रायपुर(अमर छत्तीसगढ) 11 जुलाई। जैन संत श्री विरागमुनि जी का रायपुर प्रवेश हो चुका है और वे जिनवाणी की वर्षा करते हुए शहर के श्रावक-श्राविकाओं को लाभान्वित कर रहे हैं। जिनवाणी की वर्षा के क्रम में गुरुवार को दीर्घ तपस्वी श्री विरागमुनिजी के श्रीमुख से सदर बाजार जैन मंदिर में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं ने प्रवचन का लाभ लिया।
रायपुर शहर में चल रहे प्रवचन श्रृंखला के दौरान उन्होंने कहा कि आजकल लोग मंदिर भी अपने समय से आते जाते हैं क्योंकि रुचि नहीं है बस फॉर्मेलिटी रह गई है। जबकि आप ऑफिस या दुकान जाते समय ऐसा नहीं करते हो। आज भाव धर्म की रूचि किसी में नहीं है। बड़े लोग भी दान करने के समय सोचते हैं। मोक्ष का रास्ता आसान करना है तो स्वाध्याय को जीवन में प्राण बना लो। ज्ञान का लक्ष्य रखो, एक बार ज्ञान का रस लग गया, मजा आ गया तो सभी इंद्रियां जीत लोगे और मोक्ष भी हाथ में ही दिखने लगेगा।
मुनिश्री ने कहा कि आज आपको माता पिता के प्रति, समाज के प्रति, संतान के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाना है। संसार के प्रति आदर भाव रखना है उदासीन हृदय से भी आपको पाप नहीं करना है, जिस दिन पाप आपको पाप लगेगा उस दिन फिर भी आप बच जाओगे। जबकि आज तो वर्षों से लोग स्वाध्याय कर रहे हैं फिर भी उन्हें पाप और पुण्य में फर्क समझ नहीं आ रहा है।
बिन रुचि के क्रिया का कोई फल नहीं मिलेगा
मुनिश्री ने आगे बताया कि एक लकड़हारा जंगल में लकड़ी काट रहा था वह पेड़ की टहनी को काटने का बहुत देर से प्रयास कर रहा था लेकिन वह टहनी नहीं कट रही थी। जंगल से गुजर रहे एक व्यक्ति ने उस लकड़हारे से कहा कि भाई सुनो तुम इतनी देर से पेड़ काट रहे फिर भी टहनी नहीं कट रही है। इस पर लकड़हारे ने कहा कि मेरे पास अभी समय नहीं है तुम जाओ। व्यक्ति ने कहा कि मैं तुम्हें बताता हूं यह क्यों नहीं कर रही है। लकड़हारा कहता है कि तुम जाओ मेरे पास अभी समय नहीं है, मुझे अभी बहुत काम करना है। उसने कहा सुन तो लो एक बार, लकड़हारे ने कहा तुम जाओ फिर उस व्यक्ति ने कहा कि एक बात बताता हूं उसे सुन लो फिर मैं चला जाऊंगा। लकड़हारे ने कहा ठीक है बताओ, जल्दी करो मेरे पास समय नहीं है। व्यक्ति ने बताया कि तुम्हारे कुल्हाड़ी में धार नहीं है, इसलिए यह टहनी नहीं कट रही है। लकड़हारे ने कहा कि इस बात को बताने में तुमने मेरा समय बर्बाद कर दिया, तुम जाओ मैं देख लूंगा। मेरे पास कुल्हाड़ी धार करवाने के लिए टाइम नहीं है, मुझे बहुत सारे काम करने हैं। आज हमारी भी स्थिति यही है हमें क्रिया तो करना है पर रुचि नहीं है उसके बाद भी हम मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं। समय पर सही भाव लाओगे तो मोक्ष अटका ने की किसी की ताकत नहीं होगी। उन्होंने कहा कि भाव चार होते हैं पहला मैत्रीय, दूसरा प्रमोद, तीसरी करुणा और चौथी मध्यस्थता। मैत्रीय भाव क्या होता है आज किसी को पता ही नहीं है। मैत्रीय भाव का अर्थ है कोई भी जीव पाप ना करें कोई भी जीव दुखी ना होय और सभी जीव आराधना कर मोक्ष को प्राप्त कर लें। आज जिसे खुद की आत्मा से मैत्री भाव नहीं है, वह दूसरे के लिए क्या करेगा और मोक्ष कहां से प्राप्त करेगा।