बिलासपुर (अमर छत्तीसगढ़) 28 सितंबर। जैन सम्प्रदाय के आत्म कल्याण के महापर्व दसलक्षण महापर्व का के अवसर पर लेश्या – एक आत्मीय स्वाध्याय की शानदार प्रस्तुति की गई, डॉ- श्रुति एवं सुप्रीत जैन द्वारा निर्देशित इस अनूठी प्रस्तुति के जरिये सभी का स्वाध्याय हो गया। इसमें जैन धर्म में उल्लेखित लेश्या दस बारे में बताया गया और यह समझाया गया कि इसका मनुष्य के कर्मों और भावों पर क्या प्रभाव पड़ता है। लेश्या शब्द का अर्थ है लिम्पन करना यानि लिप्त करना, अर्थात् जीव का जो परिणाम आत्मा को कर्म से लिप्त कराये अर्थात् आत्मा और कर्म परमाणुओं को जोड़ने का काम करे , उस परिणाम को लेश्या कहते हैं।
जिस प्रकार रंग या मिट्टी से हम दीवार या जमीन को लीपते हैं, ठीक उसी प्रकार कषाय या शुभ और अशुभ भाव रूपी लेप के द्वारा आत्मा का परिणाम लिप्त होता है उसे लेश्या कहते हैं अर्थात् लेश्या का संबंध जीव के परिणामों से है। जैनागम में लेश्या के छह भेद हैं – कृष्ण , नील , कापोत , पीत , पद्म , शुक्ल। कृष्ण यानि काला अर्थात् सबसे निकृष्ट परिणाम। जैसे क्रोध , मान , माया , लोभ चारों कषायों की अति तीव्रता, दया धर्म से रहित, स्वच्छंदी, विवेक रहित, दुराग्रह, तीव्र बैर, हिंसा, असंतोष आदि कृष्ण लेश्या वाले जीव के लक्षण हैं। ऐसी प्रकार नील लेश्या के अंश में बताया गया कि जितना अंतर काले रंग से नीले रंग में होता है, उसी प्रकार कृष्ण लेश्या वाले जीव की तुलना में नील लेश्या वाले जीव के परिणाम कुछ अच्छे होते हैं। फिर भी ऐसे जीव की कुछ प्रमुख लक्षण हैं – बहुत निद्रालु होना, धन-धान्यादि के संग्रह में तीव्र लालसा होना, विषयों में आसक्त, मानी, मतिहीन, विवेक रहित, आलसी, कायर, दूसरों को ठगने में तत्पर।
जिस प्रकार नीले रंग से कुछ हल्का रंग कबूतर का होता है, उसी प्रकार कपोत लेश्या में कषायों की उतनी तीव्रता नहीं रहती। जो दूसरों के ऊपर रोष करता हो, निंदा करता हो, दोष, शोक, भय बहुल हो, ईर्ष्यावान हो, सदैव अपनी प्रशंसा का इच्छुक हो, कर्तव्य- अकर्तव्य का कोई विवेक न हो, ये कापोत लेश्या वाले जीव के लक्षण हैं। अगली लेश्या है पीत लेश्या यानि कषाय में मंदता। जो जीव अपने कर्तव्य और अकर्तव्य, सेव्य- असेव्य को जानता हो, सबमें समदर्शी हो, दया और दान में रत हो, मृदु स्वभावी और ज्ञानी हो, ये सब पीत लेश्या वाले जीव के लक्षण हैं। पद्म लेश्या में कषायों में और अधिक मंदतारहती है। जो त्यागी हो, भद्र हो, सच्चा हो, उत्तम काम करने वाला हो, बहुत बड़ा अपराध या नुकसान होने पर भी क्षमा कर दे, सच्चे देव-शास्त्र-गुरू का उपासक हो ये पद्म लेश्या वाले जीव के लक्षण हैं।
सबसे अच्छी लेश्या है शुक्ल लेश्या, जो पक्षपात न करे , निदान के भाव न हो , सभी के साथ समान व्यवहार करे , जिसे पर में राग-द्वेष, वा स्नेह ना हो आदि शुक्ल लेश्या वाले जीव के लक्षण हैं। इन सभी लेश्याओं को एक बहुत ही प्यारे दृष्टांत से समझाया गया जैसे छह पथिक वन में जा रहे हैं, और मार्ग भूल गये। भूख से बेहाल हैं, तभी फलों से लदा हुआ एक वृक्ष दिखाई दिया। सभी फल खाना चाहते हैं, पर सभी के परिणाम अलग-अलग। उस समय छहों व्यक्तियों के विचार छहों लेश्याओं पर घटित हो रहे हैं।
कृष्ण लेश्या वाला कहता है कि जड़ से वृक्ष को उखाड़ो, तब फल खाएंगे। नील लेश्या वाला कहता है कि स्कन्ध (तने) को तोड़ो, तब फल खाएंगे। कापोत लेश्या वाला कहता है कि शाखा को तोड़ो तब फल खाएंगे। पीत लेश्या वाला कहता है कि उपशाखा को तोड़ो तब फल खाएंगे।
पद्म लेश्या वाला कहता है कि फलों को तोड़कर खाएंगे। शुक्ल लेश्या वाला कहता है कि जो फल अपने आप जमीन पर गिर रहे हैं, उन्हें खाकर अपनी क्षुधा को शान्त करेंगे। इसका अभिप्राय यह है कि जीव को हमेशा अपने परिणामों को संभल कर रखना चाहिये। अप्रशस्त लेश्याओं के परिणामों से प्रतिसमय बचें, और क्रमशः पीत,पद्म,शुक्ल लेश्या का पुरूषार्थ करते हुये अलेश्या होने की भावना भायें।
सुप्रीत और अणिमा ने एक कथावाचक के रूप में इस नाटिका को प्रस्तुत किया, जिसमे लेश्या का किरदार श्रुति, रागिनी, भुवि, सपना, सोनम और प्रिय ने निभाया। नारकीय जीव का किरदार अनोखी, आशय और आद्या ने निभाया। मीसा, अनिमेष और अनायरा ने देव गति के देवों का किरदार निभाया। इसके साथ ही गौरव, विकास, अमन, वासु, इशिता, वेदांत, प्रिंस, आमर्ष, सिमर और भाविका ने अपने अभिनय से नाटिका को जीवंत कर दिया। कार्यक्रम को सफल बनाने में अमित जैन और दीपक जैन का योगदान रहा।