छाया आनंद बाबा की भक्ति का रंग, आचार्यश्री के चरणों में समर्पित तप त्याग साधना… जिनका जीवन अनुशासन में निखरता है वह कभी नहीं बिखरता है- समकितमुनिजी मसा…..

छाया आनंद बाबा की भक्ति का रंग, आचार्यश्री के चरणों में समर्पित तप त्याग साधना… जिनका जीवन अनुशासन में निखरता है वह कभी नहीं बिखरता है- समकितमुनिजी मसा…..

पूज्य समकितमुनिजी म.सा. के सानिध्य में मनाई गई आनंदऋषिजी म.सा. की 124वीं जयंति

हैदराबाद, 5 अगस्त। जीवन अनुशासन में ही निखरता है। जो बचपन में कठोर अनुशासन झेल लेता है उसे दुनिया की कोई ताकत बिखेर नहीं सकती। जो बचपन में अनुशासन का तूफान नहीं झेल पाते उनकी जड़े कमजोर रह जाने से जरा सी परेशानी में बिखर जाने की आशंका रहती है।

पूज्य रतनऋषिजी म.सा. ने अपने शिष्य आनंदऋषिजी को ऐसे कठोर अनुशासन में ढाला कि उन्होंने कठोर संयम साधना में जीवन बिताया ओर समय आने पर श्रमण संघ के आचार्य भगवन्त बन भक्तों के भगवान बन गए। श्रमण संघ को मजबूती प्रदान करने ओर आगे बढ़ाने में पूज्य आचार्य आनंदऋषिजी म.सा. का अहम योगदान रहा। उनके गुणों का जितना गुणगान करे कम होगा।

ये विचार श्रमण संघीय सलाहकार राजर्षि भीष्म पितामह पूज्य सुमतिप्रकाशजी म.सा. के ़सुशिष्य आगमज्ञाता, प्रज्ञामहर्षि पूज्य डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने ग्रेटर हैदराबाद संघ (काचीगुड़ा) के तत्वावधान में श्री पूनमचंद गांधी जैन स्थानक में सोमवार को श्रमण संघीय द्वितीय पट्टधर आचार्य सम्राट पूज्य आनंदऋषिजी म.सा. की 124वीं जयंति के अवसर पर आयोजित गुणानुवाद सभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए।

आचार्यश्री की जयंति के अवसर पर उनके प्रति मन के भाव व्यक्त करने के साथ तप त्याग उनके चरणों में समर्पित करने की भी होड़ रही। पूना से आई पांच सुश्राविकाओं ने 9-9 उपवास की एवं सैकड़ो श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल तप की साधना भी आचार्यश्री के चरणों में समर्पित की।

सभा में पूज्य समकितमुनिजी म.सा. ने आचार्य आनंदऋषिजी म.सा. के जीवन से जुड़े विभिन्न प्रसंगों की चर्चा करते हुए कहा कि उनके पिता का बचपन में ही स्वर्गवास होने के बाद माता ने उन्हें धर्मपथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। संयम स्वीकार करने के बाद उनका प्रारम्भिक साधनमय जीवन कठोर अनुशासन में आगे बढ़ता गया। हर कार्य उन्हें गुरू आज्ञा लेकर करना सीखाया गया।

मुनिश्री ने कहा कि जिनशासन में हर कदम आज्ञा के साथ आगे बढ़ाना पड़ाता है। साधन की दिनचर्या गुरू आज्ञा के अनुसार तय होती है। जो इसके अनुसार नहीं चलता जिनशासन उसे आज्ञा से बाहर कर देता है। जिनशासन की परम्परा पहले दीक्षा फिर शिक्षा की रही थी लेकिन अब बदले हालात में वैराग्य मजबूत करने के लिए पहले शिक्षा फिर दीक्षा दी जाती है।

पूज्य समकितमुनिजी म.सा. ने बताया कि आचार्य आनंदऋषिजी म.सा. गुणों के पारखी थे उन्होंने बिना साक्षात देखे मात्र गुणों के बारे में चर्चा सुनकर पूज्य वाचनाचार्य विशालमुनिजी म.सा. को मात्र 13 वर्ष के दीक्षापर्याय में उपाध्याय की पदवी से नवाजा था। उन्हें पता था कि विशालमुनिजी म.सा. आराध्य गुरूदेव सुमतिप्रकाशजी म.सा. एवं प्रवर्तक श्री शांतिस्वरूपजी म.सा. के कठोर अनुशासन में ज्ञान आराधना व साधना की है।

उन्होंने कहा कि दुनिया में कोई किसी को याद नहीं करता पर जो त्याग,तपस्या व साधना के मार्ग पर आगे बढ़ते है उनको सदिया बीत जाने के बाद भी याद करते है। प्रवचन के शुरू में गायनकुशल जयवन्त मुनिजी म.सा. ने भजन ‘‘तुम्हारे प्यार ने गुरूवर हमको तुमसे जोड़ा है’’ की प्रस्तुति दी। प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा. का सानिध्य भी रहा।

सभा में उस समय अनुमोदना के जयकारे गूंजायमान हो उठे जब कन्याकुमारी से आई सुश्राविका सुरेखा बाफना ने 96 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। पुण्यकलश आराधना करने आई पूना की पांच श्राविकाओं हेमलता चौरड़िया, निर्मला अप्पड़, सुरेखा चौरड़िया, शोभाबाई मंडलेचा, निर्मला ओस्तवाल ने 9-9 उपवास तप के प्रत्याख्यान लिए तो उनकी अनुमोदना में प्रवचन हॉल हर्ष-हर्ष, जय-जय से गूंजायमान हो गया।

तपस्वियों का ग्रेटर हैदराबाद संघ की ओर से सम्मान किया गया। पूना की श्राविका शांताबाई फूलफगर ने 7 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। समकितमुनिजी म.सा. ने सभी तपस्वियों के लिए हार्दिक मंगलभावना व्यक्त की। कई श्रावक-श्राविकाओं ने बेला, उपवास, आयम्बिल,एकासन आदि तप के प्रत्याख्यान भी लिए।

जीवन में कमाना ही नहीं त्याग करना भी सिखाए

प्रज्ञामहर्षि डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने कहा कि अधिकतर लोग अपनी संतान से धर्म नहीं धन की कामना करते है। ऐसे में उन्हें कमाना तो सिखाया जाता पर त्याग करना नहीं सिखाया जाता। ऐसे व्यक्ति भोगो के दलदल में फंसते जाते है ओर उनकी जिंदगी आगम में बताए किमपाक फल के समान हो जाती है। काम,भोग भी किमपाक फल के समान है जो बड़े प्यारे लगते है।

जंगल में मिलने वाले किमपाक फल को खाने से तो एक बार मरण होता है पर घरों में मिलने वाले ऐसे फल खाने से पता नहीं कितने जन्म मरण होंगे। उन्होंने कहा कि जिस तरह दूध को देख बिल्ली लाठी की मार को भूल जाती है उसी तरह इंसान भोग दिखाई देने पर उसमें डूब जाता है ओर इस बात की भी परवाह नहीं करता है कि इनके क्या कटु परिणाम जीवन में आगे झेलने पड़ेेगे।

जीवन में 30 से अधिक तरह के फल नहीं खाने का पचक्खान

समकितमुनिजी म.सा. ने कहा कि हम जीवन में 20-25 से अधिक फल शायद ही खाते होंगे पर पचक्खान नहीं रखने से सभी तरह के फल खाने के भागी बनते है। इनमें दुनिया के जंगलो में होने वाले कई ऐसे फल भी है जिनके बारे में हम जानते भी नहीं होंगे। उन्होंने धर्मसभा में मौजूद श्रावक-श्राविकाओं को पचक्खान कराया कि जीवन में 30 प्रकार से से अधिक फल का उपयोग नहीं करेंगे।

बेंगलूरू से पधारी सुश्राविका रसीला मरलेचा व पूना से पधारी प्रीतम पारख ने भी भाव अभिव्यक्ति दी। धर्मसभा में विभिन्न स्थानों से पधारे सुश्रावक राजेन्द्र मरलेचा, नरेन्द्र दुधाड़िया, राजेन्द्र वेदमुथा, महेन्द्र मेहता, मिलाप कांकरिया, सुश्राविका रसीला मरलेचा, मंजू माण्डोत, ज्योति कोठारी आदि का स्वागत श्रीसंघ द्वारा किया गया।

धर्मसभा का संचालन ग्रेटर हैदराबाद श्रीसंघ के महामंत्री सज्जनराज गांधी ने किया। चातुर्मास के तहत प्रतिदिन प्रवचन सुबह 8.40 से 9.40 बजे तक हो रहा है। प्रतिदिन रात 8 से 9 बजे तक चौमुखी जाप का आयोजन भी किया जा रहा है।

निलेश कांठेड़
मीडिया समन्वयक, समकित की यात्रा-2024
मो.9829537627

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