रायपुर (अमर छत्तीसगढ़) 13 अगस्त। राजा ऋषभदेव के पुत्रों में भरत एवं बाहुबली जैन पुराणों में बहुचर्चित व्यक्तित्व है। महाबली बाहुबली भी महान योद्धा रहे, भगवान महावीर ने अहिंसा को परम धर्म घोषित किया। हिंसा को कम करने के लिए सह अस्तित्व, सहिष्णुता एवं समता भाव पर जोर दिया। भगवान महावीर के महान आदर्शो में अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह प्रमुख रहा । जैन धर्म ग्रंथो में तीर्थंकरों के कार्यों को आत्म चिंतन कर जीवन में उतारना शरीर की मूल्यवान इंद्रियों जो शरीर में है, पांच इंद्रियों की प्राप्ति है।
कर्म, धर्म, पाप, आत्मा, राग द्वेष, तपस्या, लोभ, मोह, माया जैसे प्रसंग का उल्लेख करते हुए स्थानीय पुजारी पार्क के मानस भवन में चल रहे नियमित प्रवचन में गुरुदेव ने कहा इंद्रियों पर विजय पाने का प्रयास करें भगवान महावीर के जीवन पर प्रसंग पर बोलते हुए उन्होंने कहा भगवान महावीर एवं गौतम स्वामी के मध्य हुई चर्चाओं का आज भी महत्व है । शीतल राज ने कहा हमें वृक्ष दिखता है पर बीज नहीं, बिना बीज के वृक्ष नहीं हो सकता। इसी प्रकार घटनाएं एवं संसार दिखता है उनके बीज में कर्म है पर कर्म हमें नहीं दिखता । कर्म भी आठ प्रकार के होते हैं, हमारे जीवन में होने वाली अच्छी बुरी घटनाओं का मूल कारण कर्म है ।
पांच इंद्रियों पर बोलते हुए गुरुदेव ने कहा इंद्रियों शब्द रूप गंघ, स्वाद, स्पर्श का ज्ञान करने वाला अंग है। संसारी जीवो के ज्ञान प्राप्ति के साधन ही इंद्रिय है । भगवान महावीर ने पांचो इंद्रियों पर विजय प्राप्त किया। उपसर्ग, समता भाव से दृढ हुए। धन भौतिक सुखों परिवार का मोह त्याग कर वीतराग पद प्राप्त किया। भव जीवो को अपने तरफ करने उपदेश दिया।
दीक्षा लेने वाले गणधर ने केवल ज्ञान प्राप्त किया। लोक परलोक पर महाराज सा ने कहा जहाँ धर्म अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल एवं जीव जैसे द्रव्य पाए जाते हैं । वह लोक कहां जाता है, जहां सिर्फ आकाश है उसे लोक कहा जाता है । कर्म की निर्जरा संवर का दैनिक जीवन में महत्व है, समभव की साधना को सामायिक कहते हैं। सभी जीव मन वचन काया द्वारा कर्मबंधन करते रहते हैं।
शुभ कर्म, अशुभ कर्म बनते ही रहते हैं । शुभ कर्म से सुख मिलता है और अशुभ कर्म दुख देते हैं। आत्मा पर लगे कर्मों को काटने बेले का पचखान राग द्वेष कर्म के बीज है, इसे समाप्त करें। भगवान महावीर ने जीवन में लाखों मासक्षमण किया । साधु जीवन में खाना मिले ना मिले विहार जीवन में लगातार होता है। तपस्या भी सरल नहीं, कर्म तोड़ने के साथ संयम होना चाहिए , इच्छा शक्ति होनी चाहिए। कर्मों की निर्जरा के लिए करना होगा । कर्म बंधने से बचे, तपस्या कितनी महंगी कितनी दुर्लभ है उन महापुरुषों से सीखे जिन्होंने 349 उपवास किया ।
रोज एक सामायिक ले, उपस्थित श्रावक श्राविकाओ से कहा कि यहां आते हो तो एक घंटा सामायिक के लिए लेकर आए। अनुशासन से सुने, गुरुदेव ने कहा सिनेमा में 3 घंटा बिताने वालों को यहां 1 घंटे पूरा सामायिक साधना के लिए लेकर आए।
जैन मुनि शीतल राज ने कहा लोगो को मोह माया को छोड़ना मुश्किल है, अहंकार आ जावे तो तप एवं सेवा बड़ी करो, सेवा हर व्यक्ति नहीं कर सकता। तपस्या करने वालों के जाये, बीमार साधुओं की सेवा भी बड़ी सेवा है । भगवान महावीर ने कहा है आयु न घटती है ना बढ़ती है इतने कर्म काट लिया पुण्य हो गया खर्च करने में भी बहुत दिन लगेगा। स्वार्थ की आयु नहीं होती कर्म काटने धर्म की आराधना करें। हमको कुछ भी मांगने की जरूरत नहीं, यदि मैं आचार व्यवहार तप में शक्ति हो।
धर्म की साधना पर ज्ञानी पुरुषों ने स्पष्ट कहा कर्म निर्जरा के लिए करें कर्म हल्के होंगे कट जाएगा, भारी होगा तो भोगना भी होगा । धर्म को समझ कर हमें कभी भी धर्म की आराधना की तो भौतिक सुख मांगने की जरूरत नहीं, यदि पुण्य प्रबल हो तो मिलेगा। कर्म नहीं काटे तो कुछ नहीं मिलेगा। कुछ भी मांग कर कर्मबंधन मत करो, कर्म कर काटने के लिए साधन करोगे तो भगवान परशुदेव की तरह लाभ होगा। बिना साधु बने मोक्ष नहीं मिलेग साधु संतों का ध्यान रखें मोक्ष मिलेगा ।
आज भी उपवास, बेला, तेला अठाई, मासक्षमण वाले पचखान लिये। प्रवचन सुनने वालों को मुनि शीतल राज ने मार्गदर्शन दिया। संवर में भाग लेने वाले महिला पुरुषों की बड़ी संख्या में पहुंचने के साथ धर्म ज्ञान का वातावरण बन रहा है । चातुर्मास के लाभार्थी संचेती परिवार के प्रमुख दीपेश संचेती प्रवचन में आने वाले श्रावक श्राविका को मंगल पाठ में भाग लेने वालों का सम्मान कर रहे हैं। आज भी प्रवचन एवं मंगल पाठ में भाग लेने वाले सैकड़ो लोग थे। आने वाले दिनों में सैकड़ो की संख्या में बाहर से भी प्रवचन लाभ लेने आने वाले हैं । सभी की भोजन आवास की व्यवस्था भी लाभार्थी संचेती परिवार द्वारा की जा रही है।