तप की महिमा  अपरंपार है इससे जुड़े, और जीने का आनंद लें : साध्वी सुमंगल प्रभा जी

तप की महिमा अपरंपार है इससे जुड़े, और जीने का आनंद लें : साध्वी सुमंगल प्रभा जी

दुर्ग (अमर छत्तीसगढ) 30 जुलाई।

जय आनंद मधुकर रतन भवन बांध तालाब दुर्गा की धर्म सभा को संबोधित करते हुए साध्वी शुभ मंगल प्रभा ने कहा की जैन धर्म में तपस्या का बड़ा महत्व है और इसे कर्म निर्जरा का हेतु माना जाता है। तप शरीर को स्वस्थ और संतुलित रखता है और मन को भी नियन्त्रित रखता हे सत्कर्मों में प्रवृति और असत्यकमो का नाश करने के लिए तप एक अमोध अस्त्र है। तप के द्वारा आत्मा की अनन्त शक्तियों का उद्‌घाटन होगा।आत्मा पर लगी कर्मरज दूर होगी ।

साध्वी भगवत ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए धर्म की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कहा तप के ने कार्य है। आत्मा को तपाकर उज्ज्वल बनाना। जैसे अग्नि में तपकर स्वर्ण शुद्ध बन जाता है। दुसरा कार्य है-प्रकाश देना । तप शरीर में उर्जा पैदा करता है।

उन्होंने आगे कहा अशुभ कर्मों को तपाकर नष्ट कर दे वह तप है। स्वर्ण को तपाकर शुद्ध बनाना हो मक्खन को तपाकर धी निकालना हो इन्हें तपाने के लिए अग्नि और तपायी जाने वाली वस्तु के मध्य किसी बर्तन की आवश्यकता तो रहती ही है ठीक उसी भांति आत्मारूपी स्वर्ण या मम्खन को तपाकर शरीर को तपाए तभी तप कहलाता है।

करोडो भवों के संचित कर्म नष्ट करता है तप । बारह प्रकार के तपों में छ तप बाहय छ तप आभ्यंतर है। प्रभु महावीर ने अपने पिछले नन्दन भूपति के भव में ग्यारह लाख साठ हजार बार मासखामण की तपस्याएँ की। कारण था कर्म बंधनों को तोड़ना जो उन्होंने पूर्व में बांध रखे थे। तप से पुराने पाप नष्ट हो जाते हैं। जैसे स्वर्ण का मैल अग्नि से दूर होता है दूध में मिल्ले पानी को हंस अलग कर देना है वैसे ही तप द्वारा कर्ममल को आत्मा से अलग किया जा सकता है। तप किये बिना कर्म नष्ट नष्ट नहीं होते। कर्मो के रहते मोक्ष नहीं मिलता।

साध्वी डा सुवृद्धि श्री ने सुखविपाक सूत्र के वाचन के दोरान दुख और सुख केवल अनुभूति है। इस जगत में सुखी कितने और दुखी कितने हैं। आज का व्यक्ति दूसरों के सुखों से दुखी है ।
2 अगस्त से सिद्धि तप की आराधना जय आनंद मधुकर रतन भवन में प्रारंभ होने जा रही है जिस किसी साधकों को इस तक में हिस्सा लेना हो फॉर्म भरकर इस तप में हिस्सा ले सकते हैं फार्म साध्वी भगवंतो के पास उपलब्ध है ।

रिपोर्ट : नवीन संचेती

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