सूरत(अमर छत्तीसगढ) 29 जुलाई। हमे अपने जीवन को गुणों का भंडार बनाना है या दुर्गुणों से भंगार करना है यह तय करना होगा। जीवन को सद्गुणों का भण्डार बनाना है तो जिनवाणी श्रवण करने के साथ गरिमापूर्ण संस्कारित जीवन जीना होगा। चातुर्मास में स्थानक में आकर संत-साध्वियों की वाणी श्रवण करना हमारे गुणों के भण्डार को भरता जाता है। जिसका गुणों का भण्डार भरा हुआ है उसका जीवन खुशहाल है। ये विचार मरूधरा मणि महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना जिनशासन प्रभाविका वात्सल्यमूर्ति इन्दुप्रभाजी म.सा. ने सोमवार को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में महावीर भवन में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए।
रोचक व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने जीवन में झुकने के महत्व पर चर्चा करते कहा कि नमन करना हमारी संस्कृति की पहचान है। नवकार मंत्र में पांच पद है जिनमें भी विभिन्न तीर्थंकरों व सिद्ध आत्माओं को नमन किया गया है। हमे अपनी संस्कृति के अनुरूप सुबह उठते ही महापुरूषों के दर्शन करने के साथ बड़ो को नमन करना चाहिए। भगवान आदिनाथ से लेकर भगवान महावीर तक ने जो दर्शन ओर आदर्श हमे दिए है उनके अनुरूप हमारी जीवन शैली ओर आचरण होना चाहिए।
भगवान महावीर का जीवन दर्शन आत्मचिंतन के लिए प्रेरित करता है। तत्वचिंतिका आगमरसिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने सुखविपाक सूत्र वाचन के तहत सुबाहुकुमार के चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि जिनशासन का उपासक कहलाने वाले श्रावक-श्राविकाओं को 12 व्रत ग्रहण करने चाहिए। धर्म दो प्रकार का होता है आगार धर्म एवं अणगार धर्म। तीर्थ चार प्रकार के होते साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका।
उन्होंने कहा कि साधु-साध्वी के पंच महाव्रत के साथ छठा महाव्रत रात्रि भोजन त्याग का होता है। अणगार धर्म साधु-साध्वी का होता है। संत का जीवन हर कदम पर त्याग ओर साधना से परिपूर्ण होता है इसीलिए उन्हें समाज नमन व वंदन करता है। गृहस्थ जीवन में रहकर भी संत जैसा मर्यादित आचरण करने वाला कर्मो की निर्जरा करता है। शास्त्रों में श्रावक की गति देवलोक बताई गई है। सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. ने भगवान महावीर स्वामी की स्तुति में की प्रस्तुति दी।
धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा. एवं विद्याभिलाषी हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य रहा। दो श्राविकाओं ने पांच उपवास के प्रत्याख्यान लिए। कई श्रावक-श्राविकाओं ने उपवास,आयम्बिल, एकासन आदि तप के भी प्रत्याख्यान लिए। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ एवं स्वागताध्यक्ष शांतिलाल नाहर परिवार द्वारा किया गया। संचालन श्रीसंघ के उपाध्यक्ष राकेश गन्ना ने किया। जिनवाणी श्रवण करने के लिए सूरत के विभिन्न क्षेत्रों से श्रावक-श्राविकाएं पहुंचे थे।
बच्चों के लिए चन्द्रकला द्रव्य मर्यादा तप की तैयारी
चातुर्मास में बच्चों के लिए चन्द्रकला द्रव्य मर्यादा तप 31 जुलाई से शुरू होगा। कई बच्चों ने इस तप में शामिल होने के लिए अपने नाम दिए है। इस तप में बच्चों के लिए खाने-पीने में द्रव्य मर्यादा तय होगी। पहले दिन पूरे दिन खान-पान में अधिकतम 15 द्रव्य का उपयोग कर सकंेंगे इसके बाद प्रतिदिन एक-एक द्रव्य मात्रा कम होते हुए अंतिम दिवस 14 अगस्त को मात्र एक द्रव्य का ही उपयोग करना होगा।
पानी,दूध,पेस्ट व दवा द्रव्य सीमा में शामिल नहीं है। चातुर्मास में प्रतिदिन प्रतिदिन सुबह 8.45 से 10 बजे तक प्रवचन एवं दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र का जाप हो रहे है। प्रतिदिन दोपहर 3 से शाम 5 बजे तक धर्म चर्चा का समय तय है। हर रविवार सुबह 7 से 8 बजे तक युवाओं के लिए एवं हर शनिवार रात 8 से 9 बजे तक बालिकाओं के लिए क्लास होगी।
प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा
मो.9829537627