आचार्य आनंदऋषिजी म.सा. की जयंति पर सामूहिक आयम्बिल तप एवं गुणानुवाद
अम्बाजी(अमर छत्तीसगढ), 5 अगस्त। त्याग, तपस्या व ज्ञान की त्रिवेणी प्रवाहित करने वाले आचार्यसम्राट श्री आंनदऋषिजी म.सा. का पूरा जीवन हमारे लिए प्रेरणा देने वाला है। लोक कल्याण के प्रतीत करूणा के सागर व दीन दुःखी को देख ह्दय द्रवित हो जाने वाले राष्ट्र संत आनंदऋषिजी म.सा. का पूरा जीवन सेवा व मानवता की भावना से ओतप्रोत रहा। ऐसे संतों की जयंति पर जितना गुणानुवाद किया जाए कम है।
ये विचार पूज्य दादा गुरूदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा., लोकमान्य संत, शेरे राजस्थान, वरिष्ठ प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्रीरूपचंदजी म.सा. के शिष्य, मरूधरा भूषण, शासन गौरव, प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्री सुकन मुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी म.सा ने श्रमण संघीय द्वितीय पट्टधर आचार्यसम्राट श्री आंनदऋषिजी म.सा. की 124वीं जयंति के अवसर पर सोमवार को श्री अरिहन्त जैन श्रावक संघ अम्बाजी के तत्वावधान में अंबिका जैन भवन में आयोजित गुणानुवाद सभा में व्यक्त किए। इस अवसर पर कई श्रावक-श्राविकाओं ने सामूहिक आयम्बिल तप की साधना की। सभा में पूज्य मुकेशमुनिजी म.सा. ने कहा कि आनंद गुरू सबको आनंद देने वाले बन गए।
संघनायक व आचार्य आनंद गुरू जैसे उन महापुरूषों को उनके गुणों के कारण दुनिया जाने के बाद भी याद करती है, उनके गुणों का जितना गुणगान करे कम होगा। मुनिश्री ने कहा कि निर्लिप्त रहकर संघ समाज की सेवा में समर्पित आचार्य आनंदऋषिजी म.सा. ने आगम व वैदिक साहित्य का गहरा अध्ययन ओर उनका जीवन सहज व सरल होने के साथ जिनशासन व मानव कल्याण के लिए समर्पित रहा।
धर्मसभा में सेवारत्न श्री हरीशमुनिजी म.सा. ने पूज्य आनंदऋषिजी म.सा. के प्रति भावांजलि अर्पित करते हुए कहा कि संत का जीवन उस फूल की तरह होता है जो मुरझाया नहीं जाता। छोटी सी उम्र में दीक्षा लेकर दीर्घकाल तक संयम आराधना करते हुए साधना के शिखर को छूने वाले आनंदऋषिजी ऐसे महापुरूष थे जिनसे लाखों भक्तों ने प्रेरणा प्राप्त की।
उनके जीवन में आनंद, दृष्टि ओर वाणी में आनंद यानि सम्पूर्ण आनंद था। गुरूवचनों की पालना करते हुए वह निरन्तर संघ-समाज की सेवा के लिए समर्पित रहे। उनके अंदर इतने गुण समाएं हुए थे कि उनमें से कुछ भी हम ग्रहण कर ले तो हमारा जीवन सार्थक हो सकता है।
धर्मसभा में मधुर व्याख्यानी श्री हितेश मुनिजी म.सा. ने आचार्य आनंदऋषिजी म.सा. के जीवन की चर्चा करते हुए कहा कि पूज्य आनंद बाबा का पूरा जीवन प्रेरणादायी है जिससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है।
उन्होंने उपाध्याय, आचार्य जैसे पदों पर रहते हुए जिनशासन व श्रमणसंघ की जो सेवा की उसे कभी नहीं भूला जा सकता। जो एक बार उनके सानिध्य में आया वह उनके गुणों से प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। उन्होंने कहा कि आचार्य आनंदऋषिजी ने माह की पांच तिथियों को आयम्बिल तप की साधना करने के साथ इसकी प्रेरणा भी प्रदान की।
आयम्बिल तप उपवास से भी कठिन होता है क्योंकि आयम्बिल में भूख जागृत होने के बाद स्वाद पर नियंत्रण रखकर वह भोजन करना होता है जिसमें स्वाद नहीं आता है। उन्होंने सुखविपाक सूत्र का वाचन पूर्ण करते हुए नवें व दशवे अध्ययन की विवेचना करते हुए बताया कि कैसे दो राजकुमार संयम स्वीकार कर केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद निर्वाण होकर सिद्ध बुद्ध मुक्त हो जाते है।
धर्मसभा में प्रार्थनाथी सचिन मुनिजी म.सा. ने कहा कि मानवजाति के इतिहास में अनगिनत बार ऐसा वक्त आया है, जब मनुष्य गहरे अंधेरे में भटक गया। उसे ऐसी स्थिति में कुछ भी दिखाई नहीं देता था। उसे कुछ भी सूझता नहीं था। ऐसे समय में महापुरूष मानव- समाज के क्षितिज पर सूर्य बनकर उदित हुए। हर युग में, संकट की बिकट परिस्थिति में महापुरूष मानव-समाज के सम्बल बने है। मानव-समाज हताशा, पीडा, संत्रास, भय, अज्ञान की गहरी गुफाओं में बंद था। महापुरूष उस अंधकार से उसे बाहर ले आये।
बेडिओंसे मुक्त कर उसे खुला आकाश दिया। नई ऊर्जा, प्राण, संवेदना, मुक्ति का उसके भीतर संचार किया। उसके अस्तित्व से उसे परिचय कराया। उसकी सोई हुई शक्ति को जागृत कर नए श्रेष्ठ जीवन के उसे दर्शन कराए। उन्होंने कहा कि पूज्य आचार्य आंनदऋषिजी जैसे महापुरूष इस पृथ्वी पर वसंत बनकर आते हैं। निराश, हताश मानव-समाज में एक नई उमंग, उत्साह भर देते हैं। हजारों हजार फूल खिला देते हैं।
जीवन को एक उत्सव बना देते है। नई दृष्टि, नया चिंतन, नया जीवन दर्शन देकर मानव-समाज के जीवन को श्रेष्ठतम बनाते हैं। महापुरूष ये सब करूणा, प्रेम से प्रेरित होकर सहज करते हैं। बगैर किसी अपेक्षा के, बिना भेदभाव के समान रूप से सभी को प्रेम देते हैं। धर्मसभा में युवारत्न श्री नानेशमुनिजी म.सा. का भी सान्निध्य रहा। हुआ।
धर्मसभा में कई श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल, एकासन, उपवास तप के प्रत्याख्यान भी लिए। धर्मसभा में चेन्नई, बेंगलुरू, सूरत, गांधीनगर, परबतसर, आबूरोड आदि स्थानों से श्रावक पधारे ओर दर्शन लाभ लिया। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के द्वारा किया गया। धर्मसभा का संचालन गौतमकुमार बाफना ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन सुबह 9 से 10 बजे तक हो रहे है।
द्वय गुरूदेव जयंति के उपलक्ष्य में तेला तप 11 अगस्त से
चातुर्मास अवधि में प्रतिदिन दोपहर 2 से 4 बजे तक का समय धर्मचर्चा के लिए तय है। प्रति रविवार को दोपहर 2.30 से 4 बजे तक धार्मिक प्रतियोगिता हो रही है। चातुर्मास के विशेष आकर्षण के रूप में 15 अगस्त को द्वय गुरूदेव श्रमण सूर्य मरूधर केसरी प्रवर्तक पूज्य श्री मिश्रीमलजी म.सा. की 134वीं जन्मजयंति एवं लोकमान्य संत शेरे राजस्थान वरिष्ठ प्रवर्तक श्री रूपचंदजी म.सा. ‘रजत’ की 97वीं जन्म जयंति समारोह मनाया जाएगा। इससे पूर्व इसके उपलक्ष्य में 11 से 13 अगस्त तक सामूहिक तेला तप का आयोजन भी होगा।
प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन, भीलवाड़ा, मो.9829537627