने पूछा कि कितने लोग उत्तराध्ययन सूत्र की आराधना करते हैं? हर जैनी की के कंठ में परमात्मा के वचन गूंजने चाहिए। क्यों नहीं जोड़ते अपने आप को परमात्मा के साथ? परमात्मा की आत्मा मोक्ष है, पुण्य यहीं है। क्यों नहीं जोड़ते अपनी संतति को उनके साथ। कोई व्यक्ति जब अपना आयुष पूर्ण करता है, तो वह अपने पीछे अपनी संपत्ति, धन-दौलत सब छोड़ जाता है, अपने पुण्य साथ ले जाता है। लेकिन परमात्मा ने अपनी संपत्ति अपना पुण्य यहीं छोड़ रखा है, आप उसका लाभ उठाओ। नवकार मंत्र में अनंत शक्ति है।

अर्जुनमालि और सुदर्शन का प्रसंग…
उपाध्याय प्रवर ने अर्जुनमालि और सुदर्शन का प्रसंग सुनाया। राजगृही नगरी में अर्जुनमाली रहता। उसकी पत्नी का नाम बंधुमती था। गाँव के बाहर उनकी फूल की बगिया थी। बगिया पास एक मुद्गलपाणी नाम के यक्ष का मंदिर था। वो पति-पत्नी हर दिन यक्ष की पूजा करते थे और पुष्पा चढ़ाते थे। गांव में बदमाशों की एक टोली थी। इस टोली की नजर बंधुमती पर पड़ गई। अर्जुनमाली और उनकी पत्नी बंधुमती यक्ष की पूजा करने मंदिर में आये। मंदिर के द्वार के पीछे छुपे हुए छ लोगो ने अर्जुनमाली को बांध दिया और बंधुमती पे अत्याचार करने लगे। यह देखकर अर्जुनमाली को क्रोध आया और अपनी आप को धिक्कार ने लगे। अर्जुनमाली यक्ष को कहने लगे कि तुम्हारे स्थान में यह अनर्थ हो रहा है। इतने दिन तुम्हारी पूजा करने का यह फल मिला ! मूर्ति के अधिष्ठायक ज्ञान से यह अनर्थ देखा। और क्रोधित होकर अर्जुनमाली के शरीर में प्रवेश किया। यक्ष के बल से बंधन तोड़ के मूर्ति के हाथ में रही हुई मुद्गर लेकर 6 पुरुष और बंधुमती को मार दिया। अर्जुनमाली प्रत्येक दिन 7 लोगो को मारता था। राजगृही नगरी में हाहाकार मच गया। राजा और प्रजा ने बहुत उपाय किए फिर भी सफलता नही मिली। राजा श्रेणिक ने किसी को घर से बाहर न निकलने का आदेश सुनाया।

6 माह तक ऐसा ही चला। एक बार महावीर प्रभु नगर के बाहर पधारे थे। युवक, सुदर्शन प्रभु को वंदन करने नगर के बहार निकला। वहां अर्जुनमाली मुद्गर लेकर सुदर्शन को मारने आये। सुदर्शन ने भाव से प्रभु को वंदन करके सभी वोसरा के काउसग्ग ध्यान में नवकार मंत्र का स्मरण करने लगे। नवकार मंत्र के प्रभाव से अर्जुनमाली के शरीर में से यक्ष भाग गया और सुदर्शन गिर पड़े। बाद में सुदर्शन को पूछा कि आप कौन हो ? सुदर्शन ने कहा की में भगवान महावीर देव का श्रावक हु। प्रभु यहाँ पधारे है। आप भी साथ आये आपको लाभ होगा। अर्जुनमाली और सुदर्शन प्रभु के समवसरण में आये। प्रभु की देशना सुनकर सुदर्शन ने व्रत पच्चखाण लिये। अर्जुनमाली ने पापो की निंदा पूर्वक दीक्षा ली। वो ही समय उन्होंने प्रभु के सामने जीवनभर छठ्ठ के पारणे छठ्ठ करने की प्रतिज्ञा की। दीक्षा के बाद अर्जुनमाली पारणा के दिन वहोरने जाते थे तब सभी लोग उन का तिरस्कार करने लगे। लोग उन का अपमान हो वैसे शब्दों बोलते थे। अर्जुन मुनि समता रखते थे। किसी के लिये मन में अप्रीति नही होने देता। जो भी उपसर्ग हो वो शांति से सह लेता था। ऐसे उत्तम कोटि का तप करके और भावना भाते मुनि को 6 माह के बाद केवलज्ञान हुआ। 15 दिन का अनशन करके मोक्ष में गये। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि हम अपने भूतकाल में अटक जाते हैं और भविष्य को नहीं बना पाते हैं। जिसे नगर वासियों को अर्जुनमालि का भूतकाल नजर आता था, कोई उसका वर्तमान नहीं देखता है। अगर आप भूतकाल में अटक जाएंगे, तो भूत बन जाएंगे। अपने मन को भूतकाल से मुक्त करें। यह हम आलोचने से कर सकते हैं। परमात्मा हमें समर्थ बनाते हैं, सुखी हम अपने सामर्थ्य से बनते हैं। कभी भी अपने को असहाय और निराश महसूस न करें।

घटना नहीं, घटना का मूल्यांकन हमें परेशान करता है : प्रवीण ऋषि
प्रवचन माला को आगे बढ़ाते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि मन के जीते जीत है और मन के हारे हार। कोई जीव जन्म लेता है तो उसका मन भी जन्म लेता है। जैसे अगर कोई कुत्ता पैदा होता है तो उसका मन भी कुत्ते का होता है, उसे कुछ सीखना नहीं पड़ता है। लेकिन जब मनुष्य का जन्म होता है तो उसका मन खुला रहता है। वह अपने मन को भगवान भी बना सकता है और शैतान भी। हम अपने मन में किसने कब, क्या बोला यह रखे रहते हैं। हम अपने पांव में चुभे कांटे तो निकाल देते हैं, लेकिन दिल में चुभे काँटों को नहीं निकल पाते। हम अपने मन में दुश्मनी का भाव रख लेते हैं, और हमारा मन ही हमारा दुश्मन बन जाता है। जब आप खुद को बुराभला कहते हैं, तो आप स्वयं के दुश्मन बन जाते हैं। विचार अंदर आते हैं, और हम उन्हें जकड़ कर रखे लेते हैं। हमारे साथ कुछ बुरा होता है, लेकिन हमें वह घटना उतना दुःख नहीं पहुंचाती, जितना उसकी याद पहुंचाती हैं। घटना नहीं, घटना का मूल्यांकन हमें परेशान करता है। अपने मन को साफ़ रखो, जो कचरा है, उसे बाहर फेंको। पुरानी यादों को अपने मन से निकाल कर मन को ताजा रखना सीखो। अगर यह कर लिया तो मन नंदनवन बन जाएगा, अन्यथा नर्क।

महावीर निर्वाण कल्याणक महोत्सव के लिए समिति बनाने उपाध्याय प्रवर ने ली समाज की बैठक
रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि 24 अक्टूबर से शुरू होने वाले उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के लिए महावीर निर्वाण कल्याणक समिति का गठन किया जाना है। रविवार को प्रवचन के बाद प्रवीण ऋषि की अध्यक्षता में इस समिति के गठन के लिए बैठक आयोजित हुई। इस बैठक में जैन समाज के प्रमुख उपस्थित थे। बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि परमात्मा के अंतिम वचनों को पूरी दुनिया तक पहुंचाना है। उन्होंने कहा कि प्रभु महावीर ने अपने अंतिम क्षणों में एक धर्मसभा आयोजित की, जहां 48 घंटों तक परमात्मा के वचन गूँजते रहे। रायपुर में 21 दिनों तक उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना में भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। उन्होंने बताया कि यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। इस दौरान धर्मसभा में प्रभु महावीर के आलावा कोई जयकारा नहीं होगा। धर्मसभा के बाद उपाध्याय प्रवर एकांतवास में रहेंगे। 21 दिनों तक भावना भरनी है कि मस्तक झुके तो केवल महावीर के सामने। सभा में महावीर के अलावा कोई और चर्चा नहीं होगी, मंगलपाठ के साथ सभा का समापन होगा। उन्होंने बताया की देश के अन्य हिस्सों में इस कार्यक्रम के जरिये वे जैन समाज को जोड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य है कि उत्तराध्ययन को सर्वोच्च शिखर पर रखना है। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का न्योता दिया है।

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