आचार्य आनंदऋषिजी म.सा. की जयंति पर गुणानुवाद सभा एवं 102 आयम्बिल तप की साधना
सूरत(अमर छत्तीसगढ), 5 अगस्त। जिनशासन को समर्पित अनुशासनप्रिय श्रमणसंघीय आचार्य सम्राट पूज्य आनंदऋषिजी म.सा. के गुणों को आत्मसात कर हम अपना जीवन सुधार सकते है। उनमें इतने गुण मौजूद थे सभी को शब्दों से बयां भी नहीं किया जा सकता। वह श्रमण संघ की शान ओर धर्म के महान ज्ञाता ऐसे महापुरूष थे जिनका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणादायी है।
उनकी जयंति मनाना तभी सार्थक होगा जब हम उनके गुणों को अपने जीवन में अंगीकार करेंगे। ये विचार मरूधरा मणि महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना जिनशासन प्रभाविका वात्सल्यमूर्ति इन्दुप्रभाजी म.सा. ने सोमवार को श्रमण संघीय द्वितीय पट्टधर आचार्य सम्राट पूज्य आनंदऋषिजी म.सा. की 125वीं जयंति के अवसर पर श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में महावीर भवन में आयोजित गुणानुवाद सभा में व्यक्त किए। जयंति के इस अवसर पर 102 श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल तप की साधना कर आचार्यश्री के चरणों में श्रद्धा के भाव समर्पित किए।
पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. ने आचार्य आनंदऋषिजी का जीवन परिचय देते हुए कहा कि उनके पिता का नाम देवीलाल व माता का नाम हुलसादेवी था। उन्हें संयम जीवन के बाद अनुशासन में रहते हुए धर्म की शिक्षा गुरूवर रतनऋषिजी ने प्रदान की थी। तीस वर्ष तक श्रमण संघ के आचार्य रहने के दौरान उन्होंने संघ समाज की मजबूती के लिए अनुकरणीय कार्य किया।
उनकी जयंति पर आयम्बिल,एकासन, उपवास की जो भी तपस्या हुई है वह गुरूचरणों में समर्पित करते है। रोचक व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि आज पूरे देश में आचार्य आनंदऋषिजी म.सा. की 125 वीं जयंति आयम्बिल दिवस के रूप में मनाई जा रही है। यहां भी 102 श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल तप की साधना की है।
उन्होंने कहा कि गुरू ही होता है जो शिष्य के जीवन को निखारता ओर संवारता है। हमारा उच्चारण ओर आचरण एक समान होना चाहिए यानि हम जो कहते है वैसा ही करना चाहिए। आचार्यश्री ने यहीं सीख दी कि जीवन में महान बनना है तो सहन करना सीखना होगा। अपनी गलती छुपाने में नहीं उसे स्वीकार करने में जो सुख मिलता है वही सच्चा सुख होता है।
स्वाध्यायप्रिय आनंदऋषिजी म.सा. ने यही प्रेरणा दी कि पहले खुद समझों फिर दूसरों को समझाओं। जब तक हमारी बात को हम स्वयं अपने जीवन में नहीं उतारेंगे तब तक कोई दूसरा भी उससे प्रेरणा नहीं लेगा। तत्वचिंतिका आगमरसिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने कहा कि आज आचार्य सम्राट आनंदऋषिजी म.सा. की जयंति आयम्बिल तप की भेंट देकर मना रहे है। आयम्बिल तपक रने से कर्मो की विपुल निर्जरा भी होती है।
उन्होंने सुखविपाकसूत्र का वाचन करते हुए कहा कि दान में अभयनदान ओर तप में ब्रह्मचर्य तप सबसे महान बताया गया है। जैन कुल में जन्म लेना हमारा सौभाग्य है ओर हम व्रति श्रावक बन इस जन्म को सार्थक बना सकते है। उन्होंने श्रावक के 12 व्रत में से चौथे व्रत ब्रह्मचर्य व्रत के महत्व के बारे में समझाया।
सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. एवं विद्याभिलाषी हिरलप्रभाजी म.सा.ने आचार्य आनंदऋषिजी म.सा. को समर्पित भजनों की प्रस्तुति देते दी। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा. का भी सानिध्य रहा। वैरागन बहन पूजा ने भी भजन प्रस्तुत किया।
धर्म ध्यान व तप साधना का दौर निरन्तर जारी, सुश्राविका शिमलाजी के 12 उपवास
पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. आदि ठाणा के सानिध्य में चातुर्मास में धर्म ध्यान व तप साधना का दौर निरन्तर जारी है। सुश्राविका शिमला सांखला ने हर्ष-हर्ष, जय-जय की गूंज के बीच सोमवार को 12 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए।
कई श्रावक-श्राविकाओं ने तेला,बेला, उपवास,आयम्बिल, एकासन आदि तप के भी प्रत्याख्यान लिए। आयम्बिल तप करने वालों में से 11 लक्की ड्रॉ भी श्रीसंघ द्वारा निकाले गए। पचरंगी के साथ सिद्धी तप की आराधना भी चल रही है। बच्चों के लिए 15 दिवसीय चन्द्रकला द्रव्य मर्यादा तप आराधना के तहत सोमवार को 10 द्रव्य उपरान्त त्याग रहा।
सभा में मारवाड़ जंक्शन से पधारे सुरेशजी चपलोत सहित सभी अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ एवं स्वागताध्यक्ष शांतिलाल नाहर परिवार द्वारा किया गया। संचालन श्रीसंघ के उपाध्यक्ष राकेशजी गन्ना ने किया। चातुर्मास में प्रतिदिन प्रतिदिन सुबह 8.45 से 10 बजे तक प्रवचन एवं दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र का जाप हो रहे है। प्रतिदिन दोपहर 3 से शाम 5 बजे तक धर्म चर्चा का समय तय है।
प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा
मो.9829537627