सूरत(अमर छत्तीसगढ), 30 जुलाई। जो भव्य आत्माएं जिनवाणी श्रवण करने के लिए नियमित आ रही है वह धन्यवाद की पात्र है। जिनवाणी श्रवण कर वह अपना जीवन निर्मल ओर पावन बना रहे है। चातुर्मास में तप साधना का दौर निरन्तर जारी रहना चाहिए। पचरंगी आज पूर्ण हो गई अब सामायिक का सिद्धी तप करना है। तप करने से कर्म निर्जरा के साथ शरीर व आत्मा निर्मल होती है।
ये विचार मरूधरा मणि महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना जिनशासन प्रभाविका वात्सल्यमूर्ति इन्दुप्रभाजी म.सा. ने मंगलवार को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में महावीर भवन में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान व्यक्त किए। रोचक व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि प्रवचन में अक्सर आत्मा की चर्चा होती है। आत्मा ही अजर अमर अविनाशी है। हमे शरीर से डर लगता है जबकि आत्मा है तो डर नहीं लगता क्योंकि आत्मा अरूपी है। आत्मा में वर्ण, गंध रस कुछ भी नहीं है। आत्मा कभी दिखाई नहीं देती लेकिन हमे अनुभूति होती है कि आत्मा है। उन्होंने कहा कि साधु साध्वी के लिए रसोई औषधशाला होती है।
साधु साध्वी कभी भी गोचरी आ सकते है तो गरिमा व मर्यादा का पूरा ध्यान रखे ओर याद रहे कि हमे उस समय क्या करना है ओर क्या नहीं करना है। भगवान महावीर चंदनबाला के द्वार आहार लेने गए ओर वापस लौट आए तो चंदनबाला की आंखों में आंसू आ गए। भगवान महावीर स्वामी का 13 बोल का अभिग्रह पूर्ण हो गया। महासती चंदनबाला के हाथों से रोते-रोत गौतम स्वामी को केवल ज्ञान हुआ क्योंकि वह भगवान के लिए रो रहे थे। साध्वीश्री ने कहा कि हमे धर्म की पूंजी कमानी भी है ओर बचानी भी है।
धर्म की पूंजी सुरक्षित रखने ओर बढ़ाने का माध्यम जिनवाणी है। तत्वचिंतिका आगमरसिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने सुखविपाक सूत्र वाचन के तहत सुबाहुकुमार के चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि हम अपने जीवन में पाप का भण्डार भर रहे है जबकि आत्मा का कल्याण करना है तो तप,त्याग,ध्यान,साधना का भण्डार भरना होगा। सोचे अनादिकाल से हमारी आत्मा किसका भण्डार भर रही है। हमारे उपर कर्मो का भार बहुत ज्यादा है।
उन्होंने कहा कि हमे शरीर की सुरक्षा,परिवार की सुरक्षा, बीमारी से सेहत की सुरक्षा आदि की चिंता रहती है पर आत्मा की सुरक्षा की परवाह करना सबसे जरूरी है। आत्मा की रक्षा के लिए व्रत अंगीेकार करना होगा। मोहनीय कर्म हमारे तप त्याग करने में बाधक बनता है। कर्म बंधन का माध्यम व्रत आराधना है। हमारा जैन धर्म जबरदस्ती का नहीं बल्कि जबरदस्त है जिससे आत्मा निर्मल व पावन बनती है। सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. ने भजन की प्रस्तुति दी।
धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा. एवं विद्याभिलाषी हिरलप्रभाजी म.सा. का भी सानिध्य रहा। दो श्राविकाओं ने 6-6 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। कई श्रावक-श्राविकाओं ने उपवास,आयम्बिल, एकासन आदि तप के भी प्रत्याख्यान लिए। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ एवं स्वागताध्यक्ष शांतिलाल नाहर परिवार द्वारा किया गया। संचालन श्रीसंघ के उपाध्यक्ष राकेश गन्ना ने किया। जिनवाणी श्रवण करने के लिए सूरत के विभिन्न क्षेत्रों से श्रावक-श्राविकाएं पहुंचे थे।
बच्चों के लिए चन्द्रकला द्रव्य मर्यादा तप कल से
चातुर्मास में बच्चों के लिए चन्द्रकला द्रव्य मर्यादा तप बुधवार 31 जुलाई से शुरू होगा। कई बच्चों ने इस तप में शामिल होने के लिए अपने नाम दिए है। इस तप में बच्चों के लिए खाने-पीने में द्रव्य मर्यादा तय होगी। पहले दिन पूरे दिन खान-पान में अधिकतम 15 द्रव्य का उपयोग कर सकंेंगे इसके बाद प्रतिदिन एक-एक द्रव्य मात्रा कम होते हुए अंतिम दिवस 14 अगस्त को मात्र एक द्रव्य का ही उपयोग करना होगा।
पानी, दूध,पेस्ट व दवा द्रव्य सीमा में शामिल नहीं है। चातुर्मास में प्रतिदिन प्रतिदिन सुबह 8.45 से 10 बजे तक प्रवचन एवं दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र का जाप हो रहे है। प्रतिदिन दोपहर 3 से शाम 5 बजे तक धर्म चर्चा का समय तय है। हर रविवार सुबह 7 से 8 बजे तक युवाओं के लिए एवं हर शनिवार रात 8 से 9 बजे तक बालिकाओं के लिए क्लास हो रही है।
प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा
मो.9829537627