अतिक्रमण का प्रतिक्रमण अवश्य हो- मुनि रमेश कुमार

अतिक्रमण का प्रतिक्रमण अवश्य हो- मुनि रमेश कुमार


काठमाण्डौ नेपाल (अमर छत्तीसगढ) 31 जुलाई।

किसी भी क्रिया की समीक्षा जरूरी होती है। केवल करते जाना ही सब कुछ नहीं है। करने के साथ कैसा किया, कितना किया, सही किया अथवा गलत किया, समालोचनापूर्वक कार्य करने वाला श्रम की समीक्षा कर लेता है। कहीं गलती हुई हो तो परिष्कार कर लेता है। जैन साधना पद्धति में साधु के लिये सुबह-शाम दोनों समय प्रतिक्रमण करने का विधान है।

प्रतिक्रमण का शाब्दिक अर्थ है वापस आना। पिछले बारह घंटों में क्या किया, अच्छा किया तो उसे सतत चालू रखना, यदि गलत किया तो उससे विरत होकर पुनः सही मार्ग पर आ जाना। मुनि के लिये यह अवश्यमेव करणीय उपासना है, अतः इसे आवश्यक भी कहते हैं। इसे विधिपूर्वक करने वाला स्वीकृत व्रत नियम में कहीं दोष लगा हो तो उसका परिमार्जन कर लेता है।

आगे के लिये सजग होने का अवसर मिल जाता है। इसलिए अतिक्रमण का प्रतिक्रमण अवश्य करें। उपरोक्त विचार आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री रमेश कुमार जी ने महाश्रमण सभागार में “धर्म आराधना सप्ताह के अंतर्गत आज अतिक्रमण का हो प्रतिक्रमण विषय पर प्रवचन करते हुए किये।

आपने प्रतिक्रमण का महत्व बताते हुए आगे कहा- शास्त्रों में नियमित विधिपूर्वक प्रतिक्रमण करने का विशिष्ट लाभ बतलाया है। किसी भी मकान की नियमित सफाई होती हो तो उसकी स्वच्छता अलग ही नजर आती है। मकान बनाना एक बात है, उसे साफ सुथरा रखना अलग बात है। देखभाल करने वाला मकान को लंबे समय तक सुरक्षित रख लेता है।

इसी तरह नियम आदि चर्या को धारण करने वाला यदि उसकी प्रतिक्रमण-समीक्षा करता रहे तो व्रत एवं चर्या में कहीं स्खलना हुई हो तो उसका प्रायश्चित्त हो जाता है, भविष्य के लिये सजगता आ जाती है।प्रत्येक धार्मिक चाहे वह गृहस्थ भी हो प्रतिक्रमण उसके लिये भी करणीय है।

दुकानदार अपने व्यवसाय की प्रतिदिन समीक्षा करता है, लेखा जोखा मिलाता है तो वह हानि का मार्ग त्यागकर लाभ के मार्ग पर चल सकता है । जिस व्यापारी के हिसाब मिलाने का क्रम नहीं है, उसके लाभ-हानि के आकलन का कोई माध्यम नहीं होता । सजगता के लिये उसका होना जरूरी है। आपने इस अवसर पर प्रतिक्रमण के छह आवश्यक को भी समझाया।

मुनि रत्न कुमार जी ने भी इस अवसर पर अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किये।

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