जीव को मारो मत, सताओ मत, कष्ट मत तो, पीड़ा मत पहुंचाओ… सत्ता का नशा बहुत बेकार – शीतलराज मुनिश्री

जीव को मारो मत, सताओ मत, कष्ट मत तो, पीड़ा मत पहुंचाओ… सत्ता का नशा बहुत बेकार – शीतलराज मुनिश्री

रायपुर (अमर छत्तीसगढ) 8 अगस्त। तीर्थंकर भगवानों ने स्वयं आराधना कर भव्य जीवों को आराधना का मार्ग बताया । महापुरुषों ने करुणा कर, दया कर हिंसा का त्याग किया । मैं समस्त प्रकार के जीवों का पालन एवं रक्षा कर सकता हूं कि नहीं यह पहले महापुरुषों ने जाना । धन, परिवार, मोह, ममत्व का त्याग कर भगवान के बताएं मार्ग पर चले हैं । उक्त बातें प्रवचन के माध्यम से पुजारी पार्क रायपुर में शीतलराज मुनिश्री ने श्रावक श्राविकाओं को कहीं ।

संसार में जितने भी तीर्थंकर है उनके उपदेश एक समान होगा। सभी महापुरुष ने संसार के जितने भी प्राणी जीव हैं उनके साथ हिंसा करना नहीं, हुकुम चलाना नहीं का पालन किया।

शीतलराज मुनिश्री ने कहा कि प्राण, भूत, जीव, सत्ता इन चारों में समस्त जीव आ जाते हैं । मुनिश्री ने चार जीवो के बारे में समझाते हुए कहा कि प्राण- बेंद्रे, तेद्री और चौरेद्री के जीव, भूत- वनस्पति जीव, जीव- जिनको पांचो इंद्रिय है वह पचेद्री जीव, सत्ता- स्थिर जीव रहना। जीव को मारो मत, सताओ मत, कष्ट मत तो, पीड़ा मत पहुंचाओ सत्ता का नशा बहुत बेकार होता है। कर्म चक्र में करोड़पति को रोड़पति, बलवान को कमजोर बना देता है । कर्म करने से पहले विचार करें। जितनी अहिंसा की आराधना करेंगे उतना ही हमारी आत्मा शुद्ध होगी।

अहिंसा के लिए धर्म की आराधना मन, वचन, काया से करनी चाहिएl हमें हमारे दिनचर्या को अपने मानव जीवन को सफल बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा आराधना करने का प्रयास करना होगाl नहीं तो मनुष्य जीवन छूट जाएगा।

जीवन का लक्ष्य मानव से महामानव, महा मानव से महात्मा, महात्मा से परमात्मा बनना है। साधक अगर ऐसे धर्म को समझ कर जीवन में उतारने का प्रयास करें । एक सामयिक करने का प्रयास करें, जिससे सारे पाप धुल जाएंगे।
अहिंसा धर्म की जब हम रोज जय बोलते हैं उसको पालन करेंगे तो आत्मा ऊपर जाएगी । भगवान ने हिंसा को समझने के लिए 18 पापों को विभाजित कर दिया है ।

धन कमाने में भी 18 पापो में एक पाप लगता हैं। हमको भले ही देखने में ना लगे हिंसा लेकिन कितना बड़ा हो रहा है हम नहीं देख पाते । 18 पाप से कमाए धन का उपयोग करेंगे तो हिंसा होगी और सही रूप से कमाये धन का सदुपयोग करेंगे तो पाप नहीं लगेगा । संतो के प्रवचन को सुनकर चिंतन मनन किया जाए तो जीवन सफल होने में समय नहीं लगता। भगवान की वाणी को समझ कर अहिंसा धर्म की आराधना करनी चाहिए । जिसमें सामायिक एक ऐसी आराधना है जिससे हमको अभयदान प्राप्त हो सकता है । धर्म में मन मे लगन ना लगे, रुचि न लगे तब तक आराधना नहीं करनी चाहिए ।

इस अवसर पर संवर में नियनित सेवा देना वाले दर्जन भर से अधिक श्रावक – श्राविकाओं को स्मृति चिन्ह भेंट कर संपूर्ण कार्यक्रम के चातुर्मासिक आयोजक प्रमुख दीपेश संचेती ने बहुमान किया।

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