परमात्मा के शब्दों से पहले उनके ज्ञान का प्रकाश पहुंचता है : प्रवीण ऋषि

परमात्मा के शब्दों से पहले उनके ज्ञान का प्रकाश पहुंचता है : प्रवीण ऋषि

रायपुर(अमर छत्तीसगढ़) 21 नवंबर। सुधर्मा स्वामी की अनुभूति जिन शब्दों में अक्षुण्य है, उन्ही शब्दों के माध्यम से परमात्मा महावीर के उस अक्षर स्वरुप को जानने के लिए लालगंगा पटवा भवन में पुच्छिंसुणं आराधना अनवरत जारी है। जंबूस्वामी की जिज्ञासा को शांत करने के लिए सुधर्मा स्वामी ने जिस स्तोत्र की रचना की थी, उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि में मुखारविंद से श्रावक उसका रसपान कर रहे हैं। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

धर्मसभा को संबोधित करते हुए उपाध्याय प्रवर ने कहा कि यदि आपसे पूछा जाए कि सबसे सर्वश्रेष्ठ वृक्ष कौन सा है तो आप क्या उत्तर देंगे? प्रायः लोग कहेंगे कि कल्पवृक्ष सबसे श्रेष्ठ है। ज्यादातर हम उस पेड़ को सर्वश्रेष्ठ कहते हैं जिसमे फूल-फल लगते हैं। यदि आपसे कहा कहा जाए कि ज्ञान को उपमा देनी है, तो उसके लिए हमारे पास सूर्य है, ज्योति है। लेकिन सुधर्मा स्वामी ने जब परमात्मा के ज्ञान की अनुभूति की तो उन्होंने अनोखे वृक्ष से इसकी तुलना की। सुधर्मा स्वामी जब परमात्मा के ज्ञान और शील की उपमा देते हैं तो उन्होंने शमी वृक्ष को चुना। शमी ऐसा वृक्ष है जिसमे फूल-फल नहीं लगते हैं, केवल पत्ते रहते हैं। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि महाराष्ट्र में दशहरे की दिन इस पेड़ की पत्ती को सोने के रूप में बांटा जाता है। ऐसा क्यों है? उपाध्याय प्रवर ने कहा कि जो 10 भवनपति देवता है, उनमे सुवर्णकुमार देवता का प्रिय वृक्ष है शमी। इस पेड़ को देखकर सुवर्णकुमार को आनंद की अनुभूति होती है। परमात्मा का ज्ञान और शील शमी वृक्ष के जैसा है। शमी के पत्ते ही उसके फूल और फल हैं, अर्थात ज्ञान ही फल है।

उपाध्याय प्रवर ने कहा कि किसी भी जैन मंदिर में तीर्थंकर परमात्मा की मूर्ति आशीर्वाद की मुद्रा में नहीं मिलेगी। बाकी सब देवता हाथ उठाकर आशीर्वाद देते हैं, लेकिन तीर्थंकर हाथ नहीं उठाते हैं। जिनको आशीर्वाद देने के लिए हाथ उठाने पड़ते हैं उनके आशीर्वाद केवल हाथ से जाते हैं। तीर्थंकर प्रभु को हाथ उठाने की जरुरत नहीं है, उनके रोम रोम से आशीर्वाद जाते हैं। प्रभु को आशीर्वाद देने की जरुरत ही नहीं है, क्योंकि उनका अस्तित्व ही आशीर्वादमय है। उनका अस्तित्व ही आशीर्वाद है। सुधर्मा स्वामी ने कहा है कि परमात्मा का ज्ञान और शील अपने आप में समर्थ है, परिपूर्ण है। ज्ञान और ज्ञानी नंदनवन जैसा होना चाहिए। जैसे नंदनवन में आनंद की वर्षा होती रहती है, वैसे ही ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान की वर्षा करता रहता है। जिस घर में रहते हो उसे नंदनवन बना लो, आप स्वयं अपना शील ऐसा रखो कि परिवार के किसी व्यक्ति को कहने की आवश्यकत न पड़े। यह जिम्मेदारी होती है कुटुंब प्रमुख की कि वह नंदनवन बने घर के लिए। यदि घर नंदनवन हो गया तो कोई सदस्य बाहर साथ ढूंढने नहीं जाएगा।

धर्मसभा में उपाध्याय प्रवर ने कहा कि परमात्मा को जानना हो, जीन हो तो सुधर्मा स्वामी के अलावा कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि सबसे अच्छा शब्द कौन सा है? कोई कहेगा कि मेघमल्हार, लेकिन सुधर्मा स्वामी मेघगर्जना को सबसे अच्छा शब्द कहते हैं। बादल की गड़गड़ाहट किसे अच्छी लगती है? बच्चे डरते हैं, बड़े भी घबरा जाते हैं। लेकिन सुधर्मा स्वामी अनोखी व्याख्या करते हैं। हमें बादलों की गर्जना बाद में सुनाई देती है, पहले बिजली की चमक दिखती है। वैसे ही परमात्मा की कृपा पहले पहुँचती है, शब्द बाद में। इसलिए परमात्मा का शब्द बादलों की गड़गड़ाहट की तरह है, जिसका उजाला पहले पहुँचता है, और ध्वनि बाद में आती है। प्रभु के समोशरण में पहुंचकर बकरी को शेर से डर नहीं लगता, शेर बकरी को खाने का प्रयास नहीं करता है। सांप और नेवला एक साथ दोस्त बनकर बैठते हैं। ऐसा क्यों? उनमे अहिंसा, प्रेम दया का जो भाव जन्मा ये परमात्मा का प्रवचन सुनने के पहले जन्मा। क्योंकी समोशरण में पहुंचे और परमात्मा के ज्ञान का उजाला हो गया, शब्द तो बाद में आये।

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