गोड़ादरा स्थित महावीर भवन में पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. के सानिध्य में चातुर्मासिक प्रवचन
सूरत(अमर छत्तीसगढ), 11 अगस्त। द्रव्य मर्यादा रख तपस्या कर रहे बच्चें अपने कर्मो की निर्जरा करने के साथ बड़ो के लिए भी प्रेरणा का कार्य कर रहे है। जब बच्चें तपस्या कर सकते है तो बड़े क्यों नहीं कर सकते। तपस्या करने में किसी को पीछे नहीं रहना चाहिए। जो किसी भी रूप में तपस्या करता है उसका जीवन निर्मल व पावन बनता है। ये विचार मरूधरा मणि महासाध्वी जैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या सरलमना जिनशासन प्रभाविका वात्सल्यमूर्ति इन्दुप्रभाजी म.सा. ने रविवार को श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ गोड़ादरा के तत्वावधान में महावीर भवन में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए।
रोचक व्याख्यानी प्रबुद्ध चिन्तिका डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा. ने कहा कि हमारे जीवन का लक्ष्य आत्मा का कल्याण करना है। आत्मकल्याण करने के लिए धर्म से जुड़ना होगा ओर जिनवाणी श्रवण कर उसे आत्मसात भी करना होगा। धर्म ने हमे तीन सौगाते दी है सद्भाव से जीना, समभाव से जीना व सेवाभाव से जीना। उन्होंने कहा कि गुरूओं के सामने हमे ज्ञानवान बनकर नहीं बल्कि ज्ञानपीपासु बनकर जाना चाहिए ताकि हम अधिकाधिक ज्ञान प्राप्त कर सके।
ज्ञान प्राप्ति की कोई सीमा नहीं हो सकती। जब तक इंसान में ज्ञान प्राप्ति की ललक रहेगी वह ज्ञानार्जन करता रहेगा। मां ममता की ओर पिता समता की मूर्ति होते है। उन्होंने टीवी व मोबाइल का उपयोग न्यूनतम करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि दोनों कर्मबंध के साधन है।
तत्वचिंतिका आगमरसिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने सुखविपाक सूत्र का वाचन करते हुए कहा कि जब तक मोह की दीवार को नहीं लांधेगे तब तक जिनवाणी श्रवण का लाभ नहीं उठा पाएंगे। जिनवाणी सुनने के लिए देवता भी तरसते है ओर हमे ऐसा अवसर मिला है तो उसे कदापि नहीं गंवा भरपुर लाभ उठाना चाहिए। कषायमुक्त होने के साथ सामायिक साधना से जुड़ना है।
सामायिक करके हम अपना चारित्र उन्नत बना सकते है। सामायिक करके मन,वचन व काया की शुद्धि की जा सकती है। उन्होंने श्रावक के 12 व्रत में से सातवें व्रत उपभोग परिभोग परिणाम व्रत के बारे में समझाते हुए कहा कि एक वर्ष रात्रि भोजन का त्याग करने पर छह मास के तप का फल प्राप्त होता है।
रात्रि भोजन त्याग जैन धर्मावलम्बियों की विशेष पहचान है जिसे बनाए रखना है। शुरू में सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा. एवं विद्याभिलाषी हिरलप्रभाजी म.सा. ने भजन तप का लाडू मिठा लागे की प्रस्तुति दी। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा.का भी सानिध्य रहा।
महासाध्वी मण्डल ने दी 13 अगस्त से सामूहिक तेला तप की प्रेरणा
चातुर्मास मे महासाध्वी मण्डल की प्रेरणा से धर्म ध्यान व तप साधना की अविलर धारा प्रवाहित हो रही है। ऐसा कोई दिन नहीं जा रहा जब तपस्या का प्रत्याख्यान नहीं हो रहे हो। रविवार को प्रवचन हॉल उस समय तपस्वी की अनुमोदना में हर्ष-हर्ष, जय-जय के जयकारों से गूंजायमान हो उठा जब पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. के मुखारबिंद से सुश्राविका शिमलाजी सांखला ने 18 उपवास एवं प्रमोदजी नाबेड़ा ने 7 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। कई श्रावक-श्राविकाओं ने तेला,बेला, उपवास,आयम्बिल, एकासन आदि तप के भी प्रत्याख्यान लिए।
पूज्य इन्दुप्रभाजी म.सा. ने सभी तपस्वियों के प्रति मंगलभावनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि 13 से 15 अगस्त तक सामूहिक तेला तप की आराधना हो रही है। इसमें अधिकाधिक सहभागी बनने के लिए प्रयास करने चाहिए। तपस्या कर्मनिर्जरा का श्रेष्ठ माध्यम है।
चन्द्रकला तप कर रहे बच्चों का श्रीसंघ ने किया सम्मान
बच्चों के लिए 15 दिवसीय चन्द्रकला द्रव्य मर्यादा तप आराधना के तहत शनिवार को 4 द्रव्य उपरान्त त्याग रहा। चन्द्रकला तप कर रहे बच्चों का रविवार को प्रवचन सभा में श्रीसंघ द्वारा पुरस्कार देकर उत्साहवर्धन करते हुए उनकी तपस्या की अनुमोदना की गई।
तप कर रहे बच्चें जिनशासन की प्रभावना में सहभागी बन उत्साहित दिखे। चन्द्रकला तप के अंतिम दिन 14 अगस्त को बच्चें केवल एक द्रव्य का उपयोग करेंगे। बाहर से पधारे सभी अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ एवं स्वागताध्यक्ष शांतिलालजी नाहर परिवार द्वारा किया गया।
संचालन श्रीसंघ के अध्यक्ष शांतिलालजी नाहर ने किया। चातुर्मास में प्रतिदिन प्रतिदिन सुबह 8.45 से 10 बजे तक प्रवचन एवं दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र का जाप हो रहे है। प्रतिदिन दोपहर 3 से शाम 5 बजे तक धर्म चर्चा का समय तय है।
श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, लिम्बायत,गोड़ादरा,सूरत
सम्पर्क एवं आवास व्यवस्था संयोजक-
अरविन्द नानेचा 7016291955
शांतिलाल शिशोदिया 9427821813
प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन,भीलवाड़ा
मो.9829537627